मैं सोचने से पहले सोचता हूं कि ऐसी कौन सी आफत आ गई है कि अपने दिमाग को कष्ट दूं। इस नतीजे पर पहुंचता हूं कि आफत नहीं आई है और तान कर साे जाता हूं। आफत मेरे सोने के कारण आती है, पर जब आ जाती है तब सोचने का मौका हाथ से निकल चुका होता है और सामने नींद की झपकी नहीं, मौत की छाया दिखाई देती है।