Post – 2019-07-15

जंगे बद्र

बद्र की जंग इस्लामी इतिहास में एक नए युग का आरंभ था। यह भी रमजान के महीने में 17वें दिन लड़ा गया था। इस दिन को यौम अल फुरकान या फैसले का दिन भी कहते हैं, जिसके साथ कयामत के दिन के फैसले की छाया है। भले हमला लूट के इरादे से किया गया हो, मुस्लिम इसे धर्मयुद्ध के रूप में पेश करते हैं, “The Battle for the sake of Truth. By the people of Truth. Of the purpose of Truth.The battle between Haqq and Baatil, Truth Vs Falsehood. Islam Vs Kufr.

हमारे लिए मुहम्मद के हमलों और विशेषतः, बद्र का महत्व यह है कि हम जिन मुस्लिम आक्रमणकारियों और शासकों और आज के आतंकवादियों के कारनामों की भर्त्सना करते हैं वे बद्र की जंग के समय से ही मुहम्मद की रणनीति और कारनामों से प्रेरित हैं और रहे है। यह प्रमुख कारण है कि उदारता और इंसानियत की बातें करने वाले किसी मुस्लिम नेता, विचारक, सुधारक, इतिहासकार, साहित्यकार या कलाकार ने कभी उनमें से किसी की निंदा नहीं की।
विषयान्तर होने के डर से हम इसके विस्तार में नहीं जा सकते। केवल कुछ पहलुओं को उजागर करना ही पर्याप्त होगा।

इस बात की जानकारी मिलने के बाद कि काफिले की सुरक्षा का पूरा इंतजाम कर लिया गया है मोहम्मद ने बहुत सूझ- बूझ से तैयारी की। लूटपाट का रास्ता मोहम्मद में मुहाजिरों की फटेहाली से चिंतित होकर अपनाया था, इसलिए अभी तक उन्हीं का दस्ता इस काम पर लगाया जाता था। पहली बार उन्हें अंसरों की मदद की जरूरत अनुभव हुई। उनके दल में इस बार 350 लोग थे, इनमें मुहाजिरों की संख्या केवल 87 थी, जब कि अंसर 236 थे।

कुरैश ने अबू सुफ़ियान की मदद के लिए 1300 जवानों, 100 घोड़ों और ऊंटों की एक लश्कर रवाना की। इनका नेता अबू जह्ल था। जब इनको यह सूचना मिली सूफियान रास्ता बदलकर इस बार भी आगे निकल गया है, अब मदद की जरूरत नहीं, तब तक वे बद्र के करीब पहुंच चुके थे। जह्ल ने यह तय किया कि बद्र पहुंचकर आराम करेंगे फिर वापस लौटेंगे।[]

[] इस प्रलोभन को गर्मी के दिनों में किसी पहाड़ी पर्यटन स्थल के निकट पहुंचने पर वहां जाने के प्रलोभन के समकक्ष रख कर भी नहीं समझा जा सकता। रेगिस्तान में उत्सव – (क्या आप उत्सव शब्द का अर्थ जानते हैं? =धरती से अपने आप पानी का ऊपर निकलना।
इसका इतिहास जानते हैं?
यह शब्द उसी भाषा में पाया जा सकता है जो अरब के जल-उद्रेकों के सम्मोहन से परिचित हो।
उद्रेक भी उसी अनुभव की उपज है।
परंतु उपद्रव के लिए विदेश नहीं जाना पड़ेगा। पानी के लिए कुआं खोदिए और गलती से उस जगह खोद बैठिए जहाँ ठीक नीचे या आस पास से कोई अंतःसलिला प्रवाहित हो रही हो और उस गहराई पर छेप दे बैठें कि अंतसलिला का ऊपरी बंध टूट जाए और उसके नीचे का पानी सोती या सोते के रूप में नहीं, मुसलाधार ऊपर फूटे। खोदने वाले जीवित वापस नहीं आएंगे।

पर मुझे शक है कि आप मुस, मूसना और मूसल का अर्थ भी नहीं जानते होंगे। कोश मे मिलेगा मुस/मुष- चोरी करना और मूषक- चोरी करने वाला, जिससे क्रिया रूप मुषायति भी बन गया पर यह औखली के मुसल की व्याख्या नहीं कर सकता, इसलिए धातुपाठ और कोश भी भरोसे के नहीं।

अतः मुस का अर्थ हुआ गहराई में उतरना, छेद करना और इसी तर्क से मुसल किसी पौधे की जड़ों में उस प्रधान जड़ को कहते हैं जो चारों ओर फैलती नहीं सीधे नीचे, बहुत नीचे जाती है। पातालभेदी। फैलने वाली जड़ों से सोती और सोते ही निकल सकते हैं. पर नीचे से फूटने वाली धार मूसलधार।
और जब आप मूसलाधार वृष्टि की बात करते हैं तो इसी मूसल(जड़ी बूटियों के मामले में मुसली का प्रयोग करते हैं) जैसी धारा की बात करते हैं। अंग्रेजी के क्लाउड बर्स्ट के लिए हम आसमान फटने और मूसलाधार वृष्टि का प्रयोग करते हैं।[]

बद्र अपने जलोत्सवों के कारण प्रसिद्ध था और यही वह बाध्यता थी कि जाने और लौटने वाले काफिलों को बद्र से होकर गुजरना पड़ता था।

जो भी हो यह सूचना मिलने के बाद कि किसी सहायता की जरूरत नहीं है, किसी के लौटने पर कोई बंदिश नहीं रह गई। उनमें से 300 लोग वापस चले गए। जह्ल के पास केवल 1000 का सैन्य बल रह गया जो लुटेरों के किसी हमले के लिए बहुत काफी था।

सुफियान का काफिला बहुत बड़ा था। इसमें 1000 ऊँट थे जिन पर कीमती सामान लदा हुआ था। यदि वह हाथ आ जाता तो इतिहास की दिशा कुछ और होती। फटेहाल मुहाजिरों की पाचन क्षमता से अधिक की प्राप्ति उन्हें वाणिज्य व्यवसाय की ओर भी मोड़ सकती थी।

युद्ध में सैन्य बल से अधिक महत्व सही मुकाम पर मोर्चेबंदी का होता है और सही रणनीति का होता है योद्धाओं के मनोबल का होता है। हमलावर को सभी घटक उपलब्ध होते हैं , बचाव करने वाले को नहीं।

इसका मुहम्मद को भरपूर लाभ मिला। उन्होंने पानी के सभी उद्रेकों और कुओं पर अधिकार कर लिया और ऐसे मौके पर घात लगाए रहे जहां से बच निकलना असंभव था।

हम इस इतिहास में इतनी गहराई में नहीं जा सकते जो विषय से मेल नहीं खाता,परंतु यह याद दिला सकते हैं कि अनेक बार छोटी सेनाएं लेकर योद्धाओं ने बहुत बड़ी सेनाओं को परास्त किया है या उनके दांत खट्टे किए हैं या उन्हें तबाह कर दिया है। सिकंदर ने दारा तृतीय की विशाल सेना को अपनी छोटी सेना के बल पर जैसी शिकस्त दी थी वैसा ही हाल मोहम्मद और जह्ल के बीच हुए हुई मुठभेड़ का देखने में आता है।

परंतु मोहम्मद साहब को जीत इस कारण मिली कि उनके एक और जिब्रील और दूसरी ओर मिखाइल सफेद बानो में खड़े थे और इसराइल एक हजार फरिश्तों के साथ युद्ध कर रहे थे।
(अधूरा)