Post – 2019-10-21

बदहवासी सी बदहवासी है
भीड़ आईने में, पर गुम है हमारा चेहरा
तोड़ दूँ शीशा या चेहरा खरीद कर लाऊँ
कहीं तो होगा मेरे चेहरे से मिलता चेहरा।
क्या कहा फिर से कहो
हँस के कहो, खुल के कहो
तुम्हारे चेहरे में पोशीदा है सबका चेहरा।
खुद को पहचानो मगर खुद को मिटा कर देखो