#बहकी_बहकी_बातें
आत्मराग (2)
ज्ञान की महिमा से सभी परिचित है, अज्ञान की महिमा को मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं जानता। पहली बार बताने जा रहा हूं इसलिए इसके बाद इसके जानकारों की संख्या कुछ बढ़ जाएगी।
ज्ञानी ज्ञान के बल पर बहुत कुछ कर और बना सकता है अज्ञानी को कुछ करने की जरूरत ही नहीं होती। जो कुछ करना है, जानकर लोग उसके साथ करते हैं। उसको बस आराम ही आराम है, कटने, छंटने, कुटने-पिसने के बाद भी परम शांति।
अज्ञानी को किसी का डर नहीं लगता, ज्ञानी हर चीज से डरता है, अपने बनाए हुए ईश्वर और उसके बनाए हुए पिस्सू से ले कर डायनोसर तक से – जो है उससे और जो था उससे भी।
डर ज्ञान के साथ पैदा हुआ, और डर से पैदा हुई कायरता।
ज्ञानी जिससे डरता है उसे मिटाने का तरीका निकाल लेता है और, क्योंकि, वह हर चीज से डरता है, इसलिए ज्ञानी लोग एक न एक दिन हर चीज को मिटा देंगे । अगली प्रलय प्रकृति के प्रकोप के कारण नहीं होगी, मनुष्य के ज्ञान के अनियंत्रित विस्फोट के कारण होगी जिसके सामने प्रकृति स्वयं लाचार होगी।
यह ऐसी प्रलय होगी जिसमें जीवधारी नष्ट होंगे और पंचभूत दूषित, फिर भी वे बचे रहेंगे। होमोफेबर (अतिज्ञानी मनुष्य)का स्थान रोबोफेबर ले लेगा।
रोबोफेबर पर प्रदूषण से लेकर अन्न, पानी, हवा, किसी के अभाव का कोई असर नहीं होगा, जिनके कारण ही अतिज्ञानी मनुष्य का विनाश होना तय है।
सारांश यह कि ज्ञान एक अवस्था में मूर्खता में बदल जाता जाता है और अज्ञान सबसे बड़ी समझदारी सिद्ध होता है।
आप जानते हैं ज्ञान और समझ में क्या अंतर है? ज्ञान में असंगति, विसंगति, अंतर्विरोध सभी हो सकते हैं, समझ में इनके लिए जगह नहीं। ज्ञान बोझ है, इसे ढोना पड़ता है, समझ वाहन, और वाहन भी ऐसा जिसके लिए रख घोड़े की जरूरत नहीं होती। ज्ञानी यह कह सकता है और कहता रहा है कि उस जमाने में जब घोड़े की पीठ पर सवारी नहीं की जाती थी उसे रथ में जोता जाता जाता था, रथ लिए उन पर अपने गोरू-बछरू लादे हिन्दूकुश को पार कर सकते थे, समझदार की समझ में यह नहीं आएगा। ज्ञानी को अपनी परेशानी समझाएगा तो कहेगा, बात ठीक है, परंतु किताबों में लिखा है और इतनी सारी किताबों में लिखा है तो मानना तो पड़ता ही है।
ज्ञान का विस्तार करना जितना जरूरी है, अज्ञान को बचा कर रखना उससे कम जरूरी नहीं।
जब मैं कहता हूं कि ज्ञान से डर पैदा होता है और डर से कायरता और साथ कहता हूं मैं किसी से डरता नहीं – उपेक्षा, अपमान, और बहिष्कार से भी नहीं डरता तो अपने बारे में यह कहने की जरूरत नहीं रह जाती कि मेरी पूंजी क्या है और मैं अज्ञान के भी बचाए रखने के लिए इतना चिंतित क्यों रहता हूं।
