Post – 2017-08-24

तीन तलाक का भविष्य

उन्हें डर था कि अब जाने कहां तक बात पहुंचेगी।
अभी तो इब्तदा है, इन्तहा तक बात पहुंचेगी ।।

गुलामी की लम्बी आदत में अन्याय और उत्पीड़न की कुछ रीतियां आकर्षक लगने लगती है। सैडिज्म और मैसोकिज्म एक दूसरे की जरूरत बने रहते है। महिलाओं की एक बड़ी संख्या अपने ऊपर आग्रहपूर्वक थोपी गई पाबन्दियों और अपने साथ किये जाने वाले अत्याचारों को मजहबी विधान, इज्जत या शालीनता का हिस्सा मान कर इनका पालन करने की हिमायत करती हैं। शिक्षा, संचार के आधुनिक साधनों और दूसरे समुदायों के प्रभाव में ऐसे प्रचलनों के विरुद्ध उनके बीच लगभग सर्वानुमति पैदा करती हैं जिससे किसी एक में उसे चुनौती देने का साहस पैदा होता है और अपने पूरे समुदाय का समर्थन मिलता है। अत्याचार को अधिकार मानने वाले, इस तथ्य के बावजूद कि इसके दुष्परिणाम उनकी ही बेटियों, बहनों को झेलना पड़ता है जिन्हें वे सुखी देखना चाहते हैं, जुल्म ढाने के अपने अधिकार को छोड़ना नहीं चाहते, अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर विराजमान किसी व्यक्ति को तीन तलाक को जारी रखने का खयाल नहीं आ सकता था,और वह आधुनिक शिक्षा प्राप्त होते हुए कठमुल्लों का साथ न देता।

कठमुल्लों को और ऐसे जज का, ऐसे चलन का, जो उसके धर्मग्रन्थों के विधान के विपरीत है और जिसको लगभग सभी अनुचित मान रहे थे, समर्थन इस प्राकृत न्याय से भय के कारण लग रहा था कि गुलामी की एक बेड़ी भी टूटी तो एक एक करके दूसरी बेड़िया तोड़ने की आकांक्षा पैदा होगी और यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तब सभी प्रतिबन्ध हट नहीं जाते।

इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं को आजादी तो नहीं मिली, पर आजादी की लड़ाई का रास्ता खुला है । प्रकट रूप में गुस्से या नशे में एक पर एक तीन तलाक कह कर छुट्टी पाने पर रोक अवश्य लगी है। हलाला के चलन पर लगभग पूरी रोक लग जाएगी क्योंकि तैश में आकर लिए गए ऐसे तलाक में गलती का अहसास होने पर हलाला की नौबत आती है। मुल्लों की अपनी आमदनी और मस्ती का एक जरिया खत्म हो गया । सरकार को इस विषय में कानून बनाना है और आज ऐसी सरकार है जो ऐसे तलाक पर कठोर दंड की व्यवस्था तो कर ही सकती है, अन्यथा भी तलाक शुदा महिलाओं और यतीम होने वाले बच्चों के आर्थिक हितों की रक्षा करने वाले विधान ला सकती है, जिससे तलाक की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा ।

अगली लड़ाई बहुविवाह के विरुद्ध होनी है जिसकी दर तलाक से अधिक है और जिसकी यातना तीन तलाक से भी अधिक मर्माहत करने वाली है । परन्तु उसके विषय में इस फैसले ने परसनल ला को अछूता रखने की शर्त लगा कर प्रतिगामी निर्णय दिया है। इस विषय में वर्तमान सरकार भी जुझारू महिलाओं के आन्दोलन की प्रतीक्षा करने को बाध्य है, परन्तु महिलाओं को भी तलाक का अधिकार देकर इससे मुक्ति की संभावना कम से कम ऐसी औरतों के मामले में पैदा कर ही सकती है जो आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर रह सकती हैं ।

महिलाओं में शिक्षा के प्रसार के अनुपात में ही इस जंग में तेजी आएगी । मोदी सरकार ने मुस्लिम बालिकाओं की शिक्षा पर प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था करके उसमें अपनी भूमिका अदा कर दी है।

कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने मुल्लों का साथ दे कर और दूसरे दलों ने ठंडा रुख दिखाकर और इनकी तुलना में भाजपा ने पूरा समर्थन दे कर ही नहीं आगे की जंग में एकमात्र हितैषी का विश्वास दिला कर वोटबैंक का खेल खेले बिना, मुस्लिम महिलाओं के मत पर एकाधिकार कर लिया जिससे आगामी एक ही नहीं सभी चुनावों में भारी लाभ मिलेगा। परन्तु अपने को सेक्युलर और प्रगतिशील कहने वालों ने यह सिद्ध कर दिया कि वे मुस्लिम समाज के साथ नही उसके मुल्लों के साथ खड़े रहे है और नकारात्मक राजनीति करते रहे हैं जो सकारात्मक राजनीति के एक तेवर मात्र से जमीन पर आ जाती है। जिन्हें मेरा यह आरोप अनुचित लगता रहा हो की सेकुलारिस्म मुस्लिम लीग के एजेंडे को अपना कार्यभार मानता है वे उसकी पुष्टि यहाँ भी देख सकते हैं.