Post – 2019-02-20

सामाजिक इतिहास
(श्रद्धांजलि – ‘कुरु कर्म अहर्निशम्’)

दो संस्कृतियां अधिकांश मामलों में एक दूसरे से अलग होती हैं। कभी-कभी एक दूसरे के विपरीत। इसलिए उनमें से किसी एक के मानदंडों के अनुसार दूसरे को समझा नहीं जा सकता।

दूसरे की विकृतियां अधिक आसानी से दिखाई देती है, और उनकी विशेषताएं भी अपनी विशेषताओं से भिन्न होने के कारण या तो विकृति प्रतीत होती हैं, अथवा दिखाई ही नहीं देतीं। आत्मरति जितनी ही प्रगाढ़ होती है, अंधापन उतना ही प्रबल होता है।

यदि ऐसा ना होता तो उस तर्क को उलट कर देखा गया होता कि यदि इतिहास ऐसी चीज है जिसके अभाव में कोई समाज सभ्य नहीं हो सकता, तो फिर वह देश, जो स्वयं ही यह दावा नहीं करता रहा है कि वह जगतगुरु है, अपितु सभ्यता के शिखर पर पहुंचने का दावा करने वाले दूसरे देशों के मेधावी लोग भी अपनी तुलना में उसकी श्रेष्ठता के सम्मुख नतशिर होते रहे हैं, तो यह समझने में कठिनाई न होती कि उसका अपना इतिहास भी उतना ही समृद्ध रहा होगा, भले उसकी भाषा भिन्न हो, मूल्य व्यवस्था भिन्न हो और इस भिन्नता के कारण ही अतीत के रक्षणीय तथ्यों का उसका चुनाव भिन्न हो। भले ही उसके संकलन में कुछ कमियां हों, पर साथ ही ऐसी खूबियां हों जिनके उपयोग से हम अपनी कमियों को समझ सकें, इतिहास की भूमिका को अधिक स्पष्टता से समझ सकें और अपने इतिहासबोध को अधिक समृद्ध कर सकें।

पहले इतिहास की सीमाओं को समझें जो चेतना के स्तर पर हमें पंगु बनाती हैं और इस संदर्भ में पौराणिक सूचनाओं के महत्व को समझें:

1. इतिहास वहां से आरंभ होता है जहां से आदमी लिखने की कला जान लेता है।
2. इससे पहले के ज्ञान को इतिहास नहीं, प्रागितिहास (प्रीहिस्ट्री) कहने का चलन है, इससे पीछे एक आद्य इतिहास ( प्रोटो हिस्ट्री) की खानाबन्दी है ।
यदि अतीत का ज्ञान हमारे लिए उपयोगी है तो इतिहास को लेखन के आविष्कार के चरण पर रुक क्यों जाना चाहिए? लेखन के बाद का घालमेत क्या कम चिंताजनक है?
3. मान्य रूप में इतिहास-लेखन हरोदोतस से आरंभ हुआ, Sometime around the year 425 B.C., the writer and geographer Herodotus published his magnum opus: a long account of the Greco-Persian Wars that he called The Histories. (The Greek word “historie” means “inquiry.”) Before Herodotus, no writer had ever made such a systematic, thorough study of the past or tried to explain the cause-and-effect of its events.”

4. लेखन के आविष्कार के बाद और हरोदोतस के बीच का दौर क्या असभ्यता का दौर था? होमर से लेकर हरोदोतस के बीच के अंतराल में क्या ग्रीस असभ्य था?

5. हरोदोतस से लेकर आज तक का इतिहास मुख्यतः राजाओं का इतिहास रहा है। युद्धों, संहारों और अपराधों का इतिहास रहा है। अहंकारवश सभ्यता का विनाश करने वालों का इतिहास रहा है। सभ्यता के लिए इतिहास में जगह ही नहीं है। इसके लिए पुराणों में जगह थी।

6. सभ्यता से इतिहास का संबंध ही नहीं है। जिन लोगों ने माना था कि इतिहास हमें एक ही शिक्षा देता है कि इतिहास से कोई कुछ नहीं सीखता, वे यह कहना भूल गए थे कि जो लोग इतिहास से नहीं सीखते हैं ही भले लोग होते हैं। अहमहमिका में मानवता को, जीव जगत को, प्राकृतिक संपदा को नष्ट करके अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए सब का विनाश करने के बाद ब्रह्मांड के अनुपम ग्रह का विध्वंश करने पर कृतसंकत्प जनों को सभ्य नहीं कहा जा सकता। चालाक कहां जा सकता है, बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। आधुनिक जगत चालाक लोगों से भर गया है, बुद्धिमानों के लिए इसमें जगह नहीं है।

