मैंने ये इबारतें एक समुदाय में शामिल होने के अनुरोध से अलग रहने की सफाई देते हुए लिखीं और उनकी कापी तो कर ली, वहाँ अपनी समझ से पोस्ट भी कीं पर किसी चूक से पोस्ट न हुआ। इसे मैं काफी पहले कर चुका हूँ, पर उनकी तरह अपने दल में शामिल करने का प्रस्ताव भेजने वालों की मेरी नम्रता, मेरा अहंकार, मेरी विवशता समझ आनी चाहिए, इसलिए:
[[ मैं राष्ट्र निष्ठा, देशानुराग/भक्ति का सम्मान करता हूँ, व्यक्तिगत जीवन में ऐसा हूँ भी, हिन्दू भी हूँ, परन्तु मैं यह पहले लिख चुका हूँ कि जैसे एक केमिस्ट का, पैथालजिस्ट, डॉ. का, शल्यचिकित्सक का जब वह अपने काम पर होता है. उसे अपने सभी रागबंधनों से मुक्त साधक या निर्वेदावस्था में होना होता है, उसी तरह एक विचारक। यदि इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो उसी अनुपात में गलत और निंदनीय और त्याज्य होता है। विचारक अपना भी सगा नहीं होता न कोई उसका सगा होता है। वह निपट अकेला और बाहर से नितांत असुरक्षित पर अपने सत्य के कवच के कारण उतना ही अजेय होता है। इस भूमिका में रह कर ही मैं टॉयन्बी से भिन्न कारणों से आज यह लिख सकता हूँ कि हिंदू समाज संकटग्रस्त है , ऐंटी सेमिटिज्म से भी गर्हित ऐंटी हिंदुइज्म का शिकार है, क्योंकि ऐंटी सेमिटिज्म के साथ पूरी दुनिया का कोई यहूदी नहीं था, जब कि ऐंटी हिंदुइज्म में सबसे आगे अपने को सेकुलर कहने वाले हिंदू हैं और नाम हिन्दू आदर्शों की रक्षा का लेते हैं क्योंकि अन्यत्र उन्हें वे आदर्श नहीं मिलते और खड़े उनके साथ और उनका मुखौटा बन कर होते है। इसके बाद भी मुझे हिन्दुत्व संकटग्रस्त न दिखाई देता यदि हिंदुत्व के सार तत्व के रक्षक दिखाई देते। मैं दो बुराइयों में एक को जघन्य और दूसरे को सह्य बुराई मान कर भाजपा से अपने को दूर नहीं रख पाता। पर भाजपा से मेरी असहमतियाँ अनेक हैं लिखने चलूँ तो लेखमाला सँभाल न पाऊँगा। दूसरे जरूरी काम रह जाएँगे ]]
सच मानिए कांग्रेस ने जितने विध्वंशक काम किए हैं उसका शतांश भी संघ के विरुद्ध नहीं है, फिर भी उसका कटु विरोधी उसके बौद्धिक शून्य और आज भी लाठी डंडा के नात्सी तरीकों और भीरतीयता के सार सूत्र ‘बुद्धिः यस्य बलंं तस्य’ से भटकने के कारण करता हूँ, वह मेरे अनुकुल पड़ने वाले विचारों का उपयोग कर सकता है, मेरे साथ खड़ा नहीं हो सकता, वह वाजपेयी तक के साथ न हुआ। मैं अपने को भारत का अकेला मार्क्सवादी मानता हूँ, जनसंघी मेरे इस कथन का उपयोग कर सकते है, जि्नका मार्क्सवादी खेमा है, वे मुझे न अपने साथ रख पाएंगे, न उनका होकर मैंने मार्क्सवादी रहना पसंद किया। यह पहचान कि मेरे साथ, मेरी समझ और शक्ति की सीमा में जो सत्य है वही मेरा कवच है और वह मेरे मिटाए जाने के बाद भी नहीं मिटेगा, यही मेरी शक्ति है।
[[]] से पहले का अंश ही उत्तर में लिखा था, बाद का अंश बाद में जोड़ा है।