Post – 2016-08-08

निदान – 15

(मैंने जो लिखा था वह बीच में मित्रों की पोस्‍ट पर ध्‍यान देने के कारण लुप्‍त हो गया। कृपया यह न बताएं कि अापके मन्‍तव्‍य क्‍या हैं। मैं लाइक करने वाले प्रत्‍येक व्‍यक्ति को देखता हूं यह जानने के लिए कि किस रुचि, प्रकृति अौर पूर्वराग के लोग इसे पसन्‍द कर रहे हैं। मैं आप सबका आभारी हूं पर आज की पोस्‍ट वह तो नहीं जो लिखी गई थी।)

”तुम लाख बचाओ मुझको सनम हम अपना कबाड़ा कर लेंगे। यह शेर तुमने पहले कभी सुना है।
मैं नहीं कहने जा रहा था, पर मेरे मुंह से ‘न’ निकला ही था कि वह दाखिल हो गया, ”मैं भी जानता था, न सुना होगा क्योकि यह मेरा है और मैंने अभी अभी इसे गढ़ा है तुम्हारी और मोदी की मरम्मरत के लिए।”
मैं हक्क बक्का उसे देखने लगा क्योंकि कोई सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था।
”तुम तीन तेरह करके उस आदमी को बचाना चाहते हो, वह आदमी फन्दा हाथ मे लिए घूम रहा है कि आओ और मुझे लटका दो। एकदम बौखला गया है, तुम बचाना चाहो तो भी बचा नहीं पाओगे। सुना आज क्या कहा, कहा, अगर गोली मारनी है तो मेरे दलित भाइयों को गोली मारने की जगह मुझे गोली मार दो। बोलो, बचा सकोगे।”
”इतना पुराना साथ है, तब से जब मोदी स्कूल में पढ़ रहे होंगे, मैं तो तुमको सड़ने से नहीं बचा सका, तो उस आदमी को छाती तानने के कैसे रोक सकता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि नफरत की फसल उगाने का जो काम तुम लोगों ने जिनके लिए सेक्यु लरिस्ट , शब्द को प्रयोग होता है, ब्रिटेन से विरासत में पाई है, उसको निर्विष करने का कोई रसायन मोदी के पास नहीं है, सिवाय उस सीने को चीर कर दिखाने के जिसे केवल पुराणकथा में ही हनुमान कर सके थे। सीता की आँखें तुम्हारी ही तरह फूटी होतीं तो उन्हें उस फटे हुए वक्ष के भीतर राम न दिखाई दिए होते, जैसे तुमको मोदी की दलित वेदना न दिखाई देती होगी, और दिखाई दे रही है तो बौखलाहट बन कर ।”
वह हँसने लगा, ”यार लफ्फाजी तेरी लाजवाब है, पर यह बता, सच्चे दिल से बताना, तुम्हेंँ मोदी ने क्या खिला दिया है कि उसका नाम आते ही तू ”जान हथेली पर ले आया।” गाने लगते हो। जानते हो इससे तुमने साहित्य जगत में अपनी साख कितनी गँवाई है।”
”तुम सवाल भी करते हो और जवाब भी दे देते हो। तुम्हीं कह रहे हो मैंने गँवाया है, पाया या खाया नहीं है । मैं गँवाने वालों की जमात का एक अदना सदस्य हूँ जो चाहते हैं, मैं मर जाऊँ पर मेरे देश और समाज को खरोंच न आए। मोदी मेरा नेता नहीं, उस जमात में शामिल एक अदना सदस्य है पर जीवट और अध्यवसाय उसमें मुझसे बहुत अधिक है और जितने दबावों के बीच वह जीवट बना रहता है उसे देखता हूँ तो मुझे वह मुझसे ही नहीं, रामविलास शर्मा से भी बड़ा लगता है जिनका कहना था मुझे मत याद रखो परन्तु मेरे विचारों को समझो, इनको आगे ले जाओ। मैं तो रामविलास जी से उम्र में भी छोटा हूँ और यश में भी, परन्तु यह आदमी हम दोनों से हर तरह से छोटा होते हुए भी इतना अलग और उन आग में तप कर भी जिसमें कच्चेे कलेजे और कच्ची समझ और कच्चे इरादे के लोग भस्म, हो जाते है अग्निशुद्ध निकला है। इस आँच के निकट हम गए भी नहीं, उससे हमे गुजरना भी नहीं पड़ा। ”
वह ताली बजा कर हँसने लगा, ”चापलूसी सी चापलूसी है फिर भी भगवान की जबाँ से है।”
