Post – 2019-03-28

बहकी बहकी बातें

इस देश में लगभग सभी ऐसे दलों को कभी न कभी सत्ता से वंचित रहना पड़ा है परंतु वंचित होने पर दूसरे किसी दल में उस तरह की विक्षिप्तता नहीं दिखाई दी जिस तरह की कांग्रेस ने बिना किसी अपवाद के बार-बार दिखाई।
यह विक्षिप्तता पूरी पार्टी की नहीं, केवल एक परिवार की रही है और आज भी है। इस परिवार ने सत्ता में बने रहने के लिए, या सत्ता से वंचित होते ही बेसब्र होकर इसे हथियाने के लिए जितने जघन्य तरीके अपनाए वैसे तरीके दूसरे किसी दल की कल्पना में भी नहीं आ सकते थे।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मत के अंतर से भी लिए गए निर्णयों का आदर करते हुए उसे सर माथे लिया और और जीतने वाले को वैधानिक सीमा में रह कर पूरे समय निर्बाध काम करने दिया जाता है। कांग्रेस के अन्य नेताओं सहित सभी अन्य दलों ने इसका पालन किया है। केवल यही वंश है जो निरंतर उपद्रव करता है और उसे काम नहीं करने देता है।
इसका मूल कारण यह है कि इसका मिजाज लोकतान्त्रिक नहीं शाही थी और है। उसका यह विश्वास रहा है की आजादी तो हमारे खानदान ने हासिल की फिर देश का शासन दूसरे किसी के हाथ में कैसे जा सकता है? यह बोध इसमें इतना प्रबल कैसे हो गया, इसकी जांच कभी की नहीं गई।
राजाओं और नवाबों विरासत के मुकदमे जीतने वाले और अपनी व्यक्तिगत जीवन मे भी नवाबी मिजाज के मोतीलाल का अपने पूरे परिवार को स्वतंत्रता आंदोलन में झोंक देने का निर्णय, किसी पब्लिक लिमिटेड कंपनी के अधिक से अधिक शेयर अपने कब्जे में रखने जैसी व्यावसायिक सूझ से मेल खाता लगता है।
इसे कुछ खोल कर कहें तो, जब दूसरे लोग देश को औपनिवेशिक दासता से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे थे, नेहरू अपनी सल्तनत कायम करने की लड़ाई लड़ रहे थे।
अपने प्रवेश के बाद कांग्रेस के भीतर नेहरू का दूसरे नेताओं के साथ व्यवहार, पत्राचार, संवाद, उनकी आत्मकथा में अपनी भावी भूमिका की तैयारी, चाणक्य छद्म नाम से मॉडर्न रिव्यू में अपने बारे में लिखा उनका निबंध, अपने को प्यार करने वालों पर भी मौके वे मौके झुंझला कर कभी धक्का दे देना, थप्पड़ मार देना, डंडा ले कर पिल पड़ना, सभी से उनके मिजाज और इरादे का आभास मिलेगा।
राम मनोहर लोहिया पहले राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने इस रहस्य को सीमित रूप में समझा; मोदी पहले राजनेता हैं जिन्होंने वंशवाद का नाम दिया और यह समझा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए वंशवाद का खात्मा जरूरी है और उसे साकार करने की दिशा में प्रयत्नशील रहे।
वंशवाद के विषय में यह भ्रम है कि यदि किसी राजनेता की संतान राजनीति में हो उसे वंशवाद कहा जाएगा । वास्तव में यह वंशवादियों के मीरासियों द्वारा उनके बचाव में तैयार की गई दलील है। वंशवाद तब आता है जब किसी नेता की अपनी पार्टी की ऊपर नियंत्रण इतना मजबूत हो जाता है कि वह सत्ता को अपनी खानदानी विरासत बना लेता है और अपने दल में योग्य व्यक्तियों के होते हुए, अपने परिवार के अयोग्य व्यक्ति को भी उत्तराधिकारी बनाने में सफल होता है और दल के दूसरे सदस्य इसे मानने को बाध्य होते हैं और यदि विरोध प्रकट किया तो बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। कांग्रेस के बाद इसके उदाहरण उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिले।
विपक्षी दलों में अखिल भारतीय प्रसार की और अनुभवी तथा योग्य नेताओं की दृष्टि से सबसे भरोसे की पार्टी कांग्रेस ही है। एक सशक्त विपक्ष की उपस्थिति लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। परन्तु मोदी के द्वारा इसका चरित्र उजागर किए जाने के बाद भी वंशवादी दुराग्रह से मुक्ति नहीं पाई गई। नेतृत्व वंश के बाहर नहीं जाने दिया गया।
लोप के कगार की ओर खिसकते जाने की चिंता से कातर सभी दलों ने एक बार महागठबंधन बना कर मोदी को हराने की कसमें खाई थीं। इसके बाद भी इस वंशवादी हठ के कारण कांग्रेसियों सहित दूसरे सभी, यहां तक कि परिवार के भीतर भी यह समझ पैदा हो जाने के बाद कि बंदा नाकारा है उसे ही आगे रखने का प्रयत्न जारी है। परिवार ने जाहिर कर दिया कि हमारी नजर विपक्ष की सफलता से अधिक अपनी सल्तनत पर है। भीतर की सचाई बाहर आ जाने के बाद गठबंधन भी बिखर गया और सुल्तानी का सपना देखने वाले को कोई अपने साथ रखने को तैयार नहीं।
यदि मोदी ने वंशवाद समाप्त करने का व्रत लिया था तो यथार्थतः वह पूरा हो गया। यदि वंश को बचाने के लिए कांग्रेस के खात्मे की नौबत आए तो इसके लिए कांग्रेस का नेतृत्व स्वयं जिम्मेदार है।