उन्हें कुछ और दीखे है, मुझे कुछ और दीखे है
बताओ तो मेरे चश्मे का नंबर ठीक कब होगा ?
नया गणित : परसों एबीपी का शाहीनबागोत्तर सर्वे आ रहा थाः –
कांग्रेस 25% बीजेपी 70%, अन्य 5% . विश्लेषक ने कबूल किया – मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। मुझे आकड़ा यूँ नजर आया- भारत के कुल मुस्लिम+ई. मत+कां संग. से जुड़े+कां. मुखी सेकु. = 25%, अन्य सभी दलों के साथ – 5% और इन अपवादों को छोड़ दें तो पूरा का पूरा हिन्दू भाजपा के साथ। समस्त मुस्लिम, ईसाई कांग्रेस एक साथ। दूसरे ‘मुस्लिम मेरा/मैं मुस्लिम का’ महाराग गाने वाले सेकु. के साथ कोई मुसलमान नहीं। आईसीयू में आक्सीजन की नली के भरोसे साँस लेते दूसरी सारे विपक्षी दलों की सांस की नली ही अलग।- इसके भावी चुनावी परिणाम को प्रश्न ही रहने दें।
दूसरे कोण से कितनों को मँहगाई की चिंता, कितनों को बेरोजगारी की पीड़ा, कितनों को सुरक्षा की। पहले दोनों में बहुत ऊंची दर, वि. खतरे की फिक्र शायद .4 या 4% अर्थात निम्नतम। विश्लेषक को काफी राहत मिली। मुझे उल्टा दीखा- मँहगाई+बेरोजगारी से चिंता के बाद भी सारे हिंदू नमो के साथ क्योकि उसके होते ही हम सुरक्षित रह सकते हैं क्योंकि उधर से निश्चिंत। इतना गहरा और अशोध्य विभाजन, जात पांत के सारे समीकरण को फेल करके हिंदू के हिंदू हो जाने के पीछे शाहीनबागादय: की दहशत है या नहीं। ताकत दिखाने वाले अपनी ताकत की मार खुद झेल रहे हैं या नहीं?
हो सकता है मुझे देखने ही न आता हो।