Post – 2019-11-14

क्या अब भी धुंध-ओ-गर्द के आगे है कोई रात
उस रात के आगे भी सुबह है कि नहीं है।।
मैं पूछता नहीं हूँ, महज सोच रहा हूँ
उस सुबह में सूरज की जगह है कि नहीं है।
तुम हो कि तुम्हारा खयाल ही है मुजस्सिम
मैं हूँ तो मेरा होशो-हवस है कि नहीं है।।
विज्ञान ने भगवान को मारा तो मैं खुश था
अब अपने सामने ही विवश है कि नहीं है।।
कारा को तोड़ कर तो निकल आया मगर अब
इस जहन का भी कोई कफस है कि नही है।।