Post – 2017-09-02

गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा
हाफिज खुदा तुम्हारा।

रेलवे का संचालन तंत्र ऐसा जिसमें सफल या सफलता चाहने वाला आदमी यन्त्रमानव बन कर काम करता है। उन दिनों यन्त्रमानव कल्पनातीत था। कंप्यूटर कल्पनातीत था। टेलीविजन भारतीय बोधवृत्त से बाहर था। संचार का सबसे तेज माध्यम टेलीफोन था, पर प्रचलित साधऩ टेलीग्राफ औऱ टेलीप्रिंटर औऱ आशुलेखन। यहाँ तक कि फिल्मी मुहब्बत में भी आंखें मिलाने और जी धड़काने की छूट तो थी, पर आंखें लडाने पर पाबन्दी थीं और किसी को यह पता न था कि जी दिल का पर्याय है, या कोई ऐसा अंग जो आँखें मिलने के साथ पैदा होता है आँखें फेरते ही गायब हो जाता है, इसलिए इसे कायविज्ञानी समझ नहीं पाते थे और अक्षिविज्ञानी समझने चलते तो पाते इससे नजर बदलती नहीं नजरिया अवश्य बदल जाता है, जो दर्शन क्षेत्र में आता है । सोच का स्तर इतना गिरा हुआ था किसी को यह पता न था कि आंखें मिलाने और जी के धड़कने का मामला काव्यालोचन और आंखें लड़ाने का मामला भारतीय दंड संहिता के क्षेत्र में आता है, क्योंकि लड़ना लड़ाना वैसे भी जुर्म है, गो संगीन नहीं, पर इसके बाद ही जान देने, जान लेने का कारोबार शुरू हो जाता था जो खासे संगीन हैं।

हमारा जमाना बाद के दशक में पैदा हुओं से दसकों पिछड़ा नहीं था, युगों पिछड़ा था। प्यार कहने से पहले लोग बूढ़े हो जाते थे, और मरते समय भी अपने बच्चों को यह न बता पाते थे कि मैने भी कभी किसी से प्यार किया था, जब कि पोता कहता है, दादा जी वह खंडाला चलने को कह रही है, कुछ पैसों का इन्तजाम करेंगे?

बुढ़पा भूल कर भी गाठ ढीली करने को तैयार होना पड़ता है कि तभी याद आता, रेप तब तक लोगों की जबान से ही नहीं, शव्दकोश से भी गायब था, रैगिंग का नाम सुनने में न आता था। बदहवासी में दरयाफ्त करना पड़ता है, ‘नौजवान तुम मेरे कौन हो? मैं कहां हू? जहां कभी था, उससे आगे या पीछे? आगे के युगों का हिसाब जोड़ लिया था, वह गलत हो गया, कितने युग पीछ हो गए हैं, इसका हिसाब बताओ तो सही । ‘

मेरे समय में दुर्घटनाएं इतनी कम हौती थीं कि मै यह देखने को तरस गया कि तकनीकी दुर्घटना से अलग वह दुर्घटना कब और क्यों होती और होती है तो कैसी होती है, जिससे बचने के लिए आदमी को मशीन का पुर्जा बना दिया जाता है?

मैं अपनी जगह से हिल नही सकता था, या प्राक्सी का प्रबन्ध करके ही शंकानिवारण के लिए भी हट सकता था।

टेलीफोन क्लर्क की ड्यूटी ऐसी कि आप अगले जोड़ीदार के आने के बाद उसे चार्ज र्सौंपने, और यह समझाने के बाद ही कि उसे क्या क्या करना है, काम से मुक्त हो सकते थे। यदि फिटिंग स्टाफ में विभिन्न शिकायतों को ठीक करनेवालों से कोई कमी दूर करने से रह गई तो उसकी खैर नहीं। सब कुछ रेकार्ड समय सीमा में ही होना चाहिए। ड्राइवर ड्यूटी पर आने के बाद पहला काम यह चेक करने का करेगा सारे पुर्जे सही तो है । शिफ्ट का पर्यवेक्षक समस्त गतिविधियों की डायरी तैयार करेगा जिसकी प्रति रोज जिला मकैनिकल इंजीनियर को जाएगी और जिसके विरुद्ध कोई टिप्पणी गई उसके निलंबन की प्रक्रिया आरम्भ।

यदि जोड़ीदार नही आया तो अगले आठ घंटे वहीं बिताने होते और एक बार तो बत्तीस घंटे लगातार जमे रहना पड़ा। रेलवे के संचलन से संबन्धित सभी संभाग – लोकेो मोटिव, इंजीनियरी, , परियात या ट्रैफिक घड़ी के घंटा, मिनिट और सेकंड के दांतेदार पहियों की तरह एक दूसरे से जुड होते और यांत्रिक तालमेल से काम करते हैं। यान्त्रिकता में ढील आई, शिथिलता के दुष्परिणाम अनिवार्य हैं। इसलिए मामूली से मामूली विचलन को बहुत कठोर कदम लेते और दंडित करते हुए हतोत्साहित किया जाता ।