Post – 2019-07-20

व्यक्तित्वांतर
(संपादन के समय ही संक्षेपण हो पाएगा। )

क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति शांति और सौहार्द का पक्षधर रहा हो वह वह किसी चरण पर दुर्दांत मानवता द्रोही बन जाए? यह उसी तरह संभव है जैसे जो व्यक्ति किसी को इतना प्यार करता हो कि उसके लिए प्राण तक दे दे वह उसका प्राण लेने को तैयार हो जाए। उग्र आवेग अपने प्रतिकूल गुण और धर्म में बदलने की क्षमता रखते हैं। जो स्थाई है वह गुण और धर्म नहीं, उग्रता है।

अपने शैशव और बचपन के अनुभवों से उत्पन्न कुंठाओं और ग्रंथियों से ऊपर उठने की लालसा से एक ओर तो उनके भीतर ईमानदारी, सादगी, दयालुता, सहनशीलता[] और दृढ़ता जैसे दुर्लभ गुणों का विकास किया, दूसरी ओर इनके प्रदर्शन से दूसरे लोगों से अलग और ऊपर सिद्ध होने की प्रवृत्ति ने उनसे इस श्रेष्ठता को स्वीकार कराने, उन पर हावी होने की लालसा – अहंमन्यता – पैदा हुई जो इन विशेषताओं से उत्पन्न व्याधि है, जिसके लिए मेगलमीनिया [megalomaniac (/mɛɡələˈmeɪnɪak) – an unnaturally strong wish for power and control, or the belief that you are very much more important and powerful than you really are ..] का प्रयोग किया जाता है। व्याधि का रूप लेने के कारण व्यक्ति अपनी स्वीकार्यता की जिद में अपने उन गुणों के विपरीत आचरण कर सकता है जिनके बल पर अपनी श्रेष्ठता का दावा करता है और इसके साथ ही इस भ्रम का भी शिकार हो सकता है कि अपने सिद्धांत पर चल रहा है।[

मोहम्मद को अपनेआरंभिक उपेक्षित जीवन के अनुभव के कारण दुखी, अपमानिक लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। गुलामों के प्रति, यतीमों के प्रति, अपने अनुयायियों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति उनके संपर्क में आने वालों को इतने अटूट भाव से जोड़ देती थी कि वे उनके किसी कथन को असत्य मान ही नहीं सकते थे। इसे बनाए रखने के लिए वह तकियाकलाम की तरह अपने पैगंबर होने का दावा दुहराते रहते हैं, जम कि दूसरे, उन्हें निकट से जानने वाले भी उनमें ऐसा कोई गुण नहीं देख पाते जो मानवेतर हो इसलिए वे उन्हें मक्कार समझ कर तिरस्कृत करते हैंः
‘Then said the chiefs of the people who believed not, “We see in thee but a man like ourselves; and we see not who have followed thee, except our meanest ones of hasty judgement, nor see we any excellence in you above ourselves. Nay, we deem you liars,”‘ Suratu Hud (xi) 29.
And the infidels say, ‘The Qur’an is a pious fraud of his own devising, and others have helped him with it.’
And they say, ‘Tales of the ancients that he hath put in writing! and they were dictated to him morn and even.’ Suratu’l-Furqan (xxv) 5-6.

