रीतियां, रूढ़ियां और विश्वास (4)
मनचलापन
हिंदू मूल्य-प्रणाली में देवता और ईश्वर भी नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं कर सकते। यदि करते हैं तो पूज्य होते हुए भी, उस आचरण के लिए निंदा के पात्र रहेंगे। उनका उपहास किया जाएगा। महापुरुषों या देवताओं का अमर्यादित आचरण समाज के लिए अनुकरणीय नहीं हो सकता।
सामाजिक आचरण का आदर्श क्या है यह विवाद का विषय हो सकता है। अलग-अलग कालों, समाजों में अनेक कारणों से, सामाजिक रीतियां और आचार बदल जाते हैं। इसे प्राचीन विचारकों ने युग-धर्म की संज्ञा दी। जिस युग में दी उसमें उनका भूगोल का ज्ञान बहुत कमजोर था। जहां बाहर की यात्राओं पर ही रोक लग जाए, बाहर का ज्ञान अज्ञान से मिलता जुलता ही होगा। यदि ज्ञान होता तो वे देश-काल-सापेक्ष धर्म की बात करते। अपने समय की सीमाओं में उनका यह विवेक भी कम सराहनीय नहीं है।
किसी काल में, समाज विशेष में जो भी नियम हैं सभी पर लागू होते हैं। केवल इस्लाम है जिसमें न तो अल्लाह न्याय और नियम पर टिका रहता है, न पैगंबर, न ही उस रीति नीति को अपनाने वाले समाज के लोग। उन्हीं वाक्यों का अपनी जरूरत के अनुसार अलग अलग पाठ करते हैं। इस पर किसी मुसलमान को कोई हैरानी नहीं होगी, क्योंकि इससे उसकी इस धारणा की पुष्टि ही होगी क इस्लाम जैसा दूसरा कोई धर्म नहीं है और मुसलमानों जैसा कोई इंसान नहीं है। समस्या दूसरों की है कि वे इस्लाम की खूबियों को समझें और तय करें कि इंसानियत को इस्लामियत से कैसे बचाया जा सकता है।
मोहम्मद अरब समाज की सामाजिक मर्यादाओं का निर्वाह करते थे, परंतु जहां उनको कोई लाभ दिखाई देता था, उनको अल्लाह के आदेश के बहाने तोड़ने में देर नहीं लगाते थे। हमें इस बात की पक्की जानकारी नहीं है कि इस्लाम से पहले अरब समाज में बहुविवाह का चलन था या नहीं, विधवा और विधुर पुनर्विवाह अवश्य र सकते थे। महिलाओं को आजादी थी, इसका उल्लेख हम पीछे कर आए हैं। चौथे सूरा की जिस आयत में मुसलमानों को 4 पत्नियां रखने का विधान है, वह उनके चौथे विवाह के बचाव में उतरा था।
उन्हें स्वयं इस मर्यादा का सम्मान करना चाहिए था, लेकिन संभवतः जेनब को देखने के बाद यह मर्यादा उन्होंने तोड़ दी, पहली लोक में प्रचारित हो चुकी थी इसलिए उसका निषेध नहीं हो सकता था। उन्होंने एक नया तरीका निकाला कि पैगंबरों के लिए अल्लाह ने पहले से ही खुली छूट दे रखी है कि जितनी शादियां चाहे कर सकते हैं :
“it seems a very great pity that the Prophet not only did not himself follow it, but even exceeded the liberty given to his followers, for at a time when he had nine wives, a revelation was produced to sanction this excess over the legal four. See Suratu’l-Ahzab (xxxiii) 49, 52”.(Canon Sell, 203)
बात यहीं खत्म नहीं हुई। प्राचीन अरब समाज से लेकर मुस्लिम समाज तक में महिलाओं को विधवा हो जाने के बाद दूसरा विवाह करने की छूट थी। उन्होंने अपनी पत्नियों से मरने के बाद किसी दूसरे से विवाह करने का अधिकार भी छीन लिया। “And you should never cause the Messenger of God hurt, in any way; nor ever marry his wives after him.” Sura 33.53
हमें अक्सर पढ़ने को मिलता है कि मुसलमान पैगंबर की बीवियो को मां के समान समझते हैं। पर उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है, क्योंकि इसका विधान स्वयं पैगंबर कर गए थे। जो कुरान में यकीन करते हैं उन्हें उनको माता मानना ही होगा।
