Post – 2016-08-07

सभी रहते हैं अपनी ही जमीं पर आसमानों मे
मैं अपने आसमां को सबसे ऊंचा और बड़ा समझा ।
जमाने को समझता क्‍या जमीं को जब नहीं समझा
तुम्‍हीं देखो कि तुम क्‍या थे और मैंने तुमकाे क्‍या समझा ।
बड़ी मुश्किल में जां थी जान के दुश्‍मन हजारों थे
मगर हर दुश्‍मने जां को मैं अपना और सगा समझा।
मिले धोखों पर धोखे फिर भी इत्‍मीनान कायम था
पिया जहराब उससे आबे जमजम का मजा समझा ।
कहाँ की बात करते किस समय की बात करते हो
अरे भगवान तूने आदमी को ही कहां समझा।
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हम न समझेंगे तुम्‍हारी बात फिर भी देखना
तुमको समझाएंगे तुमको क्‍यों समझ पाया नहीं।