एक सुलझी सोच के सज्जन ने प्राइमरी स्कूल टीचर के अंदाज़ में सवाल किया- मनमोहन बड़े अर्थशास्त्री हैं या जेटली ? हैंड्स अप, हैंड्स डाउन या खानापूरी वाले तरीके से हां/ ना का निशान लगाएं।
मैं निशान लगाने ही जा रहा था कि हाथ रुक गया।
पूर्व प्रधानमंत्री की महिमा का इतना ह्रास कि उसकी औकात उसके अधीनस्थ एक ऐसे मंत्री से तौली जा रही जिसे वह कहता, ऊपर से आदेश आया है, अमुक फाइल को दबाऔ, अमुक फाइल को फौरन से पेश्तर आगे बढ़ाओ और अमुक पर अमुक आपत्ति लगाओ, जिसके समाधान का अधिकार ऊपर वाले को होगा, तो वह चूँ नहीं बोल सकता था।
तुलना ही करनी थी तो प्रधानमंत्री की प्रधानमंत्री से की होती।
चूक सबसे होती है, मुझसे भी. इसलिए इसका अधिक बुरा न मानते हुए भी मैंने सोचा इसका फैसला हम विश्वविख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह पर ही क्यों न छोड़ दें ?
मैंने डरते डरते पूछा यह मोदी अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान रखता है या नहीं?
सरदार जी बोले. कुछ नही जी। पक्का जीरो है । मैंने अपने समय में जो होने दिया था अब वह हो ही नही पा रहा है।