#बदहवासी सी बदहवासी है
और यह महा व्याधि का रूप ले चुकी है। इसका शिकार मैं भी हूं । महा व्याधि नहीं है यह, होती तो सभी को एक ही कारण से एक ही रूप में होती। यह एक चक्रवात है जिसमें तूफाने बदगुमानी मिला हुआ है।
कई बार, कुछ समान लक्षणों वाले, अनेक व्याधियों के शिकार लोग एक जैसी या लगभग एक जैसी अनुभूति से गुजरते हैं। रोगविज्ञानियों को यह तय करने में लंबा समय लगता है की असल में बीमारी क्या है। कुछ वैसी ही स्थिति आज की बदहवासी पर भी लागू होती है।
हम अपने सभी निर्णय टेस्टट्यूब की परिशुद्धता में नहीं करते। सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला इतिहास है। इतिहास से हम केवल यह समझ सकते हैं कि ठीक वैसी ही परिस्थितियां पैदा हो तो हम वह काम न करें जिसका हमें नुकसान उठाना पड़ा था।
परंतु इतिहास स्वयं इस बात का गवाह है कि एक जैसी परिस्थितियां दुबारा पैदा नहीं होतीं, न हो सकती हैं। इसलिए हम अपने समकालीन, सम्मुखीन समस्याओं के समाधान में अतीत की कुछ गलतियों से बचने का प्रयत्न कर सकते हैं परंतु उनके आधार पर सही निर्णय नहीं ले सकते।
इतिहास में किसी भी चरण पर सभी की समस्याएं एक जैसी नहीं रही हैं। एक ही समय में, अपने ही युग के संकट को, अलग अलग हितों से जुड़े लोग, अलग-अलग रूपों में अनुभव करते रहे हैं।
इन अनुभवों के समग्र को हम उस युग का सत्य कह सकते हैं, परंतु दुर्भाग्य से इन सभी का कोई ऐसा समग्र रूप बनता नहीं, इसलिए किसी युग का कोई एक सत्य नहीं होता, जिसे हम युग सत्य कहते हैं वह उस छोटे से वर्ग के हित से जुड़ा लक्ष्य होता है जिसे हासिल करने के लिए वह उसे युगसत्य के रूप में प्रतिष्ठित करके, समस्त सामाजिक ऊर्जा को उस दिशा में मोड़ कर, उसे हासिल करना और अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है।
एक ही समय में, एक ही समाज के एक वर्ग का सत्य दूसरे का झूठ होता है और दूसरे का सत्य इसके लिए झूठ होता है। झूठ का अर्थ होता है, जो एक को दिखाई देता है, दूसरे को दिखाई नही देता।