ख़ुदा गवाह है मैंने जो ज़िन्दग़ी जी है
हंसा न रोया न दावत न अदावत की है.
ये ज़िन्दग़ी तो अमानत थी न जाने किसकी
मैंने बस इसको सँभाला है हिफाज़त की है.
हो सका जो उसे करता रहा बिना समझे
किया जिसे नहीं उसकी भी अलामत ली है.
कोई वारिस हो संभाले जो विरासत मेरी
था तो काफिर मग़र मैंने भी इबादत की है.