मैंने प्रेमचंद ग्रन्थि के कारण अपनी पोस्ट पूरी न कर पाने की स्थिति में आज की रोटी दान की न लगे इसलिए तुकबंदी का सहारा लेना पड़ता है, और उसके बाद जो प्रवाह चलता है उसे वर्डस्वर्थ के spontanisious overflow of emotions कर रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। वह बड़े कवि थे पर कविता की परिभाषा में spontanisious की जगह नियंत्रित करना चाहता हूं। इसके लिए कविता को समय देना होता है। नहीं दे पाता इसलिए जो लिखता ह्ं उसे कबिताई या तुकबंदी कहता हूं। मेरी पोस्ट पर अनेक टिप्पणियां मिलीं। एक मेरे दामाद का भी था और उसके जवाब मे जो सूझा वह रक्षमीय लगा- देखें और लुत्फ लेंः
सत्यवचन…..
मेरे साथ भी कुछ ऐसा पर अलग सा धमाल होता है
मुझे दिखता तो शेर सा है पर शेर की खाल होता है…..लोकेन
Bhagwan Singh
खाल में भूसा भरोगे वह अकड़ता जाएगा।
डाल दो पानी अगर तो घूर कर गुर्राएगा।।
और अगर भूसी भरी तो देखना अंजाम फिर।
कच्चे बच्चे जनके वह पूरी ग़ज़ल बन जाएगा