Post – 2019-07-17

जंगे बद्र का शेष

बद्र के जंग का निचोड़ एक मुसलमान के लिए कुछ और है और एक तटस्थ अध्येता के लिए कुछ और ।
मुहम्मदन के लिए यह भुला देना आसान था कि बद्र का जंग लूटपाट के प्रयत्न का परिणाम था। लूट के ळिए घात एक ऐसे काफिले पर में लगाया गया था जो बहुदेववादियों का था और लुटेरे मुसलमान थे इसलिए यह हको-बातिल का जंग हो गया। यहां से अपना बचाव करने वाला निरपराध गैर मुस्लिम होने के कारण अपराधी या झूठ का सहारा लेने वाला हो गया क्योंकि वह मुसलमान नहीं था, और लूट की तैयारी करने वाले, घात लगाने वाले, सत्य के पक्षधर हो गए। []इसके बाद से किसी गैर मुस्लिम के साथ मुसलमान लूटपाट, हत्या, बलात्कार कुछ भी करे वह धर्म का काम है, और दूसरा अपना बचाव करे तो भी यह अपराध है। इसी कसौटी को अमल में लाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के विश्वस्त सलाहकार के सुझाव पर वह कानून बनने जा रहा था कि हिंदू और अहिंदू के बीच में कभी कोई विवाद होने पर हिंदू को अपराधी मानकर कार्यवाही आरंभ की जाएगी। मध्यकाल के समस्त अत्याचार धर्म का पालन करने के लिए किए जा रहे थे, इसलिए वे अत्याचार थे ही नहीं। []

यह सोचकर कि काफिले की सुरक्षा के लिए एक दस्ता आ रहा है लुटेरे इस उम्मीद में थे कि कारवां देर-सबेर इसी रास्ते आएगा। यह बाद में पता चला कि काफिले का अनुभवी सरदार, सुफियान खतरे को भांप कर उन्हें चकमा देकर दूसरे रास्ते से निकल गया। खाली हाथ रह गए इसलिए ‘यह किसी आर्थिक प्रलोभन के कारण छिड़ा जंग नहीं था। यह मात्र धर्मयुद्ध था, और क्योंकि थोड़ी संख्या में रहते हुए भी जीत मुसलमानों की हुई थी इसलिए सत्यमेव जयते के सिद्धांत के अनुसार सत्य की विजय विजय हुई थी- “हको-बातिल की कशमकश में यही होता है, हक हमेशा ही फतहयाब हुआ करता है।”

कारवाँ भले निकल गया हो परंतु 1000 लोगों के लिए महीनों का रसद और दूसरे सामान, हथियार और ऊँट तंगी झेल रहे मुहाजिरों के लिए कम न थे। परन्तु अंसर भी माले गनीमत की उम्मीद में ही साथ आए थे। दावा उनका भी था इसलिए बहस छिड़ी कि माले-गनीमत में किसका कितना है हिस्सा होना चाहिए। जिसने जान जोखिम में डालकर माल को कब्जे में लिया उसका हिस्सा उनके बराबर कैसे रह सकता है जो पीछे रह गए। खींचतान इतनी बढ़ गई मोहम्मद को अल्लाह की जरूरत पड़ गई। वैसे भी मुसलमानों का कोई फैसला अल्लाह या मुल्ला के हुक्म या हामी के बिना पक्का नहीं होता, इसलिए मोहम्मद को इलहाम हुआः
They will question thee about the spoils. Say: the spoils are God’s and the Apostle’s. Therefore, fear God and settle this among yourselves; and obey God and his Apostle, if you are true believers. Suratu’l-Anfal (viii) 1.
(ऐ रसूल) तुम से लोग अनफाल (माले ग़नीमत) के बारे में पूछा करते हैं तुम कह दो कि अनफाल मख़सूस ख़ुदा और रसूल के वास्ते है तो ख़ुदा से डरो (और) अपने बाहमी (आपसी) मामलात की इसलाह करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो। Hindi translation by Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

शायद इतने से झगड़े का निपटारा नहीं हो सका, इसलिए एक और इल्हाम जरूरी हुआ जिसका आज तक पालन किया जाता है:
When ye have taken any booty, a fifth part belongeth to God and to the Apostle, and to the near of kin, and to orphans, and to the poor, and to the wayfarer, if ye believe in God, and in that which we have sent down to our servant on the day of discrimination, the day of the meeting of the hosts. Anfal (viii) 42.
और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पॉचवॉ हिस्सा मख़सूस ख़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाज़िल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है।

जंग हक के लिए मोल लिया गया था, और कशमकश हिस्से को लेकर चल रही थी। मुहम्मदन थे इसलिए अल्लाह का फैसला तो मानना ही था। बँटवारा इसी आधार पर हुआ। पांचवें हिस्से के ऊपर से मुहब्बत को अबू जह्ल का ऊँट मिला। मिली उसकी तलवार भी जिसे उन्होंने अली को दे दिया।

कहते हैं मुनाफिकून ने इल्जाम लगा दिया कि मोहम्मद ने एक खूबसूरत लाल पोशाक अपने पास रख ली। इसके विषय में भी फैसला किसी इलहाम से ही हो सकता था। सेल ने इस संदर्भ में सूरा 3.155 उद्धृत किया है और समर्थन में Tirmidhi, vol. ii, p. 341 and H. D. Qur’an, p. 144, note. का हवाला दिया है।
It is not the Prophet who will defraud you .Sura ‘Imran (iii) 155.

अनुवादों में अंतर है, और संख्या में भी। छानबीन में 155 में तो नहीं पर 3.161 में अवश्य कुछ ऐसे संकेत हैं जिससे यह आरोप सही लगता है:
“और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि ख्यानत करे और ख्यानत करेगा तो जो चीज़ ख्यानत की है क़यामत के दिन वही चीज़ (बिलकुल वैसा ही) ख़ुदा के सामने लाना होगा फिर हर शख्स अपने किए का पूरा पूरा बदला पाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी।”

अगली घटना जिससे क्रूरता की एक नई प्रवृत्ति को जन्म दिया वह है अबू जह्ल के सिर को काट कर पेश किया जाना और पैगंबर का इस पर खुशी जाहिर करना है:
After the battle was over Muhammad inquired whether Abu Jahl was dead. A servant went forth and saw him wounded but still alive. He then cut off his head and took it to the Prophet who is reported to have said: ‘It is more acceptable to me than the choicest red camel in all Arabia.’

इस तरह की निर्ममता मुहम्मद ने इससे पहले कभी न दिखाई थी। मक्का के मुहम्मद के अल्ला की सलाह थीः
And if you punish [an enemy, O believers], punish with an equivalent of that with which you were harmed. But if you are patient – it is better for those who are patient. मदीने के अल्ला ने भी पहले निर्ममता की हिमायत न की थी। पर अब यह खब्त का रूप लेती चली गई और उसके साथ मुहम्मद का एक नया अवतार हुआ। यह धोखा खाने और माल हाथ से निकल जाने का दबा आक्रोश रहा लगता है क्योकि बाद में सूफियान की हत्या ऐसी ही निर्ममता से की गई।