अस्पृ श्यता – 9
‘’तुम्हारी समस्या यह है कि तुम जानते कम हो; हॉंकते अधिक हो। कहीं तुम उन इतिहासकारों से बदला तो नहीं ले रहे हो जो तु्म्हारे प्रिय वैदिक काल के समाज को बर्बर सिद्ध करने पर आमादा थे और आज भी कोई मौका नहीं छोड़ते। मध्यकाल को तुमने बर्बर कैसे कह दिया। मैं समझाता हूँ किसी किताब में पढ़ लिया होगा कि यूरोप का मध्ययुग अन्धेेर का युग माना गया है, हमारे यहाँ भी यदि मध्यकाल है तो अन्धेरगर्दी का काल ही रहा होगा और मुझे भी पट्टी पढ़ा दी।‘’
देखो, तुमने एक साथ इतने तीर चला दिए कि सभी आपस में टकरा कर खत्म हो गए, निशाने तक पहुँचे ही नहीं। फिर भी तुम्हाारी पहली बात से मैं सहमत हूँ कि मैं जानता बहुत कम हूँ, पर एक कवि से कुछ अधिक जानता हूँ। वह कहता था, कबित बिबेक एक नहिं मोरे, सॉंच कहहुँ लिखि कागज कोरे। और जहॉं तक हॉंकने का प्रश्न है, वह भी सही है परन्तु आश्चर्य कि तुम हॉंकने के बाद भी परुआ बैल की तरह बैठे ही रह जाते हो। तुम्हारे सभी सवालों का जवाब है मेरे पास, मगर तुम फिर कहोगे जिसका जवाब देना था वह तो दिया नहीं।
कौन चाहता है कि जवाब मिले और किस्सा खत्म हो जाए।
”तो पहले तुम्हाहरे यूरोप के मध्ययुग के बारे में ही बात कर लें, पर उसका भी पता है तुम्हें? ”
‘’पता क्यों न होगा। अरे भई रोमन साम्राज्य के पतन के बाद से, याने पॉचवी शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक का काल जिसे चौदहवी शताब्दीा में पेट्रार्क ने इसलिए डार्क एज या अंधकार युग की संज्ञा दी थी कि इस बीच लेखन का स्तर बहुत गिर गया था।‘’
‘’मैं जानता था यदि तुम किसी विषय को जानोगे तो उस विषय की खैर नहीं। तुम, खुद सोचो, लेखन के स्तर में कमी आ जाने के कारण कोई किसी काल को अंधेर युग कहेगा? लेकिन तुम्हारा क्या दोष यही तुम्हें समझाया गया होगा। एक बार विपिन चन्द्रा भी एक मंच से यही कह रहे थे कि यूरोप के मध्य काल को अन्धकार युग कहा जाता था, पर अब यह पता चला है कि उसमें भी रचनात्ममकता खत्म नहीं हुई थी। मंच पर मेरे साथ ही बैठे थे, पर उन्हें टोकना उचित नहीं समझा। मैं भी कल संजाल से मछियारी कर रहा था तो उसमें से यह निकला:
Initially, this era took on the term “dark” by later onlookers; this was due to the backward ways and practices that seemed to prevail during this time. Future historians used the term “dark” simply to denote the fact that little was known about this period; there was a paucity of written history. Recent discoveries have apparently altered this perception as many new facts about this time have been uncovered.
The Italian Scholar, Francesco Petrarca called Petrarch, was the first to coin the phrase. He used it to denounce Latin literature of that time; others expanded on this idea to express frustration with the lack of Latin literature during this time or other cultural achievements. While the term dark ages is no longer widely used, it may best be described as Early Middle Ages — the period following the decline of Rome in the Western World. The Middle Ages is loosely considered to extend from 400 to 1000 AD.
