Post – 2019-12-24

मुझे दोनों से डर लगता है। जब सोनियानीत कांग्रेस सरकार कहती है देश की परिसंपत्तियों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है, जब उसकी सरकार कहती है इतने लाख के बैंक लोन की सुविधा केवल मुसलमानों के लिए है, जब वह कहती है ऐसा कानून लाएगी, जिसमें विवाद की स्थिति में बहुसंख्यक को ही दोषी मानकर जांच की जाएगी, और अपने अहंकार में जब यह भूल जाती है कि उसने संविधान को सैनिटरी नौपकिन बना रखा है, और यह संदेश दे रही है कि यह राज और संविधान हमारा है और हम इसको मनचाहा उलट-पलट सकते हैं, और अपनी नासमझी में हिंदुओं को यह याद दिला रही होती है कि धर्म के आधार पर हुए बँटवारे में यह देश तुम्हारे हिस्से में आया था, इस पर पहला अधिकार तुम्हारा है, तब वे लोग कोई आन्दोलन क्यों नहीं खड़ा कर पाते जिनको अपने हिस्से आए देश से भी निर्वासित किया जा रहा होता है।
इनकी निष्क्रियता के बावजूद जब जनता इन्हें अवसर देती है तो संविधान की मर्यादा का निर्वाह करने के बाद भी इनके उन आश्वासनों की पूर्ति के प्रयास को जो देश के विभाजन के समय उन हिंदुओं को दिये गये थे जिन्हें यमराज को यह कह कर सौंप दिया गया था कि वे जब भी अपने प्रति अन्याय होते देखें, भारत में शरण ही नहीं ले सकते हैं अपितु भारत सें उन्हें आधारभूत सुविधाएँ भी दी जाएँगी जिससे वे सम्मान के साथ जी सकें। तब यह बचाव की मुद्रा में क्यों आ जाती है।
मुझे डर उन प्राथमिकताओं से भी लगता है जिसमें गगनचुंबी मूर्तियाँ बनाना आर्थिक समस्याओं से अधिक जरूरी बना दिया जाता है।
डर सशक्त प्रतिपक्ष के अभाव से भी लगता है और उपद्रवी प्रतिपक्ष से भी।