Post – 2019-06-20

हिजरत (क)

इस्लाम में कुछ भी सही नहीं है और गलत तो कुछ हो ही नहीं सकता। स्वयं कुरान में अंतर्विरोध इतने और ऐसे हैं जो दूसरी किसी किताब में नहीं दिखाई देते। इनकी ओर दूसरों का ध्यान जाता है, और कुछ ने इसका मजाक भी उड़ाया, पर यकीन करने वालों का ध्यान इस पर नहीं जाता।

हिजरत के विषय में भी कई तरह की कहानियां मिलती हैं । जिन स्रोतों पर भरोसा किया जाता है वे भी ,भरोसे के नहीं, क्योंकि इनको गढ़ कर प्रस्तुत किया जाता है।

उदाहरण के लिए एक पाठ के अनुसार, जिसे विकी के अनुसार कैंब्रिज इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम में जगह दी गई है, उनके मदीना जाने का कारण बारह कबीलों के प्रतिनिधियों का एक साथ आकर मध्यस्थता के लिए आमंत्रित करना बताया गया है।
[[A delegation from Medina, consisting of the representatives of the twelve important clans of Medina, invited Muhammad as a neutral outsider to serve as the chief arbitrator for the entire community. There was fighting in Yathrib (Medina) mainly involving its Arab and Jewish inhabitants for around a hundred years before 620… (The Cambridge History of Islam (1977), p. 39 …]]

इस शिष्टमंडल ने न केवल यह वचन दिया कि वह और उनके दूसरे नगर निवासी मोहम्मद साहब के फैसले को तो स्वीकार करेंगे ही मदीना में उनकी इस तरह रक्षा करेंगे जैसे वह उनके ही कबीले के हों।
[[The delegation from Medina pledged themselves and their fellow-citizens to accept Muhammad into their community and physically protect him as one of themselves (Alford Welch, Muhammad, Encyclopedia of Islam). ]]

इसके बाद मुहम्मद ने अपने मतावलंबियों मैं से हर एक को मदीना जाने की हिदायत दी। जब वे मक्का छोड़ने लगे तो मक्का के लोग दहशत में आ गए। उन्होंने मुहम्मद साहब की जान तक लेने की योजना बनाई लेकिन मुहम्मद उन को चकमा देकर निकल भागे :
[[Muhammad instructed his followers to emigrate to Medina until virtually all of his followers had left Mecca. Being alarmed at the departure of Muslims, according to the tradition, the Meccans plotted to assassinate him. He fooled the Meccans who were watching him, and secretly slipped away from the town.]]
इसके बाद मक्का छोड़ चुके मुसलमानों की संपत्तियां जब्त कर ली गईं [[Following the emigration, the Meccans seized the properties of the Muslim emigrants in Mecca(Fazlur Rahman (1979), p. 21).
फजलुर रहमान मलिक पाकिस्तान के आधुनिकतावाद इस्लामी विद्वान हैं। आधुनिकतावादियों ने कुछ अधिक ही अनर्थ किया है। यह सच है कि मदीने के अरबों की आपसी कलह एक समस्या थी। यहूदियों का दबदबा, सभी दृष्टियों से उनका अरबों से अधिक उन्नत और संगठित होना, और अरबों से उनका टकराव गंभीर चिंता का विषय था। परंतु दूसरे विवरण गढ़े हुए हैं। इस्लामपरस्त कहां जाते या बसते हैं यह कुरैशियों की चिंता का विषय न था। वे केवल यह चाहते थे कि वे उनके देवी-देवताओं की निंदा न करें।

यहूदियों में भविष्य में एक नए मसीहा के आने का विश्वास था। लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण मदीना के अरबों को उनके धार्मिक विचारों और मान्यताओं के विषय में जानकारी थी। मदीना से तीर्थ यात्रा पर आए हुए अरबों में से खज़राज कबीले के यात्रियों को जब पता चला कि एक अरब अपने को अल्लाह का पैगंबर घोषित कर रहा है तो वे इस सौभाग्य पर गर्व से भर उठे कि वह मसीहा अरबों के बीच में ही पैदा हो चुका है। सूरा अहकाफ (46.9) को इसी का इल्हाम माना जाता है जिसके दो अनुवाद नीचे दिए गए हैं।
If (this Book) be from God, and ye believe it not, and a witness of the children of Israel, witness to its conformity ( with the law) and believe, while ye proudly disdain it. Ah! God guides not the people guilty of such a wrong. 46.9
Say, “I am not something original among the messengers, nor do I know what will be done with me or with you. I only follow that which is revealed to me, and I am not but a clear warner.”46.9
कुरान काव्यात्मक रचना है, और इसलिए व्यंजना और ध्वनि का लाभ उठाते हुए व्याख्याकार अपनी रुचि के अनुसार अर्थ निकालते रहते हैं। इस काव्यात्मक से ही वह भावाकुलता पैदा होती है जिसके कारण एक ही समस्या के उल्टे समाधान निकाले जा सकते हैं ।

