हरिपाल त्यागी को जो जानता है उसके दिल पर नजर डालो, उसके अपनों की भीड़ मे वह मुस्कराता खड़ा मिलेगा और आप सोचेंगे इस आदमी को इस उम्र तक कायदे से मुस्कराना तो सीख लेना चाहिए था। क्या करें, खरे लोग ऐसे ही होते है, उन्हें किसी चीज का सलीका नही होता। वे ढाल कर सुडौल बनाने वाले सांचो को तोड़ कर अनगढ़ बने रहते हैं। लोग उन पर हंसते हैं और वे विस्मय मे मुंह चियार देते हैं, लोग हंस क्यों रहे है? हरिपाल मेरे समानधर्मा थे। बुढ़ापे में सुनाई कम पड़ता है, पर क्या सूचनाएं भी देर से मिलती हैं क्या? सादातपुर में मेरा कोई अपना नहीं बचा?
कुछ नहीं जिंदगी में है बाकी
होने-जाने की फिक्र भी तो नहीं।।
जो हमें छेड़ते थे छोड़ चले
उन अजीजों का जिक्र भी तो नही।