Post – 2019-11-13

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (25)
#भारत_की_खोज- छह

संस्कृत भाषियों, अर्थात् हिंदुओं और भारत में बसने वाले आदिम जनों के मूल की खोज भारत, अरब, तातारी, फारस और चीन की खोज के साथ ही समाप्त नहीं हो गई। इसकी पड़ताल कुछ और विस्तार में करते हुए अपनी स्थापना को विश्वसनीय बनाने के प्रयत्न में विलियम जोन्स निरंतर हास्यास्पद होते चले गए, परंतु इसका उन्हें आभास तक नहीं था।

पुराणकथाओं को उनके कथा-बंध को समझे बिना इतिहास के लिए उनका उपयोग करने वाला अपने को हास्यास्पद बनाने से रोक नहीं सकता। यह भूल उन्होंने भारत के विषय में भी की थी और यही पूरी दुनिया के विषय में करते जा रहे थे। भारत के विषय में उन्होंने अपने सहायक संस्कृत के विद्वानों से सुने सुनाए पौराणिक कथाओं के आधार पर राय कायम की थी। यदि ब्राह्मण अपनी भाषा और विचार लेकर कहीं अन्यत्र से भारत में आए थे, उनका पुराण भी वहीं से आया होगा। यदि भारतीय ब्राह्मण अपने पौराणिक इतिहास को कई कल्पों तक पीछे ले जाते थे तो इसका कारण उनका अज्ञान हो सकता है या उनकी धूर्तता। सही इतिहास का पता उस पुराण से चल सकता था जिसे बाइबल की सृष्टि कथा में पाया जाता है। वह सही था, इसका एक प्रमाण यह है कि हिंदुओं के पुराण में भी मनु के माध्यम से लगभग आदम और नोआह की कहानी को कुछ बिगड़े रूप में दोहराया गया है। ईसाई पुराण के अनुसार मानवता का इतिहास गढ़ने का उनका प्रयास और भी हास्यास्पद हो गया।

इसकी ओर सबसे पहले जेम्स मिल का ध्यान गया । प्राचीन भारत के विषय में मिल की टिप्पणियां तिरस्कारपूर्ण तो हैं परंतु वे उनकी इतिहास की समझ पर आधारित न होकर, ईसाई मिशनरियों की रपटों पर आधारित हैं। इसके कारण प्राचीन भारत का उनका मूल्यांकन, विलियम जोन्स की समझ का उपहास मात्र है। उनकी चर्चा हम आगे करेंगे।

हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि पश्चिमी जगत के भारत विषयक अज्ञानजनित अंधकार में एक मोमबत्ती की रोशनी के सहारे वह यथार्थ तक पहुंचने का प्रयत्न कर रहे थे। ऐसा प्रयत्न इससे पहले किसी ने नहीं किया था। ईसाई, या कहें, इब्रानी मजहबों के लोग, सभी विधर्मी यों को असभ्य, अज्ञान में डूबा हुआ मानते थे , और उनमें किसी तरह का उत्कर्ष दिखाई नहीं देता था। जोन्स को इस विशेष अर्थ में बुद्धिवादी और अपने समय से आगे माना जा सकता है कि उन्हीं संस्कारों में पले होने के कारण, अपनी ओर से काटछाँट करने के बाद भी जो अकाट्य लगता था, उसे स्वीकार करने का साहस भी उनमें था, और दूसरों को, अविश्वसनीय लगने वाले अपने विचारों का कायल बनाने के लिए, वह उस बात को बहुत अधिक बल देकर पेश करते थे। क्षीण प्रकाश के साथ ही जल्दी-जल्दी सब कुछ देख जाने की कोशिश के कारण उनके निष्कर्ष आज काल्पनिक लगते है, भिन्न रुझान के कारण वे जेम्स मिल को भी ख्याली, और इसलिए हास्यास्पद लगे थे। उनका कोई विचार सही नहीं है, उनके अनेक अनुमान वास्तविकता से दूर थे, इसके बाद भी उस धुंधलके में टटोलते हुए ऐसी सच्चाइयों को सामने लाते हैं, जो उनके बहुत-बहुत बाद में प्रकाश में आ सकीं। उन्हें आज भी समझा नहीं जा सका है।

सचाई का आंखों के सामने होना, आपकी नजर का नॉर्मल होना इस बात की गारंटी नहीं है कि आप उसे देख सकेंगे। बुद्धि का असाधारण प्रखर होना भी इस बात की गारंटी नहीं है कि आप उसे समझ सकेंगे। बिना चश्मे वाले भी सिर्फ अपनी आंखों से नहीं देखते, अपने स्वार्थ, अहंकार, और विद्वेष जैसे कई अदृश्य चश्मों को एक के ऊपर एक लगाकर देखते हैं, परंतु उनके विषय में सावधान नहीं होते, इसलिए मान लेते हैं कि जो कुछ हमने देखा है वही सच है; अपनी मेधा और प्रतिभा के बल पर, जिन अपर्याप्त सूचनाओं के आधार पर, जिन निष्कर्षो पर हम पहुंचे हैं वे अकाट्य हैं। इस दृष्टि से विचार करने पर, विलियम जोन्स पर अपनी फब्तियों के बावजूद जेम्स मिल अधिक गलत और अधिक हास्यास्पद प्रतीत होते हैं।

आगे बढ़ने से पहले, हम यह निवेदन करना चाहते हैं कि सूचना के किसी भी स्रोत की बारीकी से छानबीन करने के बाद एक विश्वसनीय इतिहास रेखा गढ़ी जा सकती है, जो इतनी प्रामाणिक हो सकती है कि दूसरे स्रोतों के निष्कर्ष यदि उससे अनमेल पड़ें तो उनको संदिग्ध माना जा सके। ऐसा गलतबयानियों और अफ़वाहों के बल पर भी किया जा सकता है। शर्त केवल एक है कि उस स्रोत की समस्त या अधिकतम सूचनाएँ हमें उपलब्ध हों। प्रश्न सामग्री को देखते हुए सही प्रविधि या मेथडालॉजी और औजार विकसित करने का है। इसके अभाव में पुरातत्व कूड़े की ढेरियों का अध्ययन बनकर रह जाएगा।

इसे स्पष्ट करना जरूरी है। यह सवाल केवल हम कर सकते हैं कि बाइबल की सृष्टि कथा को भी यदि जोंस ने समझा होता तो वह इस भ्रम के शिकार नहीं होते कि आदम की जिस कथा को वह अधिक प्रामाणिक मान कर उसके अनुसार मानव इतिहास को समझना और समझाना चाहते थे उसका ईडन गार्डन दूर कहीं पूर्व में था। शब्दों का जैसा विवेचन करते आए थे, उसके अनुसार यह समझ सकते थे कि ईडन गार्डन इन्द्र उद्यान था और इन्द्र कृषि के देवता थे। शैतान या विनाशकारी और अनिकेत या घुमक्कड़ लोगों को अहि के रूप में भारत में कल्पित किया जाता था। देव समाज के विषय में तो उन्हें उस समय के ज्ञान के स्तर पर कोई जानकारी न हो सकती थी, पर वे भारतभूमि के निवासी थे। कृषि-कर्मियों को उत्पीड़ित करके सभी दिशाओंं में भागने को विवश भारत के आहारसंग्रही जमात ने किया था। सभी पक्ष भारत की ओर इंगित कर रहे थे इसलिए संस्कृत और ब्राह्मणों का बाहर कहीं से से आना नहीं भारत से उनका या उनकी भाषा का किसी तरीके से बाहर जाना सिद्ध होता था। इस समझ के बाद उन्हें यह भी समझ में आ जाता कि बाइबल की आदम की कथा कृषि के आरंभ की कथा है, इसका सृष्टि से कोई संबंध नहीं, अर्थात् इब्रानी सृष्टि कथा कोरी कल्पना है या किसी अन्य स्रोत की नकल है जिसकी सही समझ मिथककार को न थी। तब यह स्पष्ट हो जाता कि वह मूल कथा भारत से आई हो सकती है। गोर्डन चाइल्ड की सुझाई हुई एक मान्यता यह है कि खेती का आरंभ पश्चिम एशिया में हुआ था। अब पता चलता कि आरंभ कहीं पूर्व में हुआ था जहाँ से भगाए हुए लोगों ने पश्चिम एशिया में आकर यहाँ खेती आरंभ की थी। अब हम पाते हैं कि कैसे पुराणकथाओं के सही विवेचन से उतना ही प्रामाणिक इतिहास तैयार हो सकता है जितना पुरातत्व से और ये दोनों एक दूसरे के पूरक बन सकते हैं।