Post – 2019-05-19

नरेंद्र मोदी की शिव साधना

एग्जिट पोल के अनुमानों से ऐसा लगता है शिव ने नरेंद्र मोदी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। अंतिम परिणाम अधिक अनुकूल हो सकते हैं। संभव है, एबीपी के आकलन के अनुसार भी चले जाएं।

मेरे लिए परिणामों का उतना महत्व नहीं है, जितना प्रचार के दौरान आने वाली सांस्कृतिक गिरावट या मूल्यों की रक्षा का। चुनाव के परिणाम जो भी हों, प्रचार अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी के विरोधियों ने परास्त कर दिया। प्रचार में हारे हुए नरेंद्र मोदी प्रचार में जीते हुए विरोधियों को अपनी देशनिष्ठा, कार्यनिष्ठा और लोकनिष्ठा के बल पर उन्हें परास्त करने के विश्वास से भरे थे जिसकी पुष्टि ‘मोदी मोदी’ के नारों और अपनी जनसभाओं में अपार भीड़ से होते हुए देख कर आश्वस्त तो थे, पर परिणाम के प्रति उनके आत्मविश्वास में कमी आती गई थी। उनके कद के राजविद के आत्मविश्वास के स्तर में हो रहे इस क्षरण का मूक दर्शक मैं अकेला था या कुछ लोग और थे, इसका निर्णय जानकारी के अभाव में मैं नहीं कर सकता।

एक धूर्त व्यक्ति, दूसरे पक्ष को संभ्रमित करने के लिए जो हथकंडे अपनाता है, जिस तरह का प्रदर्शन करता है, वैसा मनोयोग से अपना काम करने वाले और अन्य किसी बात पर ध्यान न देने वाले ईमानदार व्यक्तियों के लिए संभव ही नहीं है। कोशिश करने के बाद भी संभव नहीं है।

जो कौशल चाटुकार के पास होता है, वह ईमानदार के पास नहीं होता। जिस व्यक्ति या समाज को किसी धूर्त व्यक्ति ने पहले कई बार ठगा हो, और जो उसके चरित्र को पहचान गया हो, सावधान रहना चाहता हो, उसे वह अपनी कला से उसकी सावधानी के बावजूद ठग लेता है और इसलिए दुबारा ठग सकता है, मानव स्वभाव की इस दुर्बलता के ज्ञान के कारण, मोदी अपने अभियान के क्रम में अपना आत्मविश्वास खोते जा रहे थे।

विरोधियों की भाषा के विषय में मुझे उसकी जघन्यता के बाद भी कोई शिकायत नहीं है, मरता क्या ना करता। मोदी की समझ पर भी मुझको संदेह नहीं है, मामूली प्रलोभन से भूखे और मरणासन्न व्यक्ति से कुछ भी कराया जा सकता है- बुभुक्षितः किं न करोति पापं क्षीणा नराः निष्करुणा भवन्ति – इसलिए नरेंद्र मोदी अपने लोकानुभव के कारण फर्जी प्रलोभनों के सम्मुख उनकी निरुपायता का अनुमान करके उनके द्वारा अपनेे कारनामों के आकलन के प्रति आशंकित अनुभव करने लगे थे।

जनता, अपने अभावों से ग्रस्त जनता, आशा की किरण देखते ही यह विश्वास पाल लेती है कि बदलाव के साथ ही उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। कुछ का होता है, अधिकांश का नहीं हो पाता। ऐसे लोग घबराहट में सोचते हैं कि यदि नया बदलाव हो तो संभव है उनकी सभी समस्याएं सुलझ जाएं। वे डांवाडोल होते हैं, और छोटे-छोटे प्रलोंभनों से पाला बदल सकते हैं। 1 दिन की मस्ती, 1 दिन की मुफत की मजदूरी भी उन्हें सौभाग्य प्रतीत होती है।

कांग्रेस ने गरीबी को सोच समझ कर बनाए रखने और उसका चुनावी लाभ उठाने का एक तंत्र विकसित कर रखा है जो उसे लाभ भी देता आया है। मैं नहीं जानता नरेंद्र मोदी के दिमाग में सचमुच ये ही ऊहापोह काम कर रहे थे या नहीं । सोचता यह अवश्य रहा कि उनकी भाषा में, विषयों और आश्वासनों के चुनाव में जो स्खलन आया था, उससे बच सके होते तो उनको जो लाभ मिला होता उसका वह अनुमान तक नहीं लगा सके।

काम करने वाला जब अपने काम की प्रशंसा स्वयं करने लगता है तो उससे उसे लाभ नहीं होता, हानि अवश्य होती है। मोदी को भी हुई।

अब लगता है, चार सौ से अधिक की भविष्यवाणी करने वाले गलत नहीं थे। उन्हें स्वयं मोदी ने गलत किया। उनके अनुभव और निर्णय क्षमता पर मुझे खासा विश्वास है। यदि चुनाव के पूर्वानुमान सही सिद्ध होते हैं तो भी वे सही से कुछ कम सही माने जा सकते हैं, क्योंकि मोदी के आरंभिक आत्मविश्वास में आने वाली गिरावट को या तो वह जानते हो सकते हैं या मैं लक्ष्य करने का दावा कर सकता हूं । मोदी अपने विरोधियों से जीत भी जाएं, जो सुनिश्चित लगता है, तो भी वह अपने आप से हारे और ओछी हरकतों से बचने के अपने संघर्ष के कारण परास्त नहीं हुए।

नरेंद्र मोदी के विषय में इतने दुष्प्रचार किए गए हैं कि दूसरा कोई लानतों के दबाव में ही दफन हो जाता । इसलिए यह मानने को कोई ऊंचे तेवर का व्यक्ति तैयार नहीं होगा कि वह पाखंडी नहीं हैं। शिव के प्रति उनकी श्रद्धा राजनीतिक हथकंडा नहीं है। यह उनकी गहन आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न है। इसलिए केदारनाथ का उनका दर्शन दिखावा नहीं था।

परंतु इसके समय को देखते हुए मैं यह कल्पना करता हूं कि उन्होंने शिव के समक्ष प्रार्थना में क्या कहा। कहा यह कि “अंतर्यामी! तुमसे क्या छिपा है? यदि मैंने सच्चे मन से देशहितऔर राजधर्म का पालन किया हो तो मेरे सम्मान की रक्षा करना ।”

और एकांत गुफा में साधना करते हुए उन्होंने अपना समय आत्मनिरीक्षण में बिताया कि अब तक मैंने जो कुछ किया उसमें कहां कोई चूक हुई है।

ये दोनों इस बात के प्रमाण हैं कि वह स्वयं भी भीतर से हिल गए थे।

नहीं जानता मेरा यह कल्पना महल कितना वस्तुपरक है। प्रयत्न इसी का किया है। नौटंकीबाज नेताओं और सिद्धांतहीन राजनीति के बीच मोदी वर्तमान भारत की जरूरत हैं।