मदीना में उनको इस तरह के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। धार्मिक आस्था की दृष्टि से यहां का परिवेश उनके अनुकूल था। परंतु मुहाजिरों की बढ़ने के बाद आर्थिक संकट इतना गहरा था कि मोहम्मद आर्तनाद सा करते हैं:
‘O Lord, they (i.e., Muslims,) go on foot, make them riders; they are hungry, satisfy them; they are naked, clothe them; they are poor, enrich them.’ Mudariju’n-Nabuwat, p. 559, cited by Sell in The Battle of Badr, p. 10
ये ही असह्य परिस्थितियां थीं जिनमें उनका पेट भरने के लिए लूटपाट का तरीका अनिवार्य हो जाता है, जिसके लिए कुरैशों के काफिले पर आक्रमण करना उन्हें एक नैतिक ओट देता है उनके अन्याय के कारण ही इन्हें अपना सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा, उनके द्वारा ही यह निरंतर अपमानित किए जाते रहे। और इस तरह एक एक कदम आगे बढ़ते हुए बद्र के जंग का वह मोड़ आता है जहां अल्लाह नेपथ्य में चला जाता है और तलवार सभी सवालों का जवाब देने लगती है। कठोरता नृशंसता का रूप लेती चली जाती है, अहंकार पराकाष्ठा पर पहुंचता जाता है। कारण, इन सब के पीछे है, अनुपात और औचित्य का ध्यान नहीं रह जाता, पर पीड़न में आनंद आने लगता। शैतान का बहकावा हो, या अल्लाह की जगह शैतान की दखलअंदाजी हो, शैतान का प्रवेश इसी दौर में होता है। वह पूरी कौम को मजहब की आड़ में शैतानी के रास्ते जाने को मजबूर कर देता है। स्वयं पैगंबर का आचरण ऐसा हो जाता है मानो उनके इस पर उनके सर भूत सवार हो गया हो। इलहाम के पहले अनुभव में उन्हें ऐसा ही लगा था बाद का उनका आचरण उसे प्रमाणित भी करने लगता है। कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है। हमारे साथ समस्या यह है कि अनुवाद करें तो जगह कम पड़ेगी, मूल का सहारा ले तो भी राहत नहीं मिलेगी। संक्षेप में कहें विश्वसनीयता का संकट पैदा होगा, फिर भी रास्ता बचता है कि कहा संक्षेप में जाए और टिप्पणी में स्रोत दे दिया चाए।
एक युद्ध में जिस स्त्री का पति मारा गया है, उसे गुलाम बना लिया गया है, उसे को सौंप दिया गया है, अपनी मौत के करीब पहुंचे पैगंबर उससे शादी का प्रस्ताव रखते हैं। वह उसे कबूल भी कर लेती है।
The Jewish chief Kinana was accused of concealing some treasure and according to some accounts, was tortured and beheaded . His wife Safiyya was a daughter of Huyay who had been slaughtered with the Bani Quraiza. She was a woman of great beauty and as she had lived near Madina with her father was probably known to Muhammad. She at first fell to the lot of a man called Dahiya,4 but when Muhammad’s attention was called to the fact of her high position amongst the Jews, he gave compensation to Dahiya and himself sought her in marriage, and strange to say she consented to become his tenth wife.

एक दूसरी ऐसे ही स्थिति में, निकाह का प्रस्ताव स्वीकार करने वाली स्त्री उनसे भोजन में विष मिला देती है, जान उनकी बन जाती है, जाती उसकी है जिसने उनसे बदला लेने की कोशिश की थी परंतु यह इस बात का भी प्रमाण है के बद्र के बाद उन्होंने स्त्रियों को अपमानित करने के लिए उनसे विवाह किया
One woman, Zainab bint Harith, by means of some poisoned goats flesh attempted to kill Muhammad, who had caused her husband and relatives to be put to earth, and atoned for her act by her death.
और उनमें सभी में विद्रोह की क्षमता नहीं थी, अन्यथा गतायु और शरीर-विज्ञानी कारणों से अक्षम व्यक्ति से विवाह रचने वाली सभी महिलाएं उनके अहंकार -तुष्टि का फास्ट बनी कितनी महिलाएं सचमुच उनसे आकर्षित की या संबंध बनाना चाहती थी या तय करना कठिन नहीं है।
चार विवाह करके समानता का बर्ताव करने का जो नाटक मोहम्मद ने आरंभ किया था उनकी जानकारी में भी व्यर्थ थाः
Suratu’n-Nisa’ (iv) 3, which sanctions four wives and the acquired slaves, seems to show that in polygamy there is a danger lest jealousy and ill-feeling may arise. The remedy suggested is monogamy: ‘If ye fear that ye shall not act equitably, then (marry) one only.’ Now Hafasa and ‘Ayisha apparently thought that they did not get equitable treatment and were jealous of Mary the Copt. Muhammad had neglected the Qur’anic remedy for such a state of things and hence all this domestic trouble. The verse quoted from Sura iv and this verse,Ye will not have it at all in your power to treat your wives alike, even though you would fain do so [Suratu’n-Nisa, (iv) 128]. इस तरह बहु विवाह, हरम, महिलाओं की यंत्रणा का एक रूप था और इसी यंत्रणा को आरंभ स्वयं मोहम्मद ने बद्र के जंग के बाद किया था। उनमें एक पर एक महिलाओं को बंदी बनाकर ऐसे संताप में जीने को विवश करना पर पीड़न में आनंद लेने का एक रूप थी।
5. बानी उमैया के कुछ लोग मुसलमान बन गए। उन्हें मदीने की जलवायु रास नहीं आई। मोहम्मद ने कृपा करके उन्हें ऊँट दे कर रेगिस्तानी ढंग से रहने की छूट दे दी। उनकी सेहत में सुधार आ गया पर उनके मन में लोभ पैदा हुआ, वे ऊंटों को लेकर चंपत होने लगे। मोहम्मद को पता चला तोः
The herdsmen who pursued them were cruelly tortured to death. Muhammad was naturally very angry, and when the culprits were captured and brought before him, he ordered that their eyes should be put out, their arms and legs cut off and their bodies impaled until life was extinct. It must, however, be stated that Muhammad seems to have felt that such severe torture in judicial punishments was a doubtful procedure, for he delivered the following
revelation:—