(AllAboutHistory.org),
‘’लगभग वही बात जो विपिन चन्द्रा दुहरा रहे थे और जो तुम्हारी जानकारी में भी है। अध्ययनशील लोगों की यही दिक्कात है, वे ज्ञान के आढ़ती होते हैं, पर पारखी नहीं।‘’
”तुम्हारा कहना है, जो लिखा है उसे मत पढ़ो, जो समझाना चाहते हो उसे गढ़ो और जो पकड़ में आ जाय उस पर मढ़ो।”
”मैं कहता हूँ जो सुलभ हो उसे पढ़ो और उसके अन्तर्विरोधो पर ध्यान दो। यह समझते हुए पढ़ो कि जो दिखाया जा रहा है उसके परदे में कुछ और तो नहीं है। पहले जो सच था वह एकाएक सुधारा क्यों जाने लगा। इसे इतिहास में संशोधनवाद कहते हैं। आधुनिक काल की अपनी अग्रता के नशे में यूरोप की सनातन अग्रता दिखाने की तलब बढ़ी तो अपने इतिहास की सचाइयों पर लीपापोती की जाने लगी। ठीक ऐसी लीपापोती अपने यहॉं भी की गई पर उस पर बाद में। देखो, दुर्दिन के दौर सभी देशों में आते रहे हैं। हारी बीमारी भी पहले ऐसी ऐसी आती थी कि मुरदों को ठिकाने लगाने वाले नहीं मिलते थे। अपने देश में तो हर चौथे साल कही न कहीं दुर्भिक्ष या महामारी का प्रकोप देखने में आता था। लोग इसे अकाल कहते, महामारी कहते, अन्धेर नहीं कहते। अन्धेर वह होती है जिसमें न्याय व्यवस्था चरमरा जाय और मनमानी होने लगे; जिससे न्याय की अपेक्षा हो वही अन्याय करने लगे। उस पर कोई रोक टोक न रह जाय। रोमन साम्राज्ये के बाद रोमन धर्मराज्य कायम हुआ था, बल्कि यह कहो कि रोमन साम्राज्य के विनाश का भी एक कारण यह धर्मराज्य ही था।
‘’यूरोप के अन्धेर युग में अकाल, महामारी आदि का भी प्रकोप हुआ होगा। रचनाशीलता में कमी तो आई नहीं, या अधिक नहीं आई इसके प्रमाण आज नए सिरे से जुटाने की क्या जरूरत है। उस जमाने के पोप पादरी भी यही मानते थे क्योंकि उनकी ही मनमानी चल रही थी। उनका विरोध पुरानपंथी करते आ रहे थे जो चाहते थे कि ईसाइयत को ईसा के सन्देश के अनुसार चलाया जाय। यह ईसा मसीह को दूसरी बार शूली पर चढ़ाने वाली ईसाइयत का उदय था जिससे पश्चिमी यूरोप थर्रा रहा था। बेचारे पेट्रार्क ने भी उसी के डर से रचनाशीलता की कमी को दोष दिया होगा, जैसे तुलसी कलिकाल को दोष देते थे।
वह ‘बकते रहो’ वाले अन्दााज में अनमना सा सुन रहा था।
‘’देखो, अंधेर युग की संज्ञा पॉंचवीं शताब्दीा में ही दी जा चुकी थी। एल्यु सीनियन मिस्टईरीज के प्रधान ने कहा था, ‘’एक निराकार अन्ध कार दुनिया की रम्य ता पर अधिकार करता जा रहा है (ए फार्मलेस डार्कनेस मास्ट रिंग दि लवलीनेस आफ दि वर्ल्ड)। और कहा कब और क्यों था, जानते हो?
उसने जिज्ञासा तक नहीं की। पर अपनी तो आदत है, कोई न सुने, न समझे तब भी बोलते जाओ, ‘’जानते हो यह एक ऐसा दौर था जिसमें पागलों के लिए अधिक और समझदारों के लिए बहुत थोड़ी जगह बची थी।
’जानते हो, ईसाइयत में विश्वास पैदा करने के लिए और यह प्रचारित करने के लिए कि प्रलय जल्द आने वाली है, सन् 64 में ही बहुत बड़ पैमाने पर आगजनी की गई और यह बताने के लिए कि प्रलय कभी भी आ सकती है, सिरफिरे ईसाई कहीं भी आग लगा दिया करते थे और यह प्रचारित करते थे कि आग लगाने वाले का परलोक सुधर जाएगा। और जानते हो जिस व्यहक्ति ने इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया उसे सन्त का रुतबा दिया गया। उसका नाम है सन्तव थियोडोर, जिसने पुण्यै का एक ही काम किया था कि देवमाता के मन्दिर में आग लगा कर उसे खाक कर दिया था।
अब उसकी हालत देखने लायक थी। (देखे अगला हिस्सा)