मामला इतना इकहरा भी नहीं है। ज्ञानी लोग जिसे नहीं जानना चाहते हैं उसे जानने की कोशिश मैं करता हूं, जान कितना पाता हूं यह नहीं कह सकता। और जब मैं नहीं कह सकता तो ज्ञानी जन कैसे कह सकते हैं, जिनकी उस विषय में रूचि ही नहीं। इससे मुझे अपने बारे में जो भी चाहूं सोचने और मानने की छूट मिल जाती है, जैसे यह कि इतिहास, भाषा, सभ्यता विमर्श पर जिसने मुझे ध्यान से नहीं पढ़ा वह इनमें से किसी को समझ ही नहीं सकता और जो इनको नहीं समझ सकता वह अपने आप को भी नहीं समझ सकता।
जो अपने आप तक को नहीं समझता वह अपने समाज को कैसे समझ पाएगा? उसे आप क्या कहेंगे यह बताना मेरा काम नहीं क्योंकि आप को आप जहां से दुनिया को देखते हैं वहां से क्या दिखाई देता है, क्या ओझल रह जाता है और जो कुछ दिखाई देता है वह कैसा दिखाई देता है यह आप ही जानते हैं और उसका जितना बताना और जितना छिपाना चाहते हैं, उसमें मेरा कोई दखल नहीं।
परन्तु यदि आप उन्हें मूर्ख कहना चाहें तो मुझे आपत्ति होगी, क्योंकि उनके भेजे में अलमारियां भरी हैं, अलमारियों में किताबें भरी हैं, किताबों में ज्ञान भरा है और उस ज्ञान में ऊपर उठने और दूसरों से अलग दिखने की लालसा भरी है। यदि कुछ नहीं भरा है तो वह है सिर्फ समझ।
हमारा बुद्धिजीवी इसी विडंबना के कारण समुद्र के भीतर समुद्रफेन बन कर प्रसन्न है। उसे यह पता नहीं उसने क्या खोकर क्या पाया है।
ज्ञानी कम से कम लागत से अधिक से अधिक पाने की कोशिश करता और सफल होने के लिए जितना गिरना जरूरी है उतना गिरने को तैयार रहता है और झट खड़ा हो कर चारों ओर आंख दौड़ाता है कि उसको गिरते हुए किसी ने देख तो नहीं लिया। किसी पर शक हुआ तो उसका सफाया कर देता है, तलवार से नहीं उपहास से जिससे देखने वाला कुछ कहे भी तो लोगों को हंसी आए।
वह जिस समाज को समझ नहीं सकता उसे भी सुधारने का बोझ उसी के ऊपर है। सुधारने का सबसे अच्छा तरीका उपहास करना है, सिखाने का सबसे सही तरीका गालियां देना और अपमानित करना है।
उसका लिखा इतिहास पढ़िए। उसमें इतिहास नहीं मिलेगा, धिक्कार और फटकार मिलेगी। समाजशास्त्र पढ़िए, उसमें हमारा समाज नहुीं मिलेगा; हमें पराधीन बनाने वालों ने कम से कम बलप्रयोग से हमारे समाज को अधिक से अधिक तोड़-फोड़ कर आपस में टकराने के लिए जिस तरह की बोरियों में कसा था वे बोरिया मिलेंगी, उन पर जो ठप्पा लगाया था वह ठप्पा मिलेगा।
समाज बेचारा क्या कर सकता है? समुद्र झाग का क्या बिगाड़ सकता है? अधिक से अधिक इंकार में सर हिला सकता था। उसने वही किया। मनोविच्छिन्न समाज, उसका रीयल सेल्फ और फाल्स सेल्फ कैसे पैदा होता है जिसमें एक दूसरे का निषेध करता है, इसकी प्रयोगशाला भी भारत को ही होना था!
समुद्रफेन को आकाश की ओर उछालने से अधिक जरूरी है समुद्र की महिमा और मर्यादा को बचाए रखना। (क्या आप ने सुना ज्ञानी मनुष्यों की करतूत के कारण मूंगे की कितनी शृंखलाएं और कितने तरह के जीव, जन्तु और मछलियां किस दशा को पहुंच गई हैं?)