”देखो, तुम को अपना इतिहास याद रखना चाहिए, क्यों कि तुम अपने दर्शन को ऐतिहासिक और द्वन्द्वात्म क भौतिकवाद कहते हो। इतिहास तुम्हा रा यह है कि जो सत्ता में रहा उसकी इस हद तक चापलूसी की कि उसका दिमाग अपनी महिमा के बोझ के नीचे दब कर पिचक गया और वह उन लोगों को भी तलाश कर मारने, सताने और निर्मूल करने लगे जिन्होने आन्दोलन में उसका साथ दिया था। उसके सत्ता से अलग होते ही तुम उनका मानमर्दन और अगले की विरुद गाथा में जुट गए। अब जब कोई नहीं है जिससे कुछ मिल सके तो मैं यह पहले भी कह आया हूँ, अमरीका केवल अमरीका, कटा रूस से साथ सभी का। गाते हुए जगह बना रहे हो और कभी जैसे रूस की खाकर रूस की गाते थे उसी तरह आज अमरीका की खाकर उसकी गाते और उसके प्रोग्राम का हिस्सा बन कर अपने ही देश के विरुद्ध कार्यक्रमों में हिस्सा बँटाते हो, अपनी उपस्थिति संचार माध्यमो से दर्ज कराते हो, और जो ध्यावे फल पावे कष्ट मिटे तन का लाभ उठाते हो। गलत कहा मैंने।
हम दोनों की एक समस्‍या है, दूसरी पार्टियों और संगठनों की भी यही विवशता है। गलत वे होते नहीं, सही वे हो नहीं सकते। वे अपनी नजर में सही होते हुए भी नतीजों से अपने सही गलत होने को परखने का प्रयत्‍न नहीं करते। मैं नहीं कहता, पूरा देश कह रहा था तुम गलत हो और उसने एक ऐसे व्‍यक्ति को चुना जिसे तुम काम करने नहीं देते और सवाल करते हो, परिणाम तो दिखाओ। परिणाम देश के लिए अहितकर हों तो उस पर जश्‍न मनाते हो। देश का बुरा हुआ, यह तुम्‍हें अच्‍छा लगता है, क्‍योंकि इस तरह की चूक से तुमको विश्‍वास पैदा होता है कि सड़े तो हैं यह जाहिर है मगर हम मर नहीं सकते। मेरा हित देश का हित इससे आगे बढ़ नहीं सकते।”
जिसकी तुम बात कर रहे हो उसे सियासत कहते हैं। हमारी मूल्‍यपरंपरा का शब्‍द नहीं है इसलिए इसका अर्थ होता है गर्हित से गहर्ति साधन का उपयोग करते हुए सत्‍ता पर अधिकार और उसे बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक गिरने की तैयारी। तुम जिस मोदी से नफरत करते हो वह राजनीति करता है, देश और समाज को आगे ले जाने की चिन्‍ता से ग्रस्‍त है। तुम लोग, तुम सभी, तानाशाही के समर्थक हो। मोदी लोकतन्‍त्रवादी है। तुम लोकतन्‍त्र को प्रचार साधनों से जिनकी गर्हणा की कहानिया उनके पवित्र प्रोग्रामों के बाद के प्रोग्राम कहते हैं, उनके माध्‍यम से लोकतान्त्रिक विकल्‍प को मिटाना चाहते हो, मोदी उसे जीवित रखना चाहता है। जिस कश्‍मीर में लोकतांत्रिक विकल्‍प का उसने सम्‍मान किया उसकी समस्‍याओं के लिए लगातार सभी संचारमाध्‍यम और विचार माध्‍यम कटाक्ष करते रहे कि पीडीपी से मिल कर सरकार चलाने की कीमत चुकाओ और उकसाते रहे कि सरकार को खत्‍म करके राष्‍ट्रपति शासन लगाओ उसमें जहर के घूंट पीते हुए भी वह लोकतन्‍त्र की रक्षा करता रहा और हताशाओं के बवंडरों के बीच न हारा, न झुका और न पीछे हटा। मुझे उसके कहे और किए पर विश्‍वास है क्‍योंकि दोनों में फांक नहीं है। राजनीति आजकल सबसे लाभकर उद्योग बना दिया गया है। बिना पूँजी के, फेफड़ के जाेर और दिमाग और उच्‍च सरोकारों को तिलांजलि दे कर मालामाल होने और इस तिजारत को खानदानी बनाने की कला, उसमें वह बिना बाेले एक निवेदन बन जाता है, इस अंधेरे में अकेले मैं दिया हूँ / मत बुझाओ/ जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी।”