7. आप सोचेंगे कि मैंने ज्ञान और कौशल के समस्त विकास को नकार दिया, मनुष्य के विकास क्रम में जो अनुभव हुए हैं उनको नकार दिया और इस बहाने आदिमता की हिमायत कर रहा हूं। नहीं, मैं केवल उस इतिहास की बात कर रहा हूं जिसे सभ्यता की शर्त माना गया था और जो सभ्यता विरोधी है, जीवन विरोधी है। क्योंकि यह उस इतिहास से अलग है जिसे हम इतिहास – इति-ह- आस (पहले ऐसा था) और पुराण (पुराने जमाने में ऐसा हुआ था) मानते है।

9 अपने मंतव्य के स्पष्ट करने के लिए पहले मैं सभ्यता और बर्बरता का अंतर समझाना चाहूंगा। सभ्यता निर्माण की वह प्रक्रिया है जिसका आरंभ मनुष्य ने प्रकृति पर निर्भरता से मुक्त होने के साथ किया – जो उत्पादक है, जो निर्माण करता है, जो सृजन करता है, जो चिंतन करता है, जो विकृतियों को समाप्त करता है, जो अन्याय का विरोध करता है, जो अपने लिए उतना ही चाहता है कि उसके निर्वाह के बाद मानव मात्र के लिए और यदि संभव तो प्राणिमात्र के लिए इतना बचा रहे कि किसी को किसी तरह का दुख न हो, अभाव न सताए वह सभ्य है। वे सभी जो इसके विपरीत आचरण करते हैं वे सभ्यता द्रोही और असभ्य हैं। वियतनाम पर आक्रमण करने वाला अमेरिका असभ्य और अपने स्वाभिमान के लिए प्राणों को उत्सर्ग करने वाला वियतनाम सभ्य है। तालिबान पैदा करने वाला उतना ही असभ्य और मानवता द्रोही है जितना नशीले और जहरीले पदार्थों का कारोबार करने वाला। तालिबान उसकी उगाई हुई फसल है, फसल को पता नहीं कि उसे किसने उगाया है , क्यों उगाया है, उसका क्या उपयोग कर रहा है। सिर्फ खेती करने वाला जानता है कि अपनी उपज को उसे किस रूप में या कितने रूपों में किन किन कारखानों में परिष्कृत करना और उन्हें बेचने के लिए किस तरह के बाजार तैयार करना है । वह कितना भी शक्तिशाली हो सभ्य नहीं हो सकता।

10. पुराण जिस सीमा तक बचे रह गए हैं, जिन जिन कोनों में बचे रह गए हैं, वे सभ्यता का विकास प्रदर्शित करते हैं असभ्यता को महिमा मंडित नहीं करते।

11. इतिहास, प्राक् इतिहास, आद्य इतिहास सभी मिलकर (इन्हें ‘ई’ की संज्ञा दें) भी उन प्रश्नों का उत्तर नहीं देते जिनका उत्तर सभ्यता का इतिहास जानने के लिए, उन लोगों का इतिहास जानने के लिए, जरूरी है जिन्होंने केवल पैदा किया, बचाया, निर्माण किया परंतु नष्ट किसी को नहीं किया- न अपने किए को, न किसी दूसरे की कृति को, न मानवतावादी मूल्यों को।

12. बर्बरता की विजय का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि जो सभ्यता के जनक है, वाहक हैं, वे बर्बर लोगों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए विविध सेवाओं में गुलामों, अर्ध गुलामों, और चाकरों के रूप में उनके उद्देश्य की पूर्ति में या उनको रास आने वाली सेवाओं में लगे हुए हैं, और अपने को स्वतंत्र भी समझते हैं।

13. अपनी बात को कुछ और स्पष्ट करूं तो मानवता के इतिहास में सबसे निर्णायक चरण वह है जब मनुष्य ने प्रकृति पर निर्भर करने की अपेक्षा प्रकृति के नियमों का अध्ययन करके, उनका ही उपयोग करते हुए, प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने और स्वयं सर्जना करने का निश्चय किया, उसका कोई विवरण ‘ई’ में नहीं है। उन कारणों और प्रयोगों का विश्वसनीय विवरण पुराणों में मिलता है।

14. मनुष्य के सर्जक की भूमिका