शिकायत तुमको भी मुझको भी थी इस जिन्दगी से पर
तुम्हें ही कल तलक कहता था ‘मेरी जिन्दगी’ जानां ।
न मैं कुछ सोच सकता हूँ न तुम कुछ जान सकती हो
जमाने से जिसे हम मानते हैं तुमने भी माना ।
शिकायत तुमको भी मुझको भी थी इस जिन्दगी से पर
तुम्हें ही कल तलक कहता था ‘मेरी जिन्दगी’ जानां ।
न मैं कुछ सोच सकता हूँ न तुम कुछ जान सकती हो
जमाने से जिसे हम मानते हैं तुमने भी माना ।