Post – 2019-03-14

नेति नेति अर्थात् शब्दों के जादूगर

जो है वह नहीं है; जो नहीं है वह है। परंतु यह भी नहीं कह सकते कि जो है वह बिल्कुल नहीं है, जैस यह नहीं कह सकते कि जो नहीं है, केवल वही है। मनुष्य परिभाषाएं बदलकर बुद्धि का बुद्धि के विरुद्ध प्रयोग करके ऐसे असंभव काम कर सकता है कि नस्लें मिट जाएं, पर तलाशने पर भी खून का छींटा तक न मिले। वह परिभाषा बदल कर जो सज्जन है उसे वह दुष्ट सिद्ध कर सकता है; जो दुष्ट है उसे लोकोद्धारक सिद्ध कर सकता है। विज्ञान के नाम पर अज्ञान का प्रसार कर सकता है, अज्ञान को मनुष्यता की सर्वोपरि उपलब्धि सिद्ध कर सकता है।

ज्ञान के अभाव में विज्ञान असंभव था। ज्ञान और विज्ञान के अभाव में विश्वास पैदा नहीं हो सकता था। हमारी ज्ञान संपदा दूसरों के ज्ञान और अनुभव पर विश्वास का दूसरा नाम है। इसके अभाव में हम जानवर में बदल जाते, या जानवरों से भी पीछे चले जाते । विश्वास के अभाव में अंधविश्वास संभव ही नहीं था। सोचने पर विचित्र लगता है कि विज्ञान और अंधविश्वास कर-कंगन न्याय से, या एक ही चुंबक में विरोधी ध्रुवों के रूप में परस्पर जुड़े हुए हैं।

जादूगर उसे कहते हैं जो, जहां कोई चीज थी वहां से उसे गायब कर देता है, और जहां उसके होने की संभावना ही नहीं होती वहां से पैदा कर देता है। अपने बुद्धिबल से दूसरों को कुछ भी समझा लेने की अपनी क्षमता पर भरोसा करने वालों से बड़ा जादूगर कोई पैदा नहीं हुआ। जादूगर दूसरों को भ्रम में रखता है, परंतु ऐसे बुद्धिजीवी का जादू केवल जादूगरों की जमात पर असर डालता है, स्वयं उस पर असर डालता है, आगे उसका असर बेकार हो जाता है।

आपने वे नारे पढ़े हैं जिनमें इस बात का प्रचार किया जा रहा था कि ‘युद्ध हरगिज़ नहीं।’ यह युद्ध का विरोध नहीं है। वह जिसने लगातार युद्ध से बचने का, शांति और सद्भाव से रहने का प्रयत्न किया और उसकी भारी कीमत चुकाई है, उसे युद्धोन्मादी, और जिसने उसके इस प्रयत्न को लगातार विफल किया है उसे शांतिप्रेमी सिद्ध करने का अभियान है और है भी उन लोगों द्वारा जिन्हें सबसे प्रबुद्ध और सदाशयी माना जा सकता है। जो होना चाहते है उससे ठीक उल्टा आचरण और उन्हें खुद इसका पता नहीं। इसे कहते हैं दिमाग की सफाई। जेएनयू में यही काम किया जाता रहा। साफ सुथरे दिमाग के लोग, जो भर दिया गया उसका जादू। जादू सर चढ़कर कैसे बोलता है यह मुहावरा नहीं है, सचमुच बोलता है।

