Post – 2018-03-28

चमकता अंधेरा (4)

कृष्ण का दूसरा पर्याय श्याम है, जिसका प्रयोग श्री कृष्ण के लिए भी किया जाता है। इसका स्रोत संभवत है जल है। श्यान का अर्थ सूखा है। श्यामाक एक अन्न है, और अन्न शब्द सहित दूसरे सभी अन्नों का नामकरण जल के पर्यायों पर आधारित है। श्याम का प्रयोग -घन के साथ प्रायः किया जाता है, और कई बार तो घनश्याम का प्रयोग कृष्ण आशय में होता है, परंतु घन का अर्थ है गहन या गहरा है जो जल के संदर्भ में प्रयोग में आता है। गहरा या गाढ़े का प्रयोग रंग के साथ भी किया जाता है जहां आशय कुछ बदल जाता है। घनश्याम का अर्थ जल से भरे हुए बादलों के रंग वाला । घन का अर्थ बादल नहीं, घनघोर घटा में केवल घटा का अर्थ बादल है परंतु वहां भी आशय तो आटोप से है, घिरने और छाने से है, न कि जलद से।

काले का दूसरा कोई पर्याय इस समय हमें याद नहीं आ रहा। कृष्ण की चर्चा के साथ राधा छोड़ दी जाएं तो चर्चा अधूरी रह जाएगी, इसलिए यह बताना जरूरी है कि राधा लक्ष्मी का प्रतिरूप है। मुझे नहीं लगता ऋग्वेद के बाद राध शब्द का प्रयोग कभी वैदिक अर्थ में किया गया।

अनुवादकों ने राध का अर्थ धन किया है। इसका प्रयोग तांबे के ढले हुए पिंडों के लिए किया जाता रहा है, जिनका आयात निर्यात किया जाता था। सुमेरिया में इसके लिए रूध का प्रयोग किया जाता था, जिससे अंग्रेजी भाषा के दो शब्दों का नाता जोड़ा जाता हैं। कठोरता पर आधारित रूड और रंग के आधार पर रेड । यह मेरा नहीं, मैलरी का विचार है। बीच की कडि़यों का मुझे ध्यान नहीं।

ऋग्वेद में इसका अनेक बार बहुवचन में राधांसि प्रयोग हुआ है। धन लक्ष्मी और लक्ष्मी की चंचलता इन सभी का प्रतिनिधित्व, एक लंबे अंतराल के बाद, करती है राधा – एक से दूसरे के पास पहुंचती, चक्कर लगाती, रकसलीला करती।

इस अंतराल में, राध का रंग हल्दी को मिल जाता है। हल्दी में रंगी हुई धोती के रंग पर यदि कभी दृष्टि गई हो, तो आप मानेंगे कि संज्ञा उपयुक्त ही है।

हम आज रात पर पहले विचार कर आए हैं। इसका अंग्रेजी पर्याय नाइट भी संस्कृत नक्त का सगा हे, जिससे नक्षत्र निकला है। परंतु नक और मक का अर्थ जल होता है और नकुल, नक्र का जल का या जलप्रेमी प्राणी। अतः नागरिक आपूर्ति के लिए भी किया जाता है. यह नागदंत – हाथी का दांत और अर्थ विस्तार से रीवा दीवार से लगी खूंटी। नाक से सांस लेने के लिए नहीं बनाई गई, बल्कि जुकाम होने पर रहने के लिए बनाई गई है जैसे कुछ लोगों के ख्याल से चश्मा रखने के लिए बनाई गई है।

रात के दूसरे पर्यायों रजनी, निशि या निशा, विभा, विभावरी, आज मैं कहीं अकेले जीरे का भाव भी नहीं है। विभा के वि- को विशेषता सूचक उपसर्ग मानकर पढ़ने पर इसका अर्थ कांति हो जाता है, और विहीनता सूचक मानने पर रात का द्योतक हो सकती है, इससे बचने के लिए विभावरी का ही प्रयोग होता है। परंतु भा की उपस्थिति से यह दोहराने की जरूरत नहीं है इसका संबंध भी प्रकाश से है जिसकी अपनी ध्वनि नहीं होती। भास का जल से संबंध यदि ना समझ में आ रहा हो तो कभी दलदल में पहुंचने के बाद उसके निकलने की ध्वनि पर ध्यान दें तो यह भी पता चल जाएगा कि भोजपुरी में दलदल भास क्यो कहते हैं। रजनी में रज
शब्द का अर्थ, जल, श्वेत, प्रकाश और धूलि होता है, यह हम जानते हैं, इसलिए इसकी विस्तार में चर्चा जरूरी नहीं।

यदि निशा उषा का विलोम है. तो इसकी भी वही कहानी है।

हम कल इस बात पर विचार केवल काला ही नहीं, दूसरे जितने भी रंग हैं, उन सभी का संबंध जल से है।

Post – 2018-03-28

मैं अपने विचार रखते हुए समय समय पर इस बात की मांग करता हूं कि पाठक मुझसे सहमत होने की जगह इस पर विचार करें और कमियां निकाले, क्योकि मैं मानता हूूं असहतियों का बना रहना सही सिद्ध होने से अधिक जरूरी है। यह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनिवार्य शर्त है। वामपंथियों और संघियों में अनेक अन्य समानताओं के साथ यह भी एक समानता हे कि वे असहमति नहीं झेल पाते और इनकी असहिष्णुता इतनी बढ़ जाती है कि ये भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा तक भूल जाते हैं। असहमति न झेल पाने वालों को अवरुद्धमनस्क मानता हूूं, पर इस शब्द का अंग्रेजी अनुवाद करके न पढ़ें।

