Post – 2017-11-07

चला था आपबीती सुनाने और कठोर सचाइयों को सह्य बनाना के चक्कर में खुदा बीती सुनाने लगा और अब इस तत्ववाली दलदल में फस गया कि अरबों ऐसे लोगों का मन रखने का लिए जो मोनते हैं कि खुदा, गॉड, ईश्वर या किसी भी भाषा में अपने किसी भी पर्याय से संबोधित किए जानावाले बन्दानवाज का अस्नेतित्व है और उसने आदमी को बनाया ही नहीं, उसे अपनी शक्ल तक दे दी, हम भी मोन लें कि ऐसा ही हुआ तो अपनी तो सवालों की भीड़ उठ खड़ी होती हैः
1. यदि उस ज़ीरो ने आदमी को अपनी शक्ल में बनाया तो उसकी शक्ल तो थी, फिर उसे निराकार तो नहीं कहा जा सकता?
2. उसने जब यह कायनात नहीं बनाई थी तब वह कहाँ था, कब से था, क्या कर रहा ?
३. उसकी शक्ल आदमी जैसी है तो उसे रहने को कोई जगह चाहिए थी. धरती और आसमान तो उसके हुक्म से बने उसे टिकने के लिए आसमान तो था ही नहीं?
४.आदमशक्ल था तो सांस तो लेना तो जीवित रहने के लिए जरूरी था. हवा तो बनी न थी, न कहीं रोशनी थी, वह देखता क्या रहा होगा?
५. वह जिस भी अवस्था में था, था. उसे यह पूरी कायनात बनाने की जरूरत क्या थी? किसके लिए बना रहा था ? आदमी के लिए तो नहीं. आदमी को तो उसने सबसे अंत में उसी प्रयोजन से बनाया होगा जिससे समूची सृष्टि को बनाया था. वह प्रयोजन क्या था?
६. आदमी को उसने खाक से बनाया और औरत को उस आदमी की पसली से तो दोनों में बेहतर बिल्डिंग मैटीरियल का इस्तेमाल किसे बनाने में हुआ ? यदि औरत के, तो दोनों में श्रेष्ठ कौन हुआ ?
७. यदि उसने मर्द को अपनी शक्ल दी तो औरत को किसकी शक्ल में बनाया ? क्या वह अर्धनारीश्वर था ? यदि नहीं तो क्या उसकी घरवाली भी थी जिसे उसने खुदा होने का एकाधिकार बचाए रखने के लिए पहले अपनी पसली से गढा हो और फिर उसकी शक्ल में औरतों को गढ़ा हो? इस दशा में मर्द जात की दबंगई कायम रहती है या रखी जा सकती है.
८. खुदा को अपने बन्दे क्यों पसंद हैं? अपनी रचना से वह इतना डरता क्यों है कि वह उसे बाँध कर रखना चाहता है?
९. बंदा का अर्थ आप जानते होंगे फिर भी कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो न जानते हों या जानकर भी जानने से कतराते हों. युद्ध में विजय के बाद बलाधिकृत जीवित सैनिकों को हाथ बाँध कर विजेता सरदार या सम्राट, वह जो भी हो उसके सामने लाया जाता था, उससे भी डरा रहता था कि कहीं वह उस पर हमला न कर दे . कायर कौन हुआ और बहादुर कौन हुआ? विजेता या विजित. किसने असमर्थ हो कर भी मरना कबूल किया -पर गुलाम बनने से इंकार किया . मात्र इस सोच के कारण कि वह मर सकता है , झुक नही सकता – हाथ पीठपीछे या आगे की और मोड़ कर या आगे की और बंध कर लाया जाता था वध के लिए.और वध कर दिया जाता था, अपनी सम्मान और स्वतंत्रता को प्राण से अधिक मूल्यवान समझाने वालों को शैतान की गिरफ्त में मान कर खुदा भी इनपर कहर वरपा करने का आदी था. वह उदारता उनके प्रति दिखाता था जो उसके समक्ष समर्पण कर देते थे. बाधने के लिए रस्सी की जरूरत न पडती, करबद्ध या मुश्कबद्ध की मुद्रा में उपस्थित होकर सर कटाने के लिए तत्पर भाव से जानुपात करते हुए सिर झुंका लेेते या दंडवत बिछ जाते थे कि सिर काटने में कोई परेशानी न हो, स्वेच्छा से, बिना चूं चपड़ किए गुलामी के लिए तैयार लोगों को खुदा का बंदा कहा जाता .
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दी को जैसे ही इस बात का इल्म हुआ कि उसने आदम को शक्ल भले अपनी दी हो, उसने किसी फितरत से अक्ल शैतान की भी ले ली देखिए ली भी तो उस पसलीजात से जो दिल के इतने करीब होने के कारण दिल का लेन देन तो कर सकती है, पर दिमाग से काम ले ही नहीं सकती। पर उसमेें अक्ल के नाम पर भूसा भर दिया। पर यह खेती से पहले का आदेशग्राही भूसा था।

दी और हमारी हावरा है जाके पांव न फटी बेवाई, सो का जाने पीर पराई। अच्छा है छोटे बच्चों को बेवाई नहीं फटती, पर यदि नहलाने