Post – 2019-10-13

यह एक दुखद सूचना है कि बीएसएलएल और एमटीएनएल को बन्द किया जा रहा है।
पहले से बढ़ी बैरोजगारी और बढ़ेगी। कर्मचारियों को हटाया शायद निगमों से भी नहीं जा सकता, उन्हें रिटायर किया जा सकता है और वे बिना कोई सेवा प्रदान किए लंबे समय तक पेंसन लेते रहेंगे। खजाने पर बोझ बना रहेगा। इसको लेकर समाचार पत्रों में सरकार विरोधी सरगर्मी बनी रहेगी। सरकार की बदनामी होगी।
इसके बाद भी यह एक जरूरी और अपरिहार्य कदम है। इसकी बन्दी पर आँसू बहाने और शोर मचाने वालों को यह कर्मकांड करने से पहले अपनी लैंडलाइन का नंबर और सेलफोन के सेवा प्रदाता का नाम और नंबर अवश्य देना चाहिए। मुझे विश्वास है कि सरकार के फैसला लेने से बहुत पहले वे इनको स्वयं बंद कर चुके हैं। ऐसा उन्होंने क्यों किया वे स्वयं जानते हैं। इन दोनों निगमों के कर्मचारियों ने स्वयं अपनी सेवाएं बन्द करने का लंबा अभ्यास करते हुए उसे बंद किया है। सरकार पर्दा उठाने का काम करेगी।
मोदी ने अपने लंबे अनुभव से यह जाना है कि व्यापारिक गतिविधियाँ सरकारी अमलों सँभल नहीं रही हैं। इसकी आचारसंहिता अलग होती अभ्यर्थी इनके लिए अपने को अलग तरीके से योग्य बनाते हैं। वे सेवाशर्तों पी आड़ में अपनी चुनऔतियों को समझ तक नहीं पाते। डाकविभाग के इतने सशक्त तंत्र के बाद भी समानांतर कूरियर सेवा अधिक सफल है। लोग लाचारी में डाकसेवा का उपयोग करते हैं। इंटरनेट और सेलफोन ने पत्राचार को, तार सेवा को लगभग समाप्त कर दिया है पर हाथी उतना ही चारा खाता है। नंबर उसका भी आना है।
पर शिक्षा और चिकित्सा को पूरी कठोरता से व्यवसाय बनने से रोकना, निजी स्वामित्व को समाप्त करना और राज्यभाषा को उच्चतम शिक्षा और न्याय की भाषा बनाना उतना ही जरूरी है। यदि मोदी है इसलिए पहला मुमकिन है तो दूसरा भी मुमकिन होना चाहिए। वह देशहित में अप्रिय कठोर फैसले ले सकते हैं।