Post – 2018-03-28

मैं अपने विचार रखते हुए समय समय पर इस बात की मांग करता हूं कि पाठक मुझसे सहमत होने की जगह इस पर विचार करें और कमियां निकाले, क्योकि मैं मानता हूूं असहतियों का बना रहना सही सिद्ध होने से अधिक जरूरी है। यह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनिवार्य शर्त है। वामपंथियों और संघियों में अनेक अन्य समानताओं के साथ यह भी एक समानता हे कि वे असहमति नहीं झेल पाते और इनकी असहिष्णुता इतनी बढ़ जाती है कि ये भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा तक भूल जाते हैं। असहमति न झेल पाने वालों को अवरुद्धमनस्क मानता हूूं, पर इस शब्द का अंग्रेजी अनुवाद करके न पढ़ें।

Post – 2018-03-28

मैं अपने विचार रखते हुए समय समय पर इस बात की मांग करता हूं कि पाठक मुझसे सहमत होने की जगह इस पर विचार करें और कमियां निकाले, क्योकि मैं मानता हूूं असहतियों का बना रहना सही सिद्ध होने से अधिक जरूरी है। यह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनिवार्य शर्त है। वामपंथियों और संघियों में अनेक अन्य समानताओं के साथ यह भी एक समानता हे कि वे असहमति नहीं झेल पाते और इनकी असहिष्णुता इतनी बढ़ जाती है कि ये भाषा और शिष्टाचार की मर्यादा तक भूल जाते हैं। असहमति न झेल पाने वालों को अवरुद्धमनस्क मानता हूूं, पर इस शब्द का अंग्रेजी अनुवाद करके न पढ़ें।

Post – 2018-03-28

न्यूज चैनेलों को आप सुन सकते हैं सुना नहीं सकते। एनडीटीवी पर सांप्रदायिक उग्रता के विस्तार पर प्राइम में, चिन्तातुर मुद्रा में किसी न किसी बहाने नित्य कुछ कहा जाता है तो मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ, यह उग्रता रागा की रहस्यमय अनुपस्थितियों और कैंब्रिज ऐनेलिटिका की सक्रियता के बाद ही क्यों आरंभ हुई? कि NDTV कैम्ब्रिज अनेलिटिका से जुडा है या नहीं?

यह उग्रता केवल सांप्रदायिक सवालों पर नहीं है, सामाजिक, आर्थिक सभी सवालों पर है। उग्रता हमारी राष्ट्रभाषा बनती जा रही है। इसलिए, केवल बाहर नहीं है, संसद के भीतर भी है। संसद है पर नहीं है इसलिेए लोकतंत्र है पर नहीं है। देश है पर हमारा नहीं है।

Post – 2018-03-28

न्यूज चैनेलों को आप सुन सकते हैं सुना नहीं सकते। एनडीटीवी पर सांप्रदायिक उग्रता के विस्तार पर प्राइम में, चिन्तातुर मुद्रा में किसी न किसी बहाने नित्य कुछ कहा जाता है तो मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ, यह उग्रता रागा की रहस्यमय अनुपस्थितियों और कैंब्रिज ऐनेलिटिका की सक्रियता के बाद ही क्यों आरंभ हुई? कि NDTV कैम्ब्रिज अनेलिटिका से जुडा है या नहीं?

यह उग्रता केवल सांप्रदायिक सवालों पर नहीं है, सामाजिक, आर्थिक सभी सवालों पर है। उग्रता हमारी राष्ट्रभाषा बनती जा रही है। इसलिए, केवल बाहर नहीं है, संसद के भीतर भी है। संसद है पर नहीं है इसलिेए लोकतंत्र है पर नहीं है। देश है पर हमारा नहीं है।

Post – 2018-03-28

न्यूज चैनेलों को आप सुन सकते हैं सुना नहीं सकते। एनडीटीवी पर सांप्रदायिक उग्रता के विस्तार पर प्राइम में, चिन्तातुर मुद्रा में किसी न किसी बहाने नित्य कुछ कहा जाता है तो मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ, यह उग्रता रागा की रहस्यमय अनुपस्थितियों और कैंब्रिज ऐनेलिटिका की सक्रियता के बाद ही क्यों आरंभ हुई? कि NDTV कैम्ब्रिज अनेलिटिका से जुडा है या नहीं?

यह उग्रता केवल सांप्रदायिक सवालों पर नहीं है, सामाजिक, आर्थिक सभी सवालों पर है। उग्रता हमारी राष्ट्रभाषा बनती जा रही है। इसलिए, केवल बाहर नहीं है, संसद के भीतर भी है। संसद है पर नहीं है इसलिेए लोकतंत्र है पर नहीं है। देश है पर हमारा नहीं है।

Post – 2018-03-28

बाद में हंसिएगा पहले शख्सियत तो देखिए
कोसते हैं सब, यह कहता है, ‘सितमगर खुश रहो!’

Post – 2018-03-28

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कोसते हैं सब, यह कहता है, ‘सितमगर खुश रहो!’

Post – 2018-03-28

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