जिस तरह की कुटिलता से कंपनी ने अपना साम्राज्य विस्तार किया था उसी तरह की कुटिलता के बल पर वह इसे अपने चंगुल में रखना चाहती थी. इसी का हिस्सा था सब्ज बाग़ दिखाना पर सब्जी तक हाथ पहुँचने न देना. आधिकारिक पदों पर अंग्रेजों को रखना और भारतीयों को ताबेदार बनाकर और हर तरह से निरुपाय बना कर रखना. सत्ता की यह पुरानी इंजीनियरी है जो सुमेरी सभ्यता से लेकर भारत की वर्णवादी संस्कृति तक में बनी रही है. यह कम हैरानी की बात नहीं की हमारे समाज के सबसे ऊपर माने जाने वाले ब्राह्मण और क्षत्रिय हाथ से काम नहीं करते, सारा उद्यम, कौशल, कला – वास्तु, मूर्ति, धातुकर्म, काष्ठशिल्प, भांड निर्माण, वस्त्र, अलंकार, माला बनाने से लेकर कांड, मूल,फल, फूल और शहद तक, करने, नृत्य, संगीत, चित्रकला और नाटक तक – और इनका लाभ हज़ारों साल से उन्हें मिलता रहा जिन्होंने संपत्ति के साधनो, उन्नत ज्ञान और हथियार को अपने तक सीमित रख कर श्रमिकों और उत्पादकों को इनसे वंचित कर दिया था. ईद लिए यह सोचने वाले कि बहुत कम संख्या में होने के कारण विशाल क्षेत्र और जनसंख्या पर कब्जा जमाये नही र खा जा सकता उन्हें इतिहास न दिखाई देता हो वर्तमान ही दिखाई दे की कितने कम लोगों के पास विश्व कि कितनी सम्पदा सिमटी हुई है और शेष सारा मानव समुदाय उनकी योजना के अनुसार चल रहा है तो सम्पदा और सत्ता के चरित्र को समझने में आसानी हो.