Post – 2019-11-15

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (26)

#भारत_की_खोज-सात

यदि दक्षिण पूर्व एशिया सहित भारत को वृहत्तर भारत कहा जाता रहा है आर्य भाषा क्षेत्र को जो भारत से लेकर यूरोप के सीमांत तक फैला हुआ है, महत्तर भारत कह सकते हैं। इसका जो चित्र जोन्स ने 1791 में अपने आठवें वार्षिक व्याख्यान में खींचा था उसमें कुछ अनगढ़ताएँ तो हैं, पर उन पर टिप्पणी करने से लेख जो लंबा है, सँभाल से बाहर चला जाएगा। यह ऐसी मार्मिक सूचनाओं से भरा है जिनको बाद में राजनीतिक या वर्चस्ववादी तकाजों से बाद में झुठलाने या दबाने की कोशिश की गई। हम इसे यथासंभव उनके ही शब्दों में रखना चाहेंगे।

एशिया के सभी जन तीन प्रमुख आदिम कुलों (स्टाक्स) – भारतीय, अरब और तातारी से निकले हैं(desended from three primitive stocks, which we call for the present Indian, Arabian, Tatarian) जिनकी चर्चा वह पहले कर चुके थे। इसमें वह इनके हाशिए के जनों पर विचार करते हैं।

इथोपिया के अबीसीनिया को इरिथ्रिया, इदुमिया भी कहते हैं। इसके विषय में वह बताते हैं, ‘ इसके निवासी भारतीय मूल के है (we may safely refer to the Indian stem).

वह M.D’ Herbelot के हवाले से एक पुरानी कहानी का जिक्र करते हैं जिसके अनुसार इरिथ्रियन सागर के उत्तरी तट से कुछ लोग भूमध्य सागर तक पहुँचे और फिर जहाज से उसे पार करके यूरोप पहुँचे। ग्रीक और रोमन इनकी ही संतान हैं ( both Greeks and Romans were the progeny of those emigrants)। इसको इतिहास का सच मानते हुए वह इसके समर्थन में न्यूटन को उद्धृत करते हैं जिसके अनुसार ज्ञान, विज्ञान, नौचालन, अक्षरज्ञान इनके माध्यम से ही हुआ:
Newton, who advanced nothing in science without demonstration, and nothing in history without such evidence as he thought conclusive, asserts from authorities, which he had carefully examined, that the Idumean voyagers “carried with them both arts and sciences, among which their astronomy, navigations, and letters”.
आगे वह इसके समर्थन में स्त्राबो और हेरोदोतस का भी हवाला देते हैं: But the invention and propagation of letters and astronomy are by all so justly ascribed to the Indian family, that, if Strabo and Herodotus were not grossly deceived, the adventurous Idumeans, who first gave names to the stars, had hazarded long voyages in ships of their own construction, could be no other than a branch of the Hindu race….
आज भी इथोपिया की भाषा पर भारतीय प्रभाव लक्ष्य किया जा सकता है: That the written Abyssinian language, which we call Theosophic, is a dialect of old Chaldean…. We know at the same time, that it is written, like all the Indian characters, from the left hand to the right, and that the vowels are annexed, as in Devanagari, to the consonants, with which they form a syllabic system extremely clear and convenient, but disposed in a less artificial order than the system of letters now exhibited in the Sanskrit grammar; whence it may justly be inferred, that the order contrived by Panini or his disciples is comparatively modern; and I have no doubt, from a cursory examination of many old inscriptions on pillars and in caves …from all parts of India that Nagari and Ethiopian letters had at first a similar form.
सार यह कि I believe on the whole, that the Ethiops and Meroe might easily be shown, with the original Hindus…
the Greeks gave the appellation of Indians both to the southern nations of Africa and to the people among whom we now live
According to Ephorus quoted by Strabo, they called all the southern nations in the world Ethiopians, thus using the Indian and Ethiop as convertible words.