The recompense of those who war against God and His Apostle, and go about to commit disorders on the earth, shall be that they shall be slain or crucified, or have their alternate hands and feet cut off, or be banished the land. This their disgrace in this world, and in the next, a great torment shall be theirs. Suratu’l-Ma’ida (v) 37.
जिस तरह की लूटपाट मक्का के मुसलमान करने लगे थे, उसी तरह की लूटपाट मदीना के व्यापारियों के काफिलों पर भी होने लगे।
The traders at Madina were annoyed,and Zaid was sent with a strong party to punish the robbers. Their stronghold was captured and Umm Qiriya, an old woman, a person of some influence in her tribe, was cruelly put to death. Her legs were tied to camels, which were then driven in opposite directions, until she was torn asunder. Zaid on his return gave an account of his expedition to Muhammad who embraced and kissed him. It is not recorded that he
expressed disapprobation of this cruel deed.
अल्लाह मोहम्मद के साथ रहे हो, परंतु बीच बीच में मुसलमानों को अपने हमलों में पराजय का मुंह देखना पड़ता। ऐसे मामलों में वे यहूदियों को प्रताडित किया करते। खैबर का हमला ऐसा ही था। उन्होंने बचाव में अपने को असमर्थ पा कर समर्पण कर दिया। नतीजाः
The victory won, Gabriel appeared to Muhammad and told him not to put off his arms, for the angels had not done so for forty days. He then gave a direct command: ‘O Muhammad, arise to strike the idolaters who are possessors of the Book, the Bani Quraiza. By Allah I am going to batter their fort and to break it to pieces like the egg of a hen cast against a k.’ Muhammad obeyed and gave the order for the immediate march of an army of three thousand men, with ‘Ali as the standard bearer. The fortress was soon invested and the Jews, who seem to have laid in no stock of provision for a siege, quickly found themselves in great distress. After fifteen days or so had elapsed they requested permission to emigrate as the Bani Nadir had done. This was refused. They then offered to leave all their goods and chattels behind. The reply was that they must surrender unconditionally. …
तमाम विनती और मनुहार के बाद भी फैसला यह हुआ कि
‘This verily is my judgement, that the male captives shall be put to death, that the female captives and the children shall be sold into slavery, and the spoil be divided among the army.’ Any murmuring at this savage decree was at once stayed by
Muhammad who said: ‘Truly thou hast decided according to the judgement of God pronounced. on high from beyond the seven heavens.’ The men were then taken to Madina. Muhammad ordered a trench to be dug. The next day the Jews were brought forth in batches, and ‘Ali and Zubair were directed to slay them. Darkness came on before they had completed their bloody task. Torches were then brought to give light for the completion of this cruel deed. The blood of about eight hundred men flowed into the ditch, on the brink of which the victims were made to knee. Muhammad looked on with approval, and when Huyay bin Akhtab was brought before him said: ‘O enemy of God, at last the Most High has given thee into my hands and has made me thy judge.’ ome of the females were divided amongst the Muslims and the rest were sold as slaves. A beautiful widow, Raihana, whose husband had just been slaughtered, was reserved by Muhammad for his own harem,
कौन कह सकता है कि मुस्लिम आतंकवादी गुमराह हैं?