Post – 2016-02-09

न मैंने सोचा न मैंने देखा न मैंने जाना

मैंने तो यह सोचा ही नहीं था कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों की दशा एक जैसी ही है।

पहले तो यह समझो कि हिन्दुस्ताान नाम का कोई देश नहीं है, कभी हुआ करता था, कुछ सौ बरसों तक, अब वह भारत, पाकिस्तान और बांग्ला देश में बट चुका है, इसलिए अगर तुम हिन्दुरस्तान की बात करोगे तो पड़ोसियों को चिन्ता् होगी कि तुम उन्हेंं हड़पना चाहते हो। इंडिया भी उसे ही कहा जाता था। इंडिया जैसा देश भी नहीं है।

तुमने भारतीय संविधान पढ़ा है। इसके लिए संविधान पढ़ने की जरूरत नहीं।

हमारे संविधान में बहुत कुछ गलत था। न होता तो इतनी बार संशोधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह नहीं कह सकते कि अभी बहुत कुछ गलत बचा नहीं रह गया है जिसके लिए आगे संशोधनों की जरूरत पड़ सकती है। इंडिया जिस नदी के नाम पर रखा गया था, वह पाकिस्तान में है। हिन्द जिस सिन्ध का ईरानी नाम था वह भी पाकिस्तान में है और देखो यह जो तुम ‘पंजाब सिन्धं गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगा’ गाते हो उसको भी राष्ट्र संघ में चुनौती दी जा सकती है। तुम्हारे देश के किसी भूभाग को दूसरे के नक्शे में दिखा दिया जाय तो कोहराम मच जाता है और तुमने दूसरे देश का एक पूरा प्रान्त ही अपनी राष्ट्रगान में दबोच रखा है और उनको इसकी खबर ही नहीं। वह गाना ऐतिहासिक है, उसे विभाजित हिन्दुरस्तान का राष्‍ट्रगान नहीं बनाना चाहिए था।

इस पर तो मैंने गौर ही नहीं किया था।

गौर तो तुमने इस पर भी नहीं किया होगा कि जो अपने राज्यों की या अंचलों की भाषाऍं हैं उनको राष्ट्रभाषाऍं कहा जाने लगा मानो तुम्हारा देश राष्ट्र मंडल हो, न कि राष्ट्र , और जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में परिकल्पित किया गया था और व्यावहारिक रूप में जो आज भी राष्ट्र भाषा है क्योंकि इसी का टूटा फूटा ज्ञान रखने वाला कोई न कोई तुम्हें उन क्षेत्रों के गॉंवों और अनपढ़ों में भी मिल जाएगा जिसने कसम खा रखी थी कि हम हिन्दी को राष्ट्राभाषा नहीं बनने देंगे, पूरे भारतीय भूभाग में कहीं सघन कहीं विरल इसी की उपस्थिति मिलती है, पर संविधान में इसे राजकाज की भाषा या अफिशियल लैंग्वेज कहा गया, भले उसमें काम न होता हो। राज्य भाषाऍं राष्ट्रभाषाऍं और राष्ट्रभाषा राजभाषा। यह उलटबॉंसियों का देश है यार।

तुम्हारी चले तो तुम इसे उपमहाद्वीपीय भाषा बना दो। किसी महाद्वीप या उपमहाद्वीप के लिए एक भाषा की कल्पना अभी तक की नहीं गई। ऐसी नौबत आई तो हम इसे सार्कभाषा तो कह ही सकते हैं।

देखो, स्वाधीनता से पहले भारतवर्ष को दो राष्ट्रीयताओं का देश बनाने का प्रयत्न किया गया और उसे सचाई में भी बदल डाला गया। अब जो एक राष्ट्र बचा रह गया था उसे तुमने दर्जनों राष्ट्रीयताओं का देश बना दिया है। तुम ही सोचो तुम्हें कैसा बावला नेतृत्व मिला और उसने देश को तोड़ने का काम किया है या जोड़ कर रखने का। आज भी ऐसी शक्तियॉं हैं जो इसी काम पर लगी हुई हैं।

अच्छा यह बताओ, यदि तुम्हारा वश चले तो किसे राष्ट्रदगान बनाओगे।

देखो, जब दुनिया में कहीं राष्ट्र की परिकल्पना तक नहीं थी, जब देव वन्द ना और राजा की वन्दना के अलावा कोई वन्दना तक न थी, उस समय एक कवि ने भारत के लिए एक वन्दना गीत लिखा था। मुस्क राओ नहीं, इस देश में बहुत कुछ है जो पच्छिमी नजर से देखने वालों को चकित करता है उसमें यह कथन भी चकित कर सकता है, पर सचाई को नकारा तो जा नहीं सकता, स्वीकारा भले न जाए।

तुम किस गीत की बात कर रहे हो।

विष्णुसपुराण में आए राष्ट्र गान का-
गायन्ति देवा किल गीतिकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे
स्वर्गापवर्गास्पद मार्गभूते भवन्ति भूय-पुरुषा सुरत्वात् ।