अफगानों को वह यहूदी मूल का सिद्ध करते हैं।

जिप्सी शब्द को वह ईजिप्ट का तद्भव मानते हैं। यह विचार दूसरों का भी है कि वे मिस्र से होते हुए यूरोप की ओर बढ़े थे परंतु their motely language, of which Mr. Grellmann exhibits a copious vocabulary, contains so many Sanskrit words, that their Indian origin can hardly be doubted.

भारत के बोरा a remarkable race of men inhabiting chiefly the cities of Gujarat, who, though Muselmans in religion, are Jews in their features, genius and manners: they form in all places a distinct fraternity and are everywhere noted for address in bargaining, for minute thrift, and constant attention to lucre, but profess total ignorance of their origin.

भारतीय साम्राज्य के पश्चिमी भाग में बसे हुए मोपला अरब व्यापारियों के वंशज हैं।

पश्चिम में विपाशा से लेकर पूर्व में कामरूप और त्रिपुरा तक के पहाड़ी क्षेत्र में अनगिनत जनों का निवास है जिनमें आदिम नृशंसता किसी न किसी मात्रा में पाई जाती है। इस मामले में वे मैदान के सभ्य जनों से कटे से लगते हैं। संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में इन्हें शक, किरात, कोल, पुलिंद और बर्बर और इन सभी से यूरोप के लोग परिचित हैं भले वे उन्हें इन नामों से न जानते हों। पर जिन हिंदू तीर्थयात्रियों को इनके इलाके से गुजरना पड़ा है और जो इनसे परिचित हैं उन्होंने मुझे इनके बारे में विस्तार से जो कुछ बताया उससे ऐसा मानना पड़ता है कि वे भी उसी पुरातन भारतीय मूल के हैं जिसके मैदानी भाग के लोग, यद्यपि इनमें से कुछ का तारतारी के आदिम घुमक्कड़ों से घालमेल हो गया। इन्हीं की बोली के आधार पर वे भाषाएँ निकली हैं जो आज मुगलों द्वारा बोली जाती हैं।

सीलोन की भाषाओं से, वर्णमाला से, धर्म से, और इसमें निवास करने वाले विभिन्न जनों के पुराने स्मारकों से लगता है याद से लुप्त किसी समय में इसको भी हिंदुओं ने ही आबाद किया था। पुराने समय में दक्षिण और पश्चिम की ओर इसका विस्तार काफी आगे तक था जिसमें लंका, भारतीय ज्योतिषियों की मकररेखा, तक भाग आता था। हम इस बात पर भी संदेह नहीं कर सकते कि इन्हीं साहसी जनों ने मलयद्वीपों से लेकर मलक्का तक के या संभवतः इससे भी आगे के भाग को आबाद किया होगा। केप्टन फॉरेस्ट ने मुझे विश्वास दिलाया कि बाली द्वीप में मुख्यतः हिंदू बसे हुए हैं।

M.D’Anville को यह समझ में नहीं आ रहा था कि यवद्वीप जिसे तोलेमी के जबलिअस (Jabalias) लिखा है, इसका अनुवाद पुरानी लातिन में जौ का द्वीप क्यों किया गया था।

यद्यपि आज इसका प्रयोग जावा के लिए होता है पर महान फ्रेच भूगोलवेत्ता ने इस बात के बहुत के बहुत सशक्त तर्क दिए हैं कि पहले इसका प्रयोग सुमात्रा के लिए होता था। यूरोप के लोग इसे जिस भी तरह लिखें, परंतु यह भारतीय शब्द है जिसका अर्थ है ‘समृद्धि का देश’।
उन्हें हैरानी इस बात की थी कि ‘न तो भारत के लोगों को इसका पता है न ही यहाँ के प्रकांड पंडित इनको इन नामों से जानते हैं, खास तौर से तब जब इनमें भारतीयता की छाप नंगी आँखों से दिखाई देता है। हमारी अपनी संस्था के विज्ञ और सूझबूझवाले सदस्यों के सटीक विवरणों से, व्युत्पत्ति जाने बिना भी हमें पता चला है कि सुमात्रा की प्रमुख बोलियों में, उनके विधि-विधान में, संस्कृत के शब्द भरे पड़े हैं। जमानत और व्याज विषयक नियम तो अक्षरशः नारद और हारीत के विधानों जैसे हैं। ….मार्सडन महोदय ने साबित किया है कि मेडागास्कर से लेकर फिलीपीन्स तक ही नहीं अभी हाल में खोजे गए दूर दराज के दीपों की एक दूसरे से कटी बालियों के पीछे साफ साफ एक ही भाषा की झलक दिखाई देती है। सुमात्रा के विषय में जो नमूने उन्होंने दिए हैं उससे पता चलता है कि उनकी जननी भाषा संस्कृत थी।

