कई तरह की हैं आहें तेरी शरारत में
साफ बतला क्या कभी खुल के रो नहीं सकता?
ये हंसी, ऐसे ठहाके, यह मुसलसिल मुस्कान
इतनी पोशीदगी! इंसान ढो नहीं सकता।
कई तरह की हैं आहें तेरी शरारत में
साफ बतला क्या कभी खुल के रो नहीं सकता?
ये हंसी, ऐसे ठहाके, यह मुसलसिल मुस्कान
इतनी पोशीदगी! इंसान ढो नहीं सकता।