और जानते हो हम इस पंक्ति को किस तरह पढ़ते हैं : रोशनी में धुंध बन कर मैं खड़ा हूँ/ मत हटाओं । जब मिलेगी चांदनी मुझसे मिलेगी।”
”अपनी अपनी किस्‍मत अपना अपना प्राप्‍य । क्‍या कहा जा सकता है।”

2
वह चलने को हुआ तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। मेरा मन बहुत खिन्‍न था। पीडि़त स्‍वर में ही मैंने कहा, ”देखो हमने बहुत लंबे संघर्ष के बाद यह स्‍वतन्‍त्रता पाई और इसमें लोकतन्‍त्र बचा रहे इसके इतने सारे जुगाड़ इसलिए कर
रखे हैं कि तानाशाही के खतरे सामने थे। मुस्लिम लीग में तो बहुत पहले से लोकतन्‍त्र के प्रति नफरत थी, अत: यदि पाकिस्‍तान तानाशाही का शिकार हआ तो हैरानी की बात नहीं। जिसे तुम मोदी मोदी समझते हो वह मेरे भीतर का लोकतन्‍त्र लोकतन्‍त्र का चीत्‍कार है। तुम्‍हारे यहां तो लोकतन्‍त्र को पूंजीवादी तन्‍त्र माना जाता है, गुलामी के आदी हो चुके देश और समाज भी मैसोकिस्‍ट होते हैं। उनको हंटर लगाने वाले एक तानाशाह की जरूरत होती है, जरूरत भी तड़प की हद तक। पहले दिन से, इस व्‍यक्ति के चुनाव प्रचार से पहले जनभावना ने उसे अपना भावी प्रधान मन्‍त्री चुन लिया था। उसी समय से लगातार हाहाकार मचाते रहे तुम लोग। उसी दिन से कांग्रेस में सन्निपात ग्रस्‍तता आ गई थी और अंड बंड ऐसे फैसले लिए जा रहे थे कि जो जुए की बाजी जैसे थे और जिनसे अर्थव्‍यवस्‍था इतनी जर्जर हो जाय कि संभाले न संभले। पर यह पहला आदमी है जो तुमसे लगातार भाजपा के शासन को कायम रखने के लिए नहीं, लोकतन्‍त्र की आत्‍मा को बचाए रखने की जंग लड़ रहा है। देश और समाज की तो तुम्‍हें चिन्‍ता रही नहीं परन्‍तु गुंडागर्दी के हथकंडों से लोकतन्‍त्र को नष्‍ट करने के उपक्रम जो तुम लोग कर रहे हो, उससे बचाओ। इसे हासिल करने के लिए खून तो बहा नहीं सके, बचाए रखने के लिए पसीना तक नहीं बहाया, कुर्सीक्रान्ति करते रहे, पर हम इसे बचाए रख सकें, इसके लिए अपनी लार को तो रोक कर रखो। तुम लोगों को देख कर मुझे बार बार पाव्‍लोव का रिफ्लेक्‍स ऐक्‍शन याद आता है।
यह आदमी जितना जनता का विश्‍वास उसमें बना हुआ है और लगातार बढ़ रहा है क्‍योंकि अपनी ऊलउजूल हरकतों से तुम लोक स्‍वत: निस्‍तेज होते जा रहे हो।
पहला व्‍यक्ति है जो तपस्‍वीकी तरह आज तक समाज सेवा की अपनी समझ के अनुसार लड़ा है। तुम्‍हें पता है नेहरू का खाना राष्‍ट्रपति के रसोई घर से जाता था, यह अपनी रोटी स्‍वयं पकाता है अपने आटा चावल से। प्रलोभन भी यदि है तो देश हित के लिए जीवन उत्‍सर्ग करने का। निन्‍दक और चुगलखोर किसी भी सद्गुण को दुर्गुण बता सकते हैं, सिद्ध कर सकते है, यह दो हजार साल पहले भर्तृहरि बता आए हैं। तुम काम को देखो, उन्‍हें परिभाषित मत करो। जहां चूक हो उसकी और केवल उसकी आलोचना करो। यह पहला प्रधानमंन्‍त्री है जो कुलीन नहीं है, जिसका कोई न कुल है न बिरादरी जिसकी राजनीति कर सके। यह पहला प्रधान मंत्री है जो कैरियर की तलाश के घर छोड़ कर नहीं, सत्‍य और सार्थकता की तलाश में निकला था और वहां उसे ऐसे गुरु उसके सौभाग्‍य से मिले जिन्‍होंने उसे मन्‍त्र दिया कि इसकी तलाश जीवन और समाज के हित में करो। सियासत करने के आदी लोगों के बीच वह अकेला राजनीति करता है। उसे काम करने दो। उपद्रवकारी बन कर व्‍यवधान मत डालो। लोकतन्‍त्र में मेरी निष्‍ठा इस व्‍यक्ति के प्रति आत्‍मीयता जगाती है, इसे रालतन्‍त्र पर पलने वाले नहीं समझ सकते।