Post – 2016-09-25

मुझे आज अपनी शृंखला से हट कर ओम थानवी की एक पोस्‍ट और उस पर आई प्रतिक्रियाओं से प्रभावित हो कर अपनी टिप्‍पणी देने की आवश्‍यकता अनुभव हुई। प्रतिक्रिया के रूप में लिखा कि आज की पोस्‍ट मैं इसी पर केन्द्रित करूँगा । वह लिखना शुरू ही किया कि मेरी चेतना में यह तथ्‍य कि कितने समय से कितने सारे लोग लगातार एक ही व्‍यक्ति के एक ही पक्ष को लेकर सोच, गढ़ और कह रहे हैं, और उससे बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं, दूसरा कुछ दिखाई ही नहीं पढ़ रहा है, दिखाई भी पड़ता है तो कितना धुंधला, कि अवचेतन ने एक मिसरा ठोक दिया

गौर से देखिए उस जुल्‍फे परेशां को मगर
यह भी तो जानिए खुद आप परेशान से हैं।

सोचा चलो इसकी भी खलिश पूरी हो गई कि कुछ देर बाद एक और

दीवाने के हर काम में दीवानगी मत ढूंढ़
कुछ ऐसा भी करे है, लोग याद करेंगे।

अब वह पोस्‍ट तो शाम तक आएगी, पर रचनाप्रकिया के इस दुहरे चरित्र को तो शेयर किया ही जा सकता है। चेतन कुछ सोच रहा है अवचेतन कुछ और, और दोनों के बीच एक ऐन्‍द्रजालिक रिश्‍ता।