मानवीय दृष्टि से देखने पर यह उन महिलाओं पर अत्याचार था, क्योंकि तत्कालीन आयुष्य को देखते हुए उन्होंने बाद के लगभग सभी विवाह बुढ़ापे में किए थे। इनमें से सभी महिलाएं उम्र में उनसे कम थींं। अकेली सौदा थी जिसके विषय में अलग अलग लेखक अलग अलग तरह की कहानियां गढ़ते हुए सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि वह बूढ़ी थीं पर वह भी मोहम्मद साहब से 10 साल छोटी थीं। विवाह के समय उनकी उम्र 50 साल थी। इसका मतलब है सौदा की उम्र 40 वर्ष थी। यह वही उम्र है जिसमें खदीजा से उनका विवाह हुआ था। विवाह की रस्म खदीजा के मरने के बाद शोक की अवधि पूरा होते ही आरंभ हो गई थी। पहले छह या सात साल की आयशा से सगाई और फिर सौदा से विवाह।[]
[] इसके विषय में भी 4-5 तरह की किस्से मिलते हैं। एक के अनुसार: According to the Raudatu’l-Ahbab he was now much dejected, when a friend said: ‘Why do you not marry again?’ He replied: ‘Who is there that I could take?’ ‘If thou wishest for a virgin there is ‘Ayisha, the daughter of thy friend Abu Bakr; and if thou wishest for a woman there is Sauda, who believes in thee.’
He solved the dilemma by saying, ‘Then ask for both.’ (Canon Sell)
दूसरे के अनुसार, यह प्रस्ताव रिश्ते की एक महिला ने रखा था: They waited till the mourning period of Khadeejah, was over and Khawlah bint Hakeem, the wife of `Uthmaan ibn Math’oon, went to him, and said: “O Prophet of Allah! I see you feel the loss of Khadeejah.”; “Yes,” he said. “She was both mother and housewife”. Khawlah suggested that he, should marry and she offered to find him a bride. Muhammad said, “Who could be that bride?” Khawlah suggested `Aa’ishah bint Abu Bakr, the daughter of the first man to believe in Muhammad’s Message, and also his best friend. But `Aa’ishah was very young so he engaged her and left her in her parents’ house till she matured. But Khawlah and the other Companions didn’t want a delayed marriage, and wanted someone to comfort him and assist him in taking care of his children, especially at that time when his days were burdened with heavy struggle and toil.
She mentioned Sawdah bint Zam’ah, the widow of as-Sakran ibn `Amr with him.
इस पाठ में उसे एक ओर तो बूढ़ी और कुरूप बताया गया है, “She was old and lacked beauty and wealth, moreover her father and brother were pagans so it was very difficult for her to survive and retain her faith in this environment.” और दूसरी ओर मुहम्मद की कामनाएं पूरी करने वाली।
एक अन्य कहानी में विवाह का प्रस्ताव मोहम्मद ने सौदा के पिता के पास भेजा था और उन्होंने खानदान को देखते रजामंदी जताते हुए सौदा की भी राय लेने का सुझाव दिया।
एक अन्य पाठ में प्रस्ताव मुहम्मद ने सौदा के सामने रखा था जिसके पहले से पांच छह बच्चे थे, उसने कहा मेरे लिए तो यह खुशी की बात होगी पर ये बच्चे ऊधम मचाएंगे जिससे आप को परेशानी होगी जिसके जवाब में मोहम्मद ने कहा था, मुसलमानों के बच्चे तहजीबवाले होते हैं। उनसे हमें कोई परेशानी नहीं होगी।
एक अन्य के अनुसार मोहम्मद से उनकी कोई संतान नहीं, पहले पति से केवल एक पुत्र था।
Hazrat Sawdah (Radhiyallahu-Anha) had no children from the Prophet (Sallallahu-Alayhi-Wasallam ) However, from her first husband (Hazrat Sakran ) she had a son named Hazrat Abdur-Rahmaan (Radhiyallahu-Anhu). He fell a martyr fighting in the battle of Jalula.UMMAHATUL MUMINEEN.
