Post – 2019-11-18

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (27)

#भारत_की_खोज- नव

हम यहां अपनी ओर से आलोचना किए बिना, विलियम जोंस के विचारों को प्रस्तुत करना चाहते हैं जिससे उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय न होने पाए। परंतु इस बात पर गौर भी करना चाहते हैं, कि अपनी प्रतिभा के अनुरूप, ज्ञान सीमा की परिधि में, अपने समय की मर्यादाओं के भीतर भी क्या वह अंतर्विरोधों से बच सके? प्रासंगिक रूप में दूसरे विद्वानों में उनके विचारों की छाप देखने का भी प्रयत्न करेंगे।

#जल_प्रलय और #मानवता_का_पुनर्जन्म

परमात्मा ने पुरुष और स्त्री को बना तो दिया, दूसरे सभी जीव-जंतु भी बना दिए, परंतु उसके बाद जल प्रलय के समय तक का जो इतिहास है उसमें कुछ भी साफ नहीं है। जल प्रलय की कहानी भी हमारी समझ में नहीं आती, परंतु जिन देशों के पुराने अभिलेख हमें प्राप्त हैं उन सभी में, और खास करके हिंदुओं के ग्रंथों में जिनके यहाँ इसके विषय में एक पूरा पुराण मिलता है इसका जिक्र है, इसलिए मानना होता है कि यह घटित हुआ होगा यह मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं:
The sketch of antediluvian history, in which we find many dark passages, is followed by the narrative of a deluge, which destroyed the whole race of man, except four pairs; an historical fact admitted as true by every nation, to whose literature we have access, and particularly the Hindus, who have allotted an entire Purana to the detail of the event, which they relate, as usual, in symbols and allegories.वह, यहीं, यह भी स्वीकार करते हैं कि कोई परिघटना अनुपात में प्राकृतिक संभावनाओं के जितने ही विपरीत हो, कहें, चामत्कारी लगे, उसको स्वीकार करने के लिए उतने ही सशक्त प्रमाण होने चाहिए (I concur most heartily with those who insist , that, in proportion as any fact mentioned in history seems repugnant to the course of nature, or, in one word, miraculous, the stronger evidence is required to induce a rational belief of it);

परंतु वह जो मान चुके हैं उसे सर्वमान्य बनाने के लिए वह भूचालों, ज्वालामुखियों, झंझावातों, सुनामियों, दावानलों की आड़ लेकर अपने को बुद्धिवादी सिद्ध कर लेते हैं, जब कि उस प्रतिज्ञा के निकष ‘अनुपात’ का ध्यान नहीं रखते। सामान्य प्राकृतिक नियम के विपरीत घटनाएँ होती हैं (यद्यपि उनका भी नियम होता है, कारण होता है, निदान और समाधान होता है, हम उनसे अनभिज्ञ होते हैं, इसलिए वे चमत्कार प्रतीत होती हैं।)। प्रश्न यह था, क्या वे उस पैमाने पर होती है, जिस पैमाने पर जल प्रलय को घटित दिखाया गया था।

घटित की परिधि में वह भी आ सकता था यदि उसके पक्ष में उतने ही निर्णायक ठोस प्रमाण उपलब्ध होते। वे नहीं थे, परंतु अपने निर्णय को स्वीकार्य बनाने के लिए, जोंस ने पुराण का सहारा लिया, पुराणों में जो सबसे विश्वसनीय था उसकी उपेक्षा करते हुए अपनी विश्वास सीमा में जो कुछ वर्णित था उसको यथातथ्य घटित मानते हुए, अपने ही सिद्धांत को भूल गए जिसे उन्होंने पौराणिक बिंब विधान चित्र विधान और ऐतिहासिक सत्य के बीच सत्यान्वेषण के लिए तैयार किया था। यदि उसका पालन करते तो उन्हें पौराणिक अतिरंजना को यथार्थ के निकट लाते हुए, तीन निष्कर्षों पर पहुंचना चाहिए था:
पहला, यह किसी असाधारण प्राकृतिक आपदा का जो एक सीमित भौगोलिक परिवेश में घटित हुई होगी, अतिरंजन है, जिस में किसी परिवार ने चमत्कारिक परिस्थितियों में अपनी प्राण रक्षा की होगी।

दूसरा, इस घटना का क्षेत्र वही रहा होगा जो प्रायः छोटी से बड़ी तूफानी आपदाओं का शिकार होता रहता है संभव है इसी के साथ वहीं कोई बड़े पैमाने का भूचालन भी हुआ हो जिस के झटके लंबे समय तक बार-बार आते हैं और इसके कारण भी लोगों को प्राण रक्षा के लिए इधर-उधर पलायन करना पड़ा हो। जैसे फीनीशियनों को।

तीसरे, इन सभी दृष्टियों से अरक्षणीय और बदनाम दो ही क्षेत्र, पूरी दुनिया में हैं। एक मेक्सिको की खाड़ी से सटा अमेरिका और दूसरा बंगाल की खाड़ी से सटा भारत। इनमें आए साल, मानव सीमा को चुनौती देने वाले प्लावन और जब तब भूचाल आते रहते हैं।

इसी संदर्भ में उनको भारतीय पुराण साहित्य में और सामी परंपरा में सुरक्षित जल प्रलय के विवरण को देखना और समझना चाहिए था। जो बात हमारी समझ से बाहर है वह है जोंस का फरेब या अतिकथन जिसका सहारा वह लेते हैं, Now that primeval events are described to have happened between the Oxus and Euphretes, the mountains of Kakeshus and the borders of India, that is within the limits of Iran. और इस तरह वह ईरान को इसका घटना क्षेत्र सिद्ध करते हैं।