Post – 2015-04-05

कौन लिखता कौन पढ़ता है फिर भी कल तुक भिड़ा रहा था मैं.
12-30
संभलने पर भी देखो अपनी बर्वादी नहीं जाती
तुम्हारी याद! कहता हूँ, ‘चली जा’, पर नहीं जाती
कई किस्से जुड़े हैं जिनको मैंने खुद नहीं लिक्खा
मगर पढने चलूँ तो अपनी हैरानी नहीं जाती.
क़यामत के कई सफ़हे हैं जिनको हम भुगतते हैं
क़यामत है खुदाओं की भी हैवानी नहीं जाती
बहुत आगे बढ़ी है अपनी दुनिया फिर भी भटकी है
जो दानिशमंद हैं खुद उनकी नादानी नहीं जाती.
4/4/2015 10:12:57 PM

हम वहीँ थे जहाँ ज़माना था
जिसमें दिन-रात आना जाना था
फिर भी पहचान न पाये देखो
सच का कुछ ऐसा ताना बाना था.
4/4/2015 9:49:01 PM

सच यह नहीं है मैं किसी को कुछ नहीं कहता.
कहता हूँ कि सुनकर भी लगे कुछ नहीं कहता.
औरों को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है.
अपने को लुटाने के लिए कुछ नहीं कहता.
4/4/2015 9:24:00 PM

कितने अद्भुत लोगों के बीच
एक अनद्भुत व्यक्ति की तरह भटकता रहा मैं
हर गए बीते से पूछता
क्या तुमने मुझे देखा
क्या सचमुच दीखता हूँ मैं
]क्या तुमने मुझे सुना
क्या सचमुच पहुंचती है मेरी आवाज़ तुम तक
क्या बता सकते हो
मैं हूँ या नहीं.
4/4/2015 9:11:21 PM