आत्महत्या से बचते हुए
लेखक के लिए आत्महत्या करने के दो रास्ते हैं पहला तथ्यों के साथ छेड़छाड़, चुनाव, अनुकूल आने वाले तथ्यों को जगह देना, और उससे भिन्न पढ़ने वाले साक्ष्यों और तथ्यों को छोड़ देना।
दूसरा, जिस अपराध से बचा ही नहीं जा सकता, पर प्रयत्न किया जा सकता है, वह है किसी संकीर्ण दायरे में – दायरा जाति, धर्म, देश या वर्ग हित, विचारधारा किसी का भी हो सकता है – बंध कर, उन्हीं तथ्यों को एक सँकरी नजर से देखना।
जो लोग इनमें से किसी सीमा में बँध कर सोचते हैं, बहुत आसानी से अपने से असहमत होने वालों को सोचने और बोलने का अधिकार नहीं देते। यदि फासिज्म इसी को कहते हैं तो, भारत में, इसका सबसे अधिक प्रयोग, अपने को सबसे अधिक पवित्र सिद्ध करने वाले, भारतीय कम्युनिस्टों ने किया है। आत्महत्या का यह भी एक रूप है जिसमें जिस दर्शन से आपको मानव जाति के उद्धार की आशा हो, उसके व्यावहारिक रूप को देखकर आपको उससे डर लगने लगे। जिसको मूल्यवान समझते थे उसका सर्वस्व चला जाना आपके जीवन की आकांक्षा को ही समाप्त कर देता है।
मैं सदा से यह मानता आया था और आज ही मानता हूं कि सक्रिय राजनीति – सत्ता पर अधिकार करने की राजनीति- अपराध से बच नहीं सकती, इसलिए बुद्धिजीवियों को इससे दूर रहना चाहिए । इसे मैं पहले लिख चुका हूं, इसलिए किसी गवाही की जरूरत नहीं।
मैंने जीवन में कुछ पाना नहीं चाहा यह कहना तो गलत है, परंतु अपने विवेक और अंतरात्मा के विरुद्ध किसी भी कीमत पर कुछ नहीं चाहा , इसका भोक्ता भी मैं हूं और गवाह भी मैं हूं। जो किसी से नहीं डरता वह अपनी अंतरात्मा से डरता है, डर मुझे भी लगता है, परंतु अपनी अंतरात्मा से। अंतरात्मा मूल्य-बोझिल शब्द है, स्वविवेक उससे अच्छा तो है, परंतु इसकी व्याख्या में इतनी छूट है, कि एक अपराधी भी अपनी परिस्थितियों में अपने विवेक का तर्क दे सकता है, और जो कुछ कर चुका है उसे सही ठहरा सकता है।
एक विचारक के रूप में सभी संकीर्णताओं से बचने की कोशिश के बाद भी मैं इस बात का कायल हूं कि हमें सत्ता लोलुप लोगों की विचार दृष्टि से बचते हुए एक मार्गदर्शक विचारक की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए, जिससे उनमें से जो अपने को अधिक नैतिक और बहुमान्य सिद्ध करना चाहें वे हमारे सुझाए हुए रास्ते के निकट रह सकें।
हाल के दिनों में मुझे अपने आप से लगातार संघर्ष करना पड़ा है । पाला बदलने वाले, या किन्हीं पालों से जुड़े माध्यमों के कारण हम जानते हैं, कौन किसके साथ है, पर यह नहीं जान पाते कि सच्चाई क्या है।
मैं सत्ता पाने या सत्ता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील किसी दल को निरपराध नहीं कह सकता। वह जो तरीके अपनाते हैं उसके परिणाम पर हम अवश्य ध्यान दे सकते हैं। नागरिकता पहचान नियम एक चुनौती भरा प्रश्न है। भारत में रहने वाला कोई भी मुसलमान अपने नागरिक अधिकार से वंचित हो जाए यह दुर्भाग्यपूर्ण है। परंतु इसे घुसपैठियों का दरवाजा बना दिया जाए, यह कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है।
इसके बहाने जिन गैर मुसलमानों को विभाजन के समय आश्वस्त किया गया था कि वे वहीं रहे और अपेक्षा की गई थी वे अपने विश्वास, आस्था और सम्मान के साथ जीने पाएँगे,और यदि ऐसा न हुआ तो उन्हें भारत में आने की छूट दी और जीने की व्यवस्था की जाएगी, उनको तकनीकी आधार पर उस सुविधा से वंचित करने का अर्थ क्या होता है?उन्हें भेड़ियों को सुपुर्द कर देना।
नागरिकता संशोधन बिल के ऐक्ट बन जाने से पहले संसद के विचार विमर्श में मुझे लगा था, इसमें गलती की जा रही है। जब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के धर्म के आधार पर प्रताडित जनों को आश्रय देने का प्रश्न है तो हिंदू, सिख, ईसाई, जैन , जैसी लंबी कवायद की जरूरत न थी। इसे जानते हुए भी यह जानबूझकर लाया गया है, कि कहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश के धर्म के आधार पर प्रताड़ित उन मुसलमानों को भी आने का अधिकार न मिल जाए, जिन्होंने मतदान से पाकिस्तान का चुनाव किया था।
भारत कितनी आबादी को संभाल सकता है, चिंता उनके मन में रही होगी, और इसे देखते हुए मुझे यह बिल जो कानून में बदल गया सही लगता है। संविधान के निर्माताओं को इस बात की कल्पना भी नहीं थी कि इन देशों में रहने वालों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाएगा। कल्पना से परे होने वाली परिणतियों का ध्यान किए बिना बने संविधान को यथार्थ की कसौटी पर बदला जा सकता है। जिस संविधान में शतक पूरा करने वाले संशोधन किए जा चुके हैं उनमें अपरिहार्य स्थितियों में बदलाव जरूरी लगे तो किया जा सकता है ।
मुझे नागरिक पहचान पत्र वाले विधान पर, इस बात की चिंता है, कि किसी भारतीय मुसलमान को नागरिकता खोनी न पड़े। इसलिए इस पर अचूक तरीका अपनाया जाना चाहिए। परंतु आज की तिथि में जिस तरह का आंदोलन चल रहा है उसमें इस बात को बढ़ावा दिया जा रहा है, कि हमारे आश्वासनों के अनुसार जो भारत में शरण लेना चाहते हैं उन्हें शरण मत दो, और जो नाजायज तरीके से घुसपैठ कर चुके हैं या करने वाले हैं, उनकी पहचान मत होने दो। यह सिलसिला जारी रहे। यह सिलसिला जारी रहे।
आत्महत्या का यह भी एक तरीका है मैं अंतिम तरीके से बचना चाहता हूं। जानना चाहता हूं, आत्महत्या के इन तीनों रूपों में सबसे गर्हित कौन सा है? कोई मेरी मदद करेगा?