Post – 2019-04-16

#मुस्लिम_समाज और #नेतृत्व_का_संकट – 4

मैं दुनिया के विभिन्न धर्मों के प्रवर्तकों को अपने समाज का नेता मानता हूं और इसी दृष्टि से हमारी चर्चा में मोहम्मद साहब को अरब समाज को नेतृत्व देने वाली एक महान प्रतिभा के रूप में स्थान देते हुए उनका मूल्यांकन करना चाहता हूं।

मोहम्मद साहब उसी जाहिलिया की उपज थे, जैसे ही हमारे सभी उल्लेखनीय आधुनिक नेता अंग्रेजी दासता की उपज थे, जिसके विरुद्ध उन्होंने अपने अपने ढंग से संघर्ष किया। अरबों ने उस दौर को ही अपने इतिहास से निकाल दिया, जैसे कोई पराधीनता की लज्जा को ढकने के लिए अंग्रेजी शासनकाल को अपने इतिहास से निकाल बाहर करे।

हम चाह कर न अपनी पैतृकता बदल सकते हैं, न अपना इतिहास । किसी दौर में अपनी अधोगति पर लज्जित अनुभव करते हुए उसे भुलाने के प्रयत्न, या किसी खब्त के कारण अपने अतीत को नकारने के बाद भी वह होता है। हमारी इच्छा का हमारे इतिहास पर असर नहीं पड़ता।

भुलाने और दबाने के प्रयत्न के कारण वह हमारी मनोग्रंथि का रूप ले लेता है, जिसके बाद उसकी अभिव्यक्ति पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाता, और अक्सर हम उसके चरित्र को पहचान भी नहीं पाते, इसलिए परोक्ष होने के कारण वह अधिक उपद्रवकारी होता है।

दूसरे लोग हमें हमारे इतिहास के माध्यम से ही जानते हैं या हमारे विषय में अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए वे हमारे अतीत की टोह लेते हैं। हम अपनी आंखें मूंद सकते हैं पर दूसरों की आंखें बंद नहीं कर सकते।

दुनिया के उन देशों के लोग जिन्होंने इस्लाम कबूल किया, वे सच्चा मुसलमान सिद्ध होने या माने जाने के लिए अपने इतिहास को भुलाकर अरब के इतिहास को जो इल्हाम और कुरान से आरंभ होता है, अपना बनाना चाहते हैं। अरब को अपना देश बनाना चाहते। अरब संस्कृति को अपनी संस्कृति बनाना चाहते हैं। उसके दारिद्र्य और अभाव को अपनी दौलत बनाना चाहते हैं, और अपने जानते हुए, अपनीअसंख्य सच्चाइयों का दमन करते हुए, असंख्य मनोग्रंथियों के पिटारे बन जाते हैं। जानी हुई सच्चाइयों पर पर्दे पर पर्दा डालने की कोशिश के कारण मुस्लिम समाज ने स्वयं ने अपने को एक मनोग्रस्त समाज में ढालने का काम किया।

मजहब का इतिहास नहीं होता । इतिहास का अर्थ है परिवर्तन । मजहब विश्वास है, मान्यता पर टिका होता है, परिवर्तन का निषेध करता है और इसलिए जब भी हम किसी भी धर्म या विश्वास की बात करते हैं, हमें मूल ग्रंथों की ओर लौटना होता है कि उनमें वस्तुतः क्या कहा गया है।

इतिहास समाज का होता है, देश का होता है, और किसी धर्म का प्रवर्तन उस समाज के इतिहास के एक खास चरण पर, पूरे समाज या देश को किन्हीं विकृतियों से बचाते हुए, अधिक कल्याणकारी दिशा में ले जाने का प्रयत्न होता है।

यह देश या समाज के इतिहास में घटित होने वाली एक महत्वपूर्ण घटना है। उसके बाद उस समाज के चरित्र में आने वाला बदलाव, उसके प्रसार और विस्तार तथा इसके लिए अपनाए गए तरीकों का इतिहास होता है। परंतु मजहब का इतिहास नहीं होता, उसकी मान्यताएं होती हैं। इतिहास मनुष्य की, आगे बढ़ने की, महायात्रा का अभिलेख है। मजहब इस यात्रा को उलट देता है, आगे बढ़ने की जगह, प्रामाणिकता की तलाश में प्रस्थान बिंदु की ओर लौटने को बाध्य करता है।

मोहम्मद साहब स्वयं जाहिलिया की उपज हैं। अरब इतिहास को बदलने वाले एक नेता हैं। उनके नेतृत्व में अरबी समाज में जो बदलाव आया वह पहले की तुलना में क्या था, इसे पिछले इतिहास को जाने बिना तय नहीं किया जा सकता।

मैं यह बात निरी कल्पना के आधार पर कह रहा हूं, इसलिए यदि कोई इस पर हंसना चाहे तो उस हंसी में मैं भी साथ दूंगा, परंतु मुझे लगता है जाहिलिया विशेषण भी, मोहम्मद साहब का चुनाव नहीं था। यह ईसाईयों की उस भर्त्सना का अरबी अनुवाद था जिसका प्रयोग ईसाई प्रचारक अरबों की सामाजिक अवस्था के लिए किया करते।

मोहम्मद साहब असाधारण संवेदनशील और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। जिस तरह हिंदू समाज में, जिन भी कारणों से व्याप्त, सतीप्रथा, बालिकावध, बालविवाह, आदि विकृतियों की ईसाईयों द्वारा आलोचना के औचित्य को स्वीकार करते हुए, और इसके बावजूद ईसाइयत दबाव में आने से बचते हुए भारत के अनेक समाज सुधारकों ने इनके निवारण के प्रयत्न किए और साथ ही सरकार से सहयोग भी प्राप्त किया, उसी तरह मातृप्रधान समाज की उछृंखलता की आलोचना करते हुए, समाज के उद्धार के बहाने उसे ईसाई बनाने के प्रयत्न की चुनौती मोहम्मद साहब के सामने थी।

दुनिया के जितने भी महान नेताओं को, जिनमें नए धर्म की स्थापना करने वाले नेता भी आते हैं, मैं जानता हूं, उनमें से कोई उतना ओजस्वी, उतना क्रांतिकारी, उतना दृढ़ और आत्मविश्वास से भरा हुआ, अपनी योजना को कार्य रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखने वाला. दूसरा कोई नेता दिखाई नहीं देता।

उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। और यह कारनामा केवल एक क्षेत्र में नहीं किया, तीन क्षेत्रों में किए, जब कि दूसरों के लिए किसी एक क्षेत्र में ऐसा करना संभव नहीं हुआ। मेरी बात पर विश्वास करने के लिए स्वयं अपने आप से प्रश्न करें:
1. विश्व इतिहास में क्या कोई ऐसा नेता है जिसने अकेले दम पर पूरी समाज व्यवस्था को बदल दिया हो? याज्ञवल्क्य के नेतृत्व उत्तर भारत के समस्त गणराज्य के सहयोग से ब्राह्मणवादी वर्चस्व को समाप्त करने के वेदांत आंदोलन पर और उससे प्रेरित मध्यकाल के संत आंदोलन को याद करें और देखें उनकी सफलता और विफलता, तभी इस असंभव को संभव करने की क्षमता का सही अनुमान हो पाएगा।

2. ईसाइयत के दबाव में हमारे अपने नेताओं की आत्मरक्षावादी युक्तियों और प्रयोगों पर ध्यान दें ईसाइयत के बढ़ते हुए सैलाब को रोकने के लिए उनके मजहब और किताब नए जमाने की चीज सिद्ध करते हुए प्रतिरोध में एक नए धर्म का सूत्रपात जो इससे पहले कहीं दिखाई नहीं देता।

3. अपने मत के प्रचार के लिए एक ऐसी युक्ति का विकास जो दावानल की तरह इतनी तेजी से फैल जाए कि उसका प्रतिरोध करने वाले स्वयं आग बन जाएं। ऐसा भी पहले कभी नहीं हुआ था।

इसके बाद फिर भी यह प्रश्न चा रह जाता है कि क्या अरबी समाज को सही नेतृत्व प्राप्त हुआ? मुहम्मद साहब अपने समाज की चेतना को उसके भौतिक नैतिक और बौद्धिक उत्थान को संभव बना पाए?

इसकी छानबीन हमें कल करनी होगी।