उनके खयाल से, ‘तिब्बत के लोग हिंदू थे जिन्होंने अपनी पुराकथाओं में बौद्ध-मत का कलम रोप लिया था।’

यहाँ तक कि ‘तातारों में उइग़ुर, तनकात और खाता जो लिखना पढ़ना जानते थे, जिनके पास लोककलाएँ भी थीं, वे तुर्क थे ही नहीं, वे भारतीय थे।’ क्योकि तातार तो मुसलमान बनने से पहले निरक्षर थे।

एशिया के द्वीपों का भ्रमण करने के बाद वह दुबारा भूमध्यसागर के तट पर आते हैं. ‘ग्रीकों और फ्रीजियनों के रहन-सहन में और शायद इनकी बोलियों में भिन्नता तो है, लेकिन इनके मजहब और भाषा में गहरी समानता है। डोरियन, आयोनियन और ईलियन परिवार यूरोप से चल कर आए हैं और सभी का ऐसा मानना है कि इस क्रम में वे मिस्र से होकर आए हैं। पुरानी फ्रीजियन का कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है। ग्रीक मानते हैं कि उनके देश में भारतीयों की तरह जगज्जननी देवीमाँ की असंख्य रूपों और असंख्य नामों से उपासना होती थी। फ्रीजियन भाषा में उसे ‘माँ’ कहा जाता था और उसके रथ को शेर खींचते थे। उसके हाथ में डमरू और सिर पर शिखरयुक्त मुकुट होता था। उसकी साधना उन इलाकों में शरद ऋतु (नवरात्रि) में होती है जिनमें एक रूप माँ का है। डमरू को संस्कृत और फ्रीजियन दोनों में डिमडिम कहते हैं।
इफेसस की डायना (The DIANA of Ephesus) तो हूबहू शाकंभरी (productive NATURE) ही थी। सीरियाइयों और फ्रीजियनों की देवी अस्तार्ते (ASTARTE) उसी का दूसरा रूप थी, इसमें उन्हें संदेह नहीं।’ सीरिया और मिस्र के देवों देवियों पर सेल्डन और जैबलोंस्की की पुस्तकों में ग्रीक, रोमन और हिब्रू की किताबों में यत्र-तत्र बिखरे पूर्व के देवी-देवताओं के जो चित्रण हैं उनसे अधिक संस्कृत की एक ही पुस्तक चंडी में मिल जाएँगे। (I may on the whole assure you, that the learned works of SELDEN and JABLONSKI, ON THE Gods of Syria and Egypt, would receive more illustrations from the little Sanscrit book Chandi than from all the fragments of oriental mythology, that are dispersed in the whole compass of Grecian, Roman and Hebrew literature)। कहते हैं कि हिन्दुओं की ही तरह फ्रीजियन भी सूर्य की पूजा करते थे और उन्ही की तरह मानते थे कि सृष्टि का आरंभ जल से हुआ।

इसमें कोई संदेह नहीं कि सीरिया, समरिया और फीनिस पर या भूमध्य सागर के पूरे लंबे तट पर पहले भारतीय जनों का निवास था और बाद में इनमें उन नस्लों के लोग आ बसे जो अपने को अरब कहते हैं।