व्यक्तित्वांतर
क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति शांति और सौहार्द का पक्षधर रहा हो वह वह किसी चरण पर दुर्दांत मानवता द्रोही बन जाए? यह उसी तरह संभव है जैसे जो व्यक्ति किसी को इतना प्यार करता हो कि उसके लिए प्राण तक दे दे वह उसका प्राण लेने को तैयार हो जाए। उग्र आवेग अपने प्रतिकूल गुण और धर्म में बदलने की क्षमता रखते हैं। जो स्थाई है वह गुण और धर्म नहीं, उग्रता है।
अपने शैशव और बचपन के अनुभवों से उत्पन्न कुंठाओं और ग्रंथियों से ऊपर उठने की लालसा से एक ओर तो उनके भीतर ईमानदारी, सादगी, दयालुता, सहनशीलता[] और दृढ़ता जैसे दुर्लभ गुणों का विकास किया, दूसरी ओर इनके प्रदर्शन से दूसरे लोगों से अलग और ऊपर सिद्ध होने की प्रवृत्ति ने उनसे इस श्रेष्ठता को स्वीकार कराने, उन पर हावी होने की लालसा – अहंमन्यता – पैदा हुई जो इन विशेषताओं से उत्पन्न व्याधि है, जिसके लिए मेगलमीनिया [megalomaniac (/mɛɡələˈmeɪnɪak) – an unnaturally strong wish for power and control, or the belief that you are very much more important and powerful than you really are ..] का प्रयोग किया जाता है। व्याधि का रूप लेने के कारण व्यक्ति अपनी स्वीकार्यता की जिद में अपने उन गुणों के विपरीत आचरण कर सकता है जिनके बल पर अपनी श्रेष्ठता का दावा करता है और इसके साथ ही इस भ्रम का भी शिकार हो सकता है कि अपने सिद्धांत पर चल रहा है।[
मोहम्मद को अपनेआरंभिक उपेक्षित जीवन के अनुभव के कारण दुखी, अपमानिक लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। गुलामों के प्रति, यतीमों के प्रति, अपने अनुयायियों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति उनके संपर्क में आने वालों को इतने अटूट भाव से जोड़ देती थी कि वे उनके किसी कथन को असत्य मान ही नहीं सकते थे। इसे बनाए रखने के लिए वह तकियाकलाम की तरह अपने पैगंबर होने का दावा दुहराते रहते हैं, जम कि दूसरे, उन्हें निकट से जानने वाले भी उनमें ऐसा कोई गुण नहीं देख पाते जो मानवेतर हो इसलिए वे उन्हें मक्कार समझ कर तिरस्कृत करते हैंः
‘Then said the chiefs of the people who believed not, “We see in thee but a man like ourselves; and we see not who have followed thee, except our meanest ones of hasty judgement, nor see we any excellence in you above ourselves. Nay, we deem you liars,”‘ Suratu Hud (xi) 29.
And the infidels say, ‘The Qur’an is a pious fraud of his own devising, and others have helped him with it.’
And they say, ‘Tales of the ancients that he hath put in writing! and they were dictated to him morn and even.’ Suratu’l-Furqan (xxv) 5-6.
मदीना में उनको इस तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। धार्मिक आस्था की दृष्टि से यहां का परिवेश उनके अनुकूल था। परंतु मुहाजिरों की बढ़ने के बाद आर्थिक संकट इतना गहरा था कि मोहम्मद आर्तनाद सा करते हैं:
‘O Lord, they (i.e., Muslims,) go on foot, make them riders; they are hungry, satisfy them; they are naked, clothe them; they are poor, enrich them.’ Mudariju’n-Nabuwat, p. 559, cited by Sell in The Battle of Badr, p. 10
ये ही असह्य परिस्थितियां थीं जिनमें उनका पेट भरने के लिए लूटपाट का तरीका अनिवार्य हो जाता है, जिसके लिए कुरैशों के काफिले पर आक्रमण करना उन्हें एक नैतिक ओट देता है उनके अन्याय के कारण ही इन्हें अपना सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा, उनके द्वारा ही यह निरंतर अपमानित किए जाते रहे। और इस तरह एक एक कदम आगे बढ़ते हुए बद्र के जंग का वह मोड़ आता है जहां अल्लाह नेपथ्य में चला जाता है और तलवार सभी सवालों का जवाब देने लगती है। कठोरता नृशंसता का रूप लेती चली जाती है, अहंकार पराकाष्ठा पर पहुंचता जाता है। कारण, इन सब के पीछे है, अनुपात और औचित्य का ध्यान नहीं रह जाता, पर पीड़न में आनंद आने लगता। शैतान का बहकावा हो, या अल्लाह की जगह शैतान की दखलअंदाजी हो, शैतान का प्रवेश इसी दौर में होता है। वह पूरी कौम को मजहब की आड़ में शैतानी के रास्ते जाने को मजबूर कर देता है। स्वयं पैगंबर का आचरण ऐसा हो जाता है मानो उनके इस पर उनके सर भूत सवार हो गया हो। इलहाम के पहले अनुभव में उन्हें ऐसा ही लगा था बाद का उनका आचरण उसे प्रमाणित भी करने लगता है। कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है।
