Post – 2015-02-19

हँसते हुए कहते थे कि हम हंस नहीं सकते
रोते हुए कहते हैं कि इसका भी मज़ा है
जुड़ते हुए कोशिश थी दूरियाँ तो छिपा लें
हटते हुए तू ही मेरी जन्नत दिलो-जां है
यारब जो अरब के हैं न रब के हैं मगर हैं
ईनाम है उनका भी क्या उनकी भी सजा है
सिर अपना कटाने के लिए फिरते थे देखो
मालूम न था हमसे डरा करती क़ज़ा है.