Post – 2017-07-04

कई तरह की हैं आहें तेरी शरारत में
साफ बतला क्या कभी खुल के रो नहीं सकता?
ये हंसी, ऐसे ठहाके, यह मुसलसिल मुस्कान
इतनी पोशीदगी! इंसान ढो नहीं सकता।