एक ही घटना को लेकर इतने तरह की कहानियों का आधार हदीस ही हो सकता है, जिससे दो बातों का पता चलता है। पहला यह कि इनका मोहम्मद के जीवन से सीधा संबंध नहीं है। उनकी और इस्लाम की और स्वयं अपनी जरूरतों के अनुसार लोगों ने कहानियां गढ़ कर हदीस में भर दीं। सबसे अधिक कहानियां आयशा की गढ़ी हुई हैं, और वे कितनी भरोसे की हैं इसका एक उदाहरण यह है:
It is recorded, on the authority of ‘Ayisha, that a brightness like the brightness of the morning came upon the Prophet. According to some commentators this brightness remained six months, and in some strange way Gabriel through this brightness made known the will of God.
परन्तु आयशा उस नूर या आभा मंडल की गवाह बन ही नहीं सकतीं, क्योंकि वह अभी पैदा ही नहीं हुई थीं। हदीस की कहानियों की काल्पनिकता पर, इससे अच्छी टिप्पणी नहीं हो सकती।
सौदा की आयु के विषय में केवल इतना ही कि आयशा की साथ 3 साल बाद निकाह होने से पहले उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखद। आयशा के आने के बाद, मोहम्मद उनकी उपेक्षा करने लगे, इससे गृह कलह पैदा हुआ और मोहम्मद ने उन्हें तलाक तक दे दिया। इस पर दो मत हैं- 1. दे दिया; 2.[] देने का इरादा जताया, जिसके बाद उन्होंने कहा अपने हिस्से की रात में भी मैं आयशा को दे देती हूं, परंतु मुझे बेसहारा न छोड़िए अपने आप पे मेरे पल
[]वकार अकबर चीमा (The Prophet’s conduct with his wife Sawdah: The issue of divorce) ने अनेकानेक क्यों का हवाला देते हुए, इस पर विचार किया है।
ऐसी टिप्पणियों का लक्ष्य केवल यह दिखाना होता है कि मोहम्मद साहब ने इतने सारे विवाह कामुकता के वशीभूत होकर नहीं किए थे, अपितु निराश्रितों को सहारा देने के लिए किया था। परंतु आयशा के प्रति आसक्ति के कारण सौदा को तलाक देने की नौबत आना, इनकी सच्चाई खोल कर रख देता है। जो कमी रह जाती है उसे जैनब का प्रकरण पूरा कर देता है।
आयु
सबसे दुखद पक्ष यह है कि मोहम्मद साहब की चौथी शादी के बाद के सारे विवाह 55 की उम्र के बाद हुए। सभी में महिलाओं की आयु काफी कम थी। एक मामला मिस्र का है। अरब पर कब्जा कर लेने के बाद उन्होंने फारस, बाइजेटाइन ( Byzantines)और मिस्र को संदेश भेजा कि वे इस्लाम कबूल कर लें। ़
दूसरों ने क्या किया इसे छोड़ दें, मिस्र की बात लें जिस के गवर्नर ने जो कदम उठाया वह निम्न प्रकार है: Then followed a letter to the Maquqas, the governor of Egypt, who returned a courteous reply and sent as a present two Coptic damsels, Mary and her sister Sherin,1 and a white mule for the Prophet’s use. Mary was the fairer of the two sisters and was kept by Muhammad for his own harem. Sherin was bestowed on the poet Hasan.
fn. The Raudatu’l-Ahbab, quoted in the Mudariju’n-Nabuwat {vol. ii, p. 699) says: ‘The gifts of the Maquqas were four damsels, one of them was Mary and another her sister Sherin’ Sell, p. 184
खास बात यह कि किसी दूसरी पत्नी से उन्हें कोई संतान न हुई, मेरी से 60 साल की उम्र में उन्हें एक पुत्र की भी प्राप्ति हुई जिसका नाम इब्राहिम रखा गया । []
[] Towards the end of the eighth year of the Hijra, Mary the Copt bore a son to the Prophet.