जो भी हो, मदीना लौट कर उन्होंन इस बात का उत्साह से प्रचार किया और अगले साल अवश्य उनके प्रचार से प्रभावित हो कर 12 लोग उन्हें मदीना बुलाने के इरादे से आए। इनमें दस बानी/बानू खज़राज और दो बानी/बानू अबस कबीले के थे (जिनसे अब्बासी अपना नाता जोड़ते हैं।) न कि बारह कबीलों के एक एक प्रतिनिधि।

खास बात यह कि इन दोनों में बहुत पुरानी दुश्मनी थी, और इन्हीं के बीच कुछ पहले बाथ की जंग (Battle of Buath) हुई थी जिसमें दोनों ओर से बहुत से लोग मारे गए थे, पर विजय अबस कबीले की हुई थी इसलिए भारतीय उपमहाद्वीप में अब्बासी तो मिलेंगे, खजराज नहीं। अबस/अब्स तथा खज़राज दोनों कबीलों के सहायकों को अन्सर कहा जाता था, इसलिए मिलने को अंसारी भी मिल जाएंगे, यद्यपि उनकी सामाजिक हैसियत आज भी कुछ झंस है। यहां तक कि कुछ यह मान बैठते हैं कि यह कसाइयों का उपनाम है।

केर-बेर दोनों का इस्लाम कबूल करना, मुहम्मद के निर्देशों के अनुसार रहने की प्रतिज्ञा करना और उनके किसी आदेश का उल्लंघन न करने का आश्वासन देना एक नया मोड़ था। इसे आकबा की पहली प्रतिश्रुति कहते हैं। इनके माध्यम से मदीना में इस्लाम का व्यापक प्रचार हुआ। मदीना के मुसलमानों में, जो यहूदी मसीहा के आगमन के प्रचार से किंचित खिन्न थे मोहम्मद से मिलने के बाद इस विचार को बिना किसी तर्क वितर्क के स्वीकार कर बैठे थे कि मोहम्मद वही मसीहा है, और वही सभी समस्याओं का निदान और उपचार है, और वह यहूदियों में नहीं अरबों में पैदा हो चुका है।

इस बात को मक्का के लोग नहीं समझ पा रहे थे, क्योंकि उनके ऊपर किसी तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव नहीं था और वे हर मानी में अपने समान मनुष्य से इस बात का प्रमाण चाहते थे कि वह यदि उनसे अलग है तो का कोई प्रमाण प्रस्तुत करे। मुहम्मद साहब के बचपन से लेकर पहले इलहाम तक विचित्र घटनाएं होती रहीं, परन्तु कुरेशियों ने जब उनके सामने चमत्कार दिखाने की चुनौती दी वह उस अपेक्षा की पूर्ति न कर सके, जिनकी पूर्ति फिरऊन की चुनौती के बाद मूसा ने करके दिखाया था और जिसका उल्लेख कुरान में भी है।

कुरेशी बहुदेववादी तो थे, परंतु तार्किक भी थे। इसका कारण तलाशना होगा, क्योंकि यूनान हो या रोम या अरब अथवा इन सबके पुरखे भारतीय, सभी विश्वास के लिए भी तर्क और कारण की तलाश करते थे जिसका ही उन्मेष वैज्ञानिक जिज्ञासा और उसके व्यावहारिक परीक्षण में हुआ, जिन दोनों को मिलाकर विज्ञान की सैद्धांतिकी और अनुप्रयोग का विकास हुआ है।

इसके विपरीत एकेश्वरवाद मानव द्रोही, ज्ञान द्रोही, विज्ञानद्रोही, विचार द्रोही, कला द्रोही और जीवन द्रोही मदांधता के रूप में विस्तार करता रहा। आगे बढ़ने से पहले, मानवता के हित में, हमें एक और बहु, लोकतंत्र या अधिनायकवाद, बहुलता और निषेध के द्वंद पर पुनर्विचार तो करना ही होगा।