वे समझाना किसे चाहते हैं? स्वयं अपने को और अपने जैसों को जो उस जबान में ही ऊंचे बोल बोलना पसन्द करते हैं जिसे आम लोग नहीं जानते। हमने उसका अनुवाद कर दिया पर वे ऐसा तुच्छ काम नहीं कर सकते। अपना माल बेचने वाले व्यापारी देसी भाषाओं में अपने माल का विज्ञापन करते हैं, अपने विचार को जनता तक पहुंचाने का नाटक करने वाले कहते हैं ‘ SAY NO TO WAR. समझदारी पर क्या शक किया जा सकता है?
अंग्रेजी जानने वाला हमारा समझदार और सदाशयी हमारे अपने देश के लोगों से नहीं, अंग्रेजी जानने वाले दुनिया के लोगों से कह रहा है, कि भारत युद्धोन्माद से ग्रस्त हो गया है। पाकिस्तान हमेशा से बातचीत से मसले हल करना चाहता रहा है और आज भी लगातार शान्ति से ही आपसी समस्याओं को सुलझाना चाहता है। यहां तक कि कश्मीर के वे नेता भी जिन्हें अलगाववादी कहा जाता है बातचीत से समस्या के हल की बात करते है। यदि कश्मीर मे अशांति है तो इसलिए कि वहां के लोग आजादी चाहते हैं। भारत सेना के बल पर उन्हें दबा कर रखना चाहता है। जब तक ऐसी स्थिति रहेगी तब तक वहां अशांति रहेगी। पाकिस्तान युद्ध नहीं चाहता, वह केवल कश्मीरी जनता की आजादी की जंग में मदद कर रहा है। जिन्हें आप आतंकवादी कहते हैं वे कश्मीर की आजादी के लिए लड़ने वाले वालंटियर हैं। वे भारत में प्रवेश कर सकें इसके लिए उन्हें कवर देने के लिए पाकिस्तान युद्ध विराम सीमा का उल्लंघन करता और पार से तोप और मिसाइल दागता रहेगा। भले इससे सीमा के निकट रहने वाले नागरिक मारे जाएं, यह असली युद्ध नहीं है। नकली युद्ध है। तब के पाकिस्तान और आज के बांग्ला देश के मुक्ति संग्राम में यदि भारत मुक्तिवाहिनी की सहायता के लिए अपनी सेना भेज सकता था तो कश्मीर की आजादी के लिए लड़ने वालों की मदद के लिए पाकिस्तान क्यों नहीं? चाहे नारा चार शब्दों का ही क्यों न हो पर इसकी पृष्ठभूमि में ये सभी तथ्य हैं और इसका भाष्य यह है कि:
१. कश्मीर के लोग आजादी की जंग लड़ रहे है और इस लड़ाई में वे पत्थर से लेकर बम तक का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं;
२.भारत ने सेना के बल पर कश्मीर पर कब्जा कर रखा है;
३. जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं वह आजाद कश्मीर है जब कि भारतीय कश्मीर भारत-अधिकृत कश्मीर है;
४. पाकिस्तान एक शान्तिप्रेमी और स्वतंत्रता का समर्थक देश है, जिसे कश्मीर को मुक्त कराने के लिए भारत पर बार बार आक्रमण करने पड़े है। वह शान्तिपूर्ण युद्ध करता है; भारत आक्रामक आत्म रक्षा करता है;
५. हम पाकिस्तान के साथ हैं और भारत के युद्धोन्माद का विरोध करते हैं।

परन्तु ये बातें खुलकर कही नहीं जा सकतीं क्योंकि इन संकेतगर्भित दावों का भी सीधा पाठ यह बनता है कि:
१. कश्मीर के भारत में विलय के समय से ही पाकिस्तान की सेना ने या उसके सहयोग से उसके द्वारा प्रशिक्षित जत्थों ने भारत पर आक्रमण किए हैं और भारत को जवाबी कार्रवाई के लिए मजबूर किया है;
२. भारतीय कश्मीर को, जिनकी भी समझदारी से हो, जितनी छूट मिली हुई है उसका कश्मीरी प्रशासन ने दुरुपयोग करते हुए हजारो कश्मीरियों की हत्या और उत्पीड़न करके लाखों को अपने ही घर से पलायन करने पर मजबूर कर दिया क्योंकि वे हिन्दू थे; कश्मीरी कश्मीरी नहीं रह जाता; सिर्फ हिंदू रह जाता है और उसे कश्मीर में रहने का अधिकार नहीं;
३. पाकिस्तान-प्रेरित आक्रमणों और उपद्रवों के बाद भी भारत ने शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए जीते हुए इलाकों और युद्धबन्दियों को वापस कर दिया, जब कि पाकिस्तान ने कब्जा किए हुए कश्मीर का हिस्सा नहीं लौटाया, जिसके बाद ही मतसंग्रह से यह फैसला होना था कि वे क्या चाहते हैं?
४. १९७१ में भारत ने नब्बे हजार युद्धबन्दियों को वापस लौटा दिया परन्तु उसी युद्ध में भारत के १५० युद्धबंदियों को नहीं छोड़ा, वे जेनेवा संधि के विपरीत पाकिस्तानी जेलों में यातना झेलते हुए मर गए या जीवित हैं;
५. बातचीत तो दूर पाकिस्तानी सेना ने लिखित संधियों का भी लगातार उल्लंघन किया है, ऐसी स्थिति में बातचीत मनोरंजन के लिए समय समय पर किया जाने वाला नाटक है;
६. से नो टु वार आंदोलन की पुकार उनको भारत में नहीं, पाकिस्तान में जाकर लगाना चाहिए, क्योंकि भारत लगातार यही बात दुहराता रहा है और तर्क देता रहा है कि गोली चलाते गुए मेल मिलाप की बोली नहीं बोली जा सकती;
७. यह नारा लगाने वाले आतंकवाद के पैरोकार हैं। जो काम वे पत्थर और बम से करते है वह काम ये भ्रम फैलाते हुए सेना से लेकर नागरिकों तक का मनोबल गिरा कर करते हैं। पहली कोटि में हार्डकोर आतंकी आते है, दूसरी मे साफ्टकोर आतंकवादी।
८. ये समस्याएं पैदा करने के पक्षधर हैं, समाधान के नहीं। ये शान्ति के समर्थक नहीं, युद्ध के कारोबारी हैं, इसलिए यदि सचमुच स्थाई शान्ति का तरीका सुझाया जाय तो पागल हो जाएंगे।
(लेखक इस विषय की कामचलाऊ जानकारी ही रखता है इसलिए इसे पढ़ने वालों की जिम्मेदारी है कि आंकड़ों में यदि कहीं चूक मिले तो उसे सुधार कर पढ़ें।)