Post – 2017-07-04

सच के पीछे भी कई सच हैं इन्हे देखिये तो

आज मैं तुम्हे कन्नी काटने नहीं दूंगा। यह बताओ गोरक्षा के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उसे तुम ठीक मानते हो?

तुम्हारे रात दिन मनाने के बाद भी पागल तो नहीं हुआ हूँ कि किसी भी तरह की बेहूदगी को ठीक मान लूँ।

तो फिर इसके विरोध में कुछ लिखा क्यों नहीं? मोदी और भाजपा को बचाना चाहते थे?

मोदी से मेरा क्या लेना देना? उसका स्वयंसेवी वकील तभी तक हूँ जब तक तुम्हारे हमले के कारण वह भला आदमी संकट में है। इतने सारे, अपने हुनर में माहिर, हमलावर उसे इसलिए मिटा देना चाहते हैं कि वह देश को एक नई दिशा में ले जाना चाहता है। इंसानियत पर वकालत नहीं चलती फिर भी वकीलों में भी कुछ इंसान अभी तक बचे हुए है। जिस दिन तुम तुम्हे अक्ल आजायेगी, तुम उस पर अन्याय करना बंद कर दोगे मैं तुम्हारा हूँ तुम हो हमारे सनम गाता हुआ तुम्हारे साथ हो लूंगा। अभी तो मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ। सच कहो तो अपनी और अपनों की इज़्ज़त बचाना चाहता हूँ।”

अजीब घामड़ आदमी हो यार! क्या मैं यह सब करा रहा हूँ?

सच कहो तो मैं इतना कमअक़्ल हूँ कि अपने कार्यक्षेत्र को छोड़कर किसी अन्य के बारे में जो कुछ जानता हूँ वह मात्र सूचना होती है. जानकारी तक नहीं! ठीक वैसे ही जैसे किसी संगीतकार, चित्रकार, अभिनेता, वैज्ञानिक, व्यवसायी, अर्थात अपने सरोकार और महारत के क्षेत्र को ही पूरा संसार मानने और उस संसार को बचाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने वाले के साथ होता है।

उसकी समझ में कुछ आ नहीं रहा था इसलिए वह झल्ला तो रहा था पर अपने को संयत करने में इतनी ताक़त लगा रहा था कि मुझे शक था कि जो कुछ मैं कह रहा हूँ उसे वह ठीक से सुन भी पा रहा था या नहीं। मैंने इसे लक्ष्य किया पर इसका आभास उसे न होने दिया।

ये सभी अपने कार्यक्षेत्र का सम्मान करते हैं, और इसलिए इनके शिखर पुरुषों का सभी, यहां तक कि साहित्यकार भी इतना सम्मान करता है, जितना अपने क्षेत्र के शिरोमणियों का भी सम्मान नहीं करता और यह अकेला निर्णय है जिसमें मैं उनके साथ हूँ । साहित्यकार की अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा होने के कारण उसे यह भरम हो जाता है कि भाषा का जितने क्षेत्रों और जितने रूपों में उपयोग होता है, उन सभी पर उसका अधिकार है। वह साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का हो जाता है तो अपने देश को छोड़कर उन सभी देशों को जानता है जन पर वह अधिकार करना चाहता है।

तुम जानते हो तुम क्या हो?

उत्तर तो उसे देना न था, मैंने ही कहा, तुम अपनी ग्रह कक्षा से भटके हुए नक्षत्र हो जिसे किसी शक्तिपुंज से टकरा कर उल्का पिंडों में बदलना और जहां गिरे वहां ध्वंस करना ही बदा है।

सार्थकता पाने के लिए अपनी ग्रहकक्षा में लौटना होगा। कर पाओ तो कल बात करेंगे।