यहूदी सरदार किनान को यातना दी जाती है उसका सिर काट दिया जाता है, उसकी रूपवती पत्नी सफिया को गुलाम बना लिया जाता है। वह दहिया के हिस्से में आती। उस पर मुहम्मद की नजर पड़ती है तो वह उससे शादी का प्रस्ताव रखते हैं। वह उसे कबूल भी कर लेती है।
ऐसी ही स्थिति में, निकाह का प्रस्ताव स्वीकार करने वाली एक दूसरी स्त्री जैनब जिन्दा गाड़ दिए गए अपने पति और रिश्तेदारों का बदला लेने के लिए उनके भोजन में जहर मिला देती है। उनकी जान तो बच जाती है, पर इसको जान से हाथ धोना पड़ता है।
उनमें विवाह करने को विवश सभी महिलाओं में विद्रोह की क्षमता नहीं थी, अन्यथा गतायु और शरीर-विज्ञानी कारणों से अक्षम व्यक्ति से विवाह रचने वाली कितनी महिलाएं सचमुच उनसे संबंध रखना चाहती थी यह तय करना कठिन है।
चार विवाह करके समानता का बर्ताव करने का जो नाटक मोहम्मद ने आरंभ किया था उनकी जानकारी में भी व्यर्थ था।
बानी उमैया के कुछ लोग मुसलमान बन गए। उन्हें मदीने की जलवायु रास नहीं आई। मोहम्मद ने कृपा करके उन्हें ऊँट दे कर रेगिस्तानी ढंग से रहने की छूट दे दी। उनकी सेहत में सुधार आ गया पर उनके मन में लोभ पैदा हुआ, वे ऊंटों को लेकर चंपत होने लगे। मोहम्मद को पता चला तो उन्हें पकड़ कर लाया गया अवर्णनीय यातना देकर मारा गया। इसे उचित ठहराने के लिए आयत भी उतर आईः
The recompense of those who war against God and His Apostle, and go about to commit disorders on the earth, shall be that they shall be slain or crucified, or have their alternate hands and feet cut off, or be banished the land. This their disgrace in this world, and in the next, a great torment shall be theirs. Suratu’l-Ma’ida (v) 37.
क्रम में अंतर हैः
[5:33] The just retribution for those who fight GOD and His messenger, and commit horrendous crimes, is to be killed, or crucified, or to have their hands and feet cut off on alternate sides, or to be banished from the land. This is to humiliate them in this life, then they suffer a far worse retribution in the Hereafter.
जिस तरह की लूटपाट मक्का के मुसलमान करने लगे थे, उसी तरह की लूटपाट मदीना के व्यापारियों के काफिलों की भी होने लगी। इसका बदला लेने के लिए जैद को भेजा गया। उसने उस कबीले की एक हैसियत वाली बृद्धा उम्म किरिया के दोनों पांव दो ऊँटों से बाँध कर उल्टी दिशाओं में तब तक चलाया जब तक पूरा शरीर दो फाँक न हो गया। लौट कर उसने अपनी कारस्तानी बयान की तो मुहम्मद ने बाहों में भर कर चूम लिया।
अल्लाह मोहम्मद के साथ रहे हो, परंतु बीच बीच में मुसलमानों को अपने हमलों में पराजय का मुंह देखना पड़ता। ऐसे मामलों में वे यहूदियों को प्रताडित किया करते। खैबर का हमला ऐसा ही था। यहूदियों ने बचाव में अपने को असमर्थ पा कर समर्पण कर दिया। जिब्रील ने सलाह दी कि बानू क़ुराज़िया के किताबवाले मूर्तिपूजकों का सफाया करने से पहले तलवार को रुकने न दो। मुहम्मद ने उसे भरोसा दिया, अल्ला की कसम उसी तरह चूर कर दूँगा जैसे अंडे को पत्थर पर पटक कर किया जाता है। तमाम अनुनय-विनय और उनके साथ क्या सलूक किया जाए, इसके लिए न्याय का दिखावा करने के बाद फैसला यह हुआ कि मर्दों का वध किया जाएगा और औरतों और बच्चों को गुलाम बना कर बेच दिया जाएगा और उनका माल-मता सेना में बांटा जाएगा। मुहम्मद ने कहा, “तुमने अल्ला के फैसले के अनुसार ही फैसला दिया है।” मर्दों को मदीना ले जाया गया। मुहम्मद के आदेश से खंदक खोदी गई । अली और जुबैर को इस फैसले पर कत्ल करने के लिए चुना गया। आठ सौ लोगों के कत्ल से खंदक खून से भर गई। औरतों को आपस में बांट लिया गया। उनमें सबसे सुंदर रेहाना को मुहम्मद के हरम के लिए रख लिया गया।