Post – 2019-04-01

आज की शाम शायरी के नाम
जब आलेख पूरा होता नजर नहीं आ्रता तो हाजिरी दर्ज करने को शायरी का दौर । लेखक अपने पाठकों के सामने कितना अकिंचन होता है इसका प्रमाण हैं ये तुकबंदियां।

सोचा था भुलाकर तुम्हें जिन्दा न रहूंगा.
जिन्दा हूं मगर याद तुम्हारी नहीं आती।

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हर्फ मेरे हैं पर खुदा जाने
कौन लिखता है इस इबारत को।
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दिल वहीं था जहां होना था उसे
अपना बन कर ये दिले-दर्द कहां से आया
कोई बतलाए तो, समझाए तो, मुझको ऐे दोस्त
घर दिलरुबा का डाक्टर ये कहां से आया।।
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मेरे हाल पर हंस रहा था जमाना
मगर सर उठाया तो घबरा गए सब।
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कहां की जवानी कहां का बुढ़ापा
खयालों में तो बचपना आजतक है।
वह वादा जो पूरा कभी हो न पाया
वह अफसोस बन कर बचा आजतक है।
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सुनो मुझको खुशी के रास्ते मालूम थे फिर भी
‘गलाजत है सियासत’, जानकारी में इजाफा है।
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कई कोण हैं देखने, सोचने के
जो मैं कह रहा हूं वही सच नहीं है।
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मेरा दर्द वह भी नहीं जानता है
जो कहता, मुझे वाकई जानता है।
तड़प शायरी दीखती है जहीनो
गुजरती है जिस पर वही जानता है।