#मुस्लिम_समाज और #नेतृत्व_का_संकट -3
इस्लाम से पहले के अरबी समाज को गर्हित इसलिए दिखाया जाता है की मोहम्मद साहब की और उनके द्वारा संचालित मजहब की क्रांतिकारी बताया जा सके।
इस ज्ञान-व्यवस्था में एक ओर तो इस्लाम से पहले के अरब जगत का विस्तार करते हुए पूरी दुनिया को उसी जाहिलिया का हिस्सा माना जाता है।
फिर इस्लाम से पहले के पूरे अतीत को जहालत में डूबा हुआ मान कर अरब के प्राचीन इतिहास से अपने को अलग कर लिया जाता है
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दूसरी ओर सच्चे ज्ञान का आरंभ पैगंबर को हुए इलहाम से माना जाता है, और वह ज्ञान कुरान शरीफ में दर्ज है इसलिए कुरान से वंचित समाज भी जिनमें वे विकृतियां नहीं पाई जातीं, जो पहले के अरबी समाज में प्रचलित थीं, वे भी जहालत में पड़े हुए या शैतान के असर में माने जाते हैं।
मातृसत्ताक अरबी समाज ईसिस और मरियम को भी देवी के रूप में पूजता था। इन दोनों की पूजा के दो कारण थे।
पश्चिमी जगत में प्राचीन मातृसत्ताक अथवा स्वेच्छाधारी समाज व्यवस्था थी, ईसिस उसका अवशेष है जो किसी रहस्यमय सूत्र से भारत से लेकर इटली तक फैला था। यह एक अलग प्रसंग है जिसके विस्तार में यहां जाने की गुंजाइश नहीं, परन्तु ईसा के जन्म से 900 साल पहले वेटिकन से मिली लिंग की प्रतिमा उनकी, कलाकृतियों पर मुक्त आचार व्यवहार के अंकन से इसकी पुष्टि होती हैः
The lids of large numbers of sarcophagi are adorned with sculpted couples, smiling, in the prime of life (even if the remains were of persons advanced in age), reclining next to each other or with arms around each other. The bond was obviously a close one by social preference.
मरियम की पूजा ईसाइयत के बढ़ रहे प्रभाव का और ईसाई धर्मान्तरण की गतिविधियों का प्रमाण माना जा सकता है।
यह इसाइयत की धर्मांधता का वह दौर था जिसे यूरोप के इतिहास में अंधकार युग के नाम से जाना जाता है। ईसाईयों के गहरे संपर्क में रहते हुए, उनके वैचारिक दबाव में मोहम्मद साहब को डिफेंस मेकैनिज्म के रूप में तीन काम एक साथ करने थे।
पहला, आदिम पाप की चेतना से ग्रस्त, स्त्रियों और मातृसत्ताक समाजों के प्रति ईसाई धर्मांधों की घृणा के प्रभाव से न बच पाने के कारण प्राचीन मातृसत्ताक व्यवस्था का उन्मूलन।
दूसरा था एक नए मजहब का प्रतिपादन करते हुए यीशु के अनुयायियों के सामने चुनौती पेश करते हुए यह दावा करना कि नया धर्म, ईश्वर का सबसे नया संदेश हमें प्राप्त है। तुम्हारी किताबें पुरानी पड़ गई है। यह एक बहुत बड़ा और साहसिक कदम था।
तीसरा था अपने विचारों को आप्तता देने के लिए यहूदी बाइबिल या ओल्ड टेस्टामेंट की सृष्टि से संबंधित पुराण कथाओं और विश्वासों को बहुत मामूली फेर बदल से यथा तथ्य अपना लेना।
यह संभव है कि सृष्टि की कहानियां कई रूप में पश्चिमी एशिया मे जनविश्वास का हिस्सा बन चुकी रही हों। बाइबिल में जो सांप है वह कुरान
में शैतान बन जाता है। सेव का स्थान गंदुम ले लेता है।
वास्तव में बाइबिल की सृष्टिकथा सृष्टिकथा न हो कर कृषि क्रांति की कथा है। इसका स्रोत भी भारतीय पुराण कथाएं हैं जिनमें देवों के समाज ने स्वयं कृषि का आविष्कार किया था और कृषिकर्म को टैबू और आदिम आहारसंग्रह को जीविका के लिए पर्याप्त मानने वाले असुरों-राक्षसों द्वारा प्रताड़ित होकर स्वयं देवों को इधर उधर भागना पड़ा था और अंततः वे उन पर भारी पड़े थे।
सामी सृष्टकथा में सब कुछ उलट गया। एकेश्वरवादी आग्रह से गॉड्स को बदल कर गॉड कर दिया गया। यह उतनी बडी बात न थी जितनी साहसी, उद्यमी, चिंतनशील देवों (सामी आदम) को दुष्ट शैतान या सांप (अहि) के सिखाने में आया मान कर चिंतन, सूझ और अन्वेषण की वैज्ञानिक प्रवृत्ति को शैतानी दिमाग की उपज मान कर ज्ञान, विज्ञान, वाङ्मय सबको शैतान की कारस्तानी मानते और इस विश्वास को दूसरों पर लादते हुए विद्वानाेे. पुस्तकालयों, शिक्षासंस्थाओं के साथ उनका पागलों जैसा व्यवहार।
हमारे सामने बड़ा सवाल यह है कि यदि मातृसत्ताक व्यवस्था जाहिलिया थी तो क्या अरब में जो सामाजिक क्रांति इस्लाम के साथ हुई वह जाहिलिया का ही दूसरा रूप नहीं थी। ऐसा सोचते समय हमारे मन में जो आशंकाएं पैदा होती हैं वे निम्न प्रकार हैं :
जो बुराइयां – चरित्र की जो शिथिलता,बहुपुरुषगामिता स्त्रियों में थी, उसे ही पुरुषों ने जैसे का तैसा अपना लिया।
मातृ देवियों को निरीह पशुओं की बलि चढ़ाई जाती थी। यह रक्तपात मोहम्मद साहब को बीभत्स लगा था, परंतु बकरीद के त्योहार के अवसर पर वैसी ही पशु बलि बहुत बड़े पैमाने पर आज तक की जाती है।
स्त्रियों को पहले जिस तरह की आजादी थी उसे पूरी तरह पलट कर उन्हें हिजाब में बंद पुरुषों की इच्छा पूर्ति के लिए हर दृष्टि से लाचार भेड़ बकरियों में बदल दिया गया। आधी आबादी को इंसानियत के अधिकार वंचित कर दिया गया।
पहले अरब आपस में लड़ते झगड़ते, लूटपाट करते मौज मस्ती करते रहते थे। अब लूटपाट और दूसरों की स्त्रियों व बच्चियों को रखैल बनाने की धार्मिक छूट मिलने के साथ माननीय दुर्बलता के लिए दोनों दरवाजे – दूसरे समुदायो के माल की लूट और व्यभिचार जिनके कारण मनुष्य अपनी जान तक गंवाने को तैयार रहता है- धार्मिक समर्थन पा गए।
इस्लाम का इतनी तेजी से विस्तार का सबसे बड़ा कारण यही है। बल प्रयोग से धर्मांतरण का कारण भी यही है क्योंकि उसके पास विचार जैसी कोई चीज थी ही नहीं और विश्वास तो केवल लादा जा सकता है।