इस देश का नाम भारत है और युगों से यही नाम है । एक ईमानदार आदमी और स्वाभिमानी देश के लिए एक ही संज्ञा पर्याप्त है। दुनिया में किसी दूसरे देश के दो नाम नहीं होंगे । छद्मनाम चरित्रगत छद्मों की आशंका जगाते हैं । जिस भाषा में भारत तक नहीं कहा जा सकता, वह भाषा भारत की नहीं हो सकती।

तुम जानते हो तुम क्या कह रहे हो।

तुमको समझना होगा कि मैं क्या कह रहा हूँ क्योंकि डरा हुआ आदमी न सच को कह सकता है न समझ सकता है, यथास्थितिवादी होना उसकी नियति है। यदि यह नहीं समझ में आया कि क्या कह रहा हूँ तो इसका भाष्य करके बता दूँ कि मैं कह रहा हूँ हमने भावुकता से अधिक और विवेक से कम काम लिया, हम लोगों को खुश करने की कोशिश में अपना वजूद भूल गए । गनीमत इतनी ही है कि अधिनायक की वन्दना हम करते हैं और अधिनायक पाकिस्तान में पैदा होते हैं, इसलिए किसी भी मामले में हमारी दशा पाकिस्ता‍न जैसी नहीं हो सकती। भाषा के मामले में भी। पाकिस्तान के पास राष्ट्र भाषा है, अपनी भाषा नहीं है। पाकिस्ताान के किसी भाग की भाषा उर्दू नहीं थी। वह उस पर लादी गई इसलिए चल नहीं सकी। उर्दू उनके लिए विदेशी भाषा थी या कहो मुहाजिर भाषा थी और मुहाजिरों के बीच बोली और दूसरों द्वारा लगभग समझ ली जाती है। विदेशी भाषा में शुद्धता पर बहुत जोर होता है। मैट्रन के सामने बच्चे को पूर्णत: अनुशासित रहना होता है, वह लगातार सही होने की कोशिश में यन्त्र साधित और यन्त्रचालित शिशु बन जाता है। नियम कायदे मे बँध कर चेतना के स्तर पर गुलाम, वह केवल अपनी मॉं के साथ जो कुछ करे, शरारतें तक, कभी गलत नहीं होता। जानते हो कामकाजी महिलाऍं के्रच में नन्ही उम्र में ही डाल कर उनके बचपन को क्रश कर देती है इन बच्चो पर तरस भी आता है और इनके भविष्य को ले कर डर लगता है, उनके अपने लिए नहीं, उस समाज के लिए जिसमें बच्चों को मॉं की ममता से समय से पहले ही अलग कर दिया जाता है।

अब तुम बच्चोंा पर बात करोगे।

दे,खो मैं जिन्दा शब्दों में बात करता हूँ इसलि‍ए वे शब्द मुझे बीच बीच में बॉंध लेते हैं, कहो लिपट से जाते हैं कुछ पलों के लिए। तुम मरे हुए, किताबों या कोशों से उठाए हुए या सुने सुनाए अधमरे शब्दों में बात करने के आदी हो इसलिए मेरा उनको दुलराते हुए आगे बढ़ना तुम्हें भटकाव लगता है।

विषय पर तो आ यार ।

तो हमारी स्थिति पाकिस्ता न से इसलिए भिन्न है कि उसके पास जो राष्ट्रभाषा है वह भी बाहर से आई हुई है, मुहाजिर है, और जिसमें काम काज हो रहा है वह भी मुहाजिर है। और उसके जो राज्य हैं उनकी अपनी भाषाओं को महत्व दिया ही नहीं गया। या तो उनमें अंग्रेजी में काम होता है या थोड़ा बहुत उर्दू में। उनकी अपनी भाषाऍं कराहने और गाली देने के काम आती हैं। हमारे यहॉं यह कुशल है कि सभी राज्यों की अपनी भाषाऍं और हिन्दी इसीके मध्यदेश की भाषा है। पराई केवल अंग्रेजी है भले एक राज्य के कुछ लाख लोगों को ईसाई बना कर और अंग्रेजी सिखा कर यह दलील तैयार कर ली गई हो कि अंग्रेजी वहाँ की भाषा है। परन्तु सबसे बड़ा अन्तंर यह है कि हमारे यहॉं हिन्दी संपर्क भाषा है और औपचाीरिक संपर्कभाषा या राष्ट्रभाषा का स्था्न ग्रहण कर सकती है, पाकिस्तान से अंग्रेजी को हटाना मुश्किल है।

वह ठठाकर हॅसा, ‘तुमने मुंगेरी लाल के सपने वाले सीरियल देखे थे।

मैंने वह सीरियल तो नहीं देखा पर जानता हूँ वह हास परिहास का था। मैं सीरियस हो कर यह बात कह रहा हूँ लेकिन आज तुम इसे समझ नहीं पाओगे।