Tabari (series 1, vol. iii, p. 1561) says: ‘The Maquqas gave the Prophet four damsels, amongst whom was Mary, mother of Ibrahim.’ Sell, p. 184
हम यह दिखाने के प्रयत्न में अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए मोहम्मद ने पहली बार बहुविवाह का समर्थन किया, और सभी मुसलमानों के लिए 4 विवाह जायज ठहराया। परंतु सीमा पर टिके ना रखिए अपने को सभी सीमाओं से ऊपर रख कर सेक्स मेनियाक की तरह आचरण करते रहे। इसका लाभ उठा मुसलमानों में जो शक्तिशाली थे, कुरान की पाबंदियों की आज्ञा करते हुए मनमानी करते रहे। भारतीय इतिहास में इसका सबसे नंगा रूप मुगल काल में दिखाई देता है।
सल्तनत काल में किसी सुल्तान ने उस तरह के हरम नहीं बसाए जैसे मुगलों ने। सैकड़ों की संख्या में पत्नियों के अतिरिक्त रखैलों का मजमा और उनके ऊपर से तवायफों की ललक। इसके संदर्भ में याद दिला दें कि वैध पत्नियों के अतिरिक्त रखैलों की परंपरा मोहम्मद ने ही आरंभ की थी। मिस्र के गवर्नर द्वारा भेजी गई युवतियों के अतिरिक्त, पहले से उनकी दो रखैलें थीं अल जरिया और तुकाना।
परंतु मोहम्मद साहब के चरित्र के मामले में, मैं इसका अलग से मूल्यांकन जरूरी मानता हूं। यह उनका वह व्यवहार था जिसके लिए अंग्रेजी में cumpulsive behaviour का प्रयोग होता है, जिसके लिए व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाता। मोहम्मद के व्यक्तित्व का मूल्यांकन समय रहा तो हम करेंगे।
यह उनकी मनोव्याधि रही हो या हार्मोनों का उपग्रह रहा हो, इसके साथ न तो शैतानी आयतों के माध्यम से न्याय किया जा सकता है न ही रंगीले रसूल के रूप में पेश करके।
यह जो कुछ भी था, हम इसके समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना चाहते हैं। सल्तनत काल का कोई बादशाह चार की सीमाओं को पार कर चुका हो, इसकी जानकारी हमें नहीं है। सल्तनत काल में मुगल काल की तुलना में हिंदुओं पर कुछ अधिक अत्याचार किए गए, परंतु हिंदू समाज की मानसिकता पर उनका कोई गोचर प्रभाव नहीं पड़ा।
सल्तनत काल के सुल्तान मुसलमान थे, मुगल काल के शासक पैगंबर थे जिन पर कोई नियम लागू नहीं होता था। उन्हीं की विरासत को हिंदुस्तान ने अपनाया है, जिसमें शक्तिशाली पर कोई भी अंकुश लागू नहीं होता। समरथ को नहिं दोष गुसाईं, लिखने वाला मुगल काल में ही पैदा हो सकता था।
एक बात गौर करने की है। मोहम्मद की इतनी बीवियों के होते हुए भी, उनके द्वारा उनका अपमान किए जाने के बाद भी, मोहम्मद ने किसी को तलाक नहीं दिया। जिस एक को तलाक देने की कहानी कही जाती है, उसको भी तलाक नहीं दिया या देकर रफा दफा कर दिया, जबकि वह उनको नई पत्नी के आ जाने के बाद कम पसंद या नापसंद करने लगे थे। मुगल बादशाहों की बीवियों और रखैलों में भी कभी किसी को न तो तलाक दिया गया, न ही किसी ने विधवा होने के बाद इस्लाम में उपलब्ध विधवा विवाह के अधिकारों का प्रयोग किया। वे पैगंबर की विधवाओं की तरह मुसलमानों कीअघोषित माताएं बन चुकी थीं या बना दी गई थीं।
मोहम्मद के जीवन काल में, मदीना में उनके पहुंचने के बाद, युद्ध और बल-प्रयोग के एकमात्र हथियार को छोड़कर दूसरे कूटनीतिक हथियारों का प्रयोग बहुत कम देखता हूं।
यही भारतीय परंपरा में मुगलकालीन धरोहर के रूप में हिंदू और मुसलमान दोनों में छन कर आया है और इसी के कारण नियम और आचरण की मर्यादा की शक्ति संपन्न लोगों द्वारा अवहेलना हमारे सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार का अंग बन चुकी है।