मैं इन दिनों अपनी पुस्तक के पांचवें खंड की प्रेस कापी तैयार कर रहा हूं । संपादन के क्रम में अपनी 16.11.16 की पोस्ट पर पहुंंचा तो निम्न पंक्तियों पर ध्यान गया और कुछ दिनों से चल रहे पद्मिनी प्रसंग पर चल रहे हंगामे के प्रसंग में लगा इनकी कुछ सार्थकता हो सकती है इसलिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूं:
..अब आप देखें तो जिन्ना ने जो कहा था उसे वाम ने सेक्युलरिज्म की आड़ में पूरा किया और आज भी हिन्दू संस्कृति, विश्वासों और रीतियों पर लगातार अपमानजनक ढंग से प्रहार किए ही नहीं जाते रहे हैं, इन्हें पाठ्यक्रमों में डाल कर सामान्य चेतना और विश्वास का हिस्सा बनाया जाता रहा है। इसके विपरीत मुस्लिम या ईसाई समाज की गर्हित, नारीद्रोही रीतियों पर इस सेक्युलरिज्म में सुहानुभूति या समर्थन का एक सुझाव या उस पीड़ा का किसी कृति में चित्रण तक नहीं मिलता। हिन्दू संगठनों के प्रति इसमें बिना सटीक कारण या प्रमाण दिए इतनी घृणा का प्रसार किया गया कि उनका नाम आते ही घृणा का वह ज्वार उभर कर चेतना को इतना विकृत कर देता है कि उसके सद्प्रयास भी दुष्प्रयास या शठतन्त्र प्रतीत हाता है। अपनी शिक्षा पर आत्मस्फीति का हाल यह कि यह अपने अज्ञान को भी ज्ञान से श्रेेष्ठतर मानता है। भारतीय परंपरा, इतिहास, संस्कृति से अनभिज्ञ रह गया तो तेजस्विता बढ़ गई। इस अनभिज्ञता के कारण वह अपने समाज को भी नहीं समझ सकता, क्योंकि सारा समाज उन्हीं पुरातन दायों को अपनी पूंजी मान कर जीता और व्यवहार करता है।
समाज को न समझने के बाद भी यह इस विषय में दृढ़ संकल्प है कि वह इसे बदल कर दम लेगा। समाज से नासमझ होते हुए भी यह अधिकार और जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता ही नहीं है, इस पर सामरिक तैयारी के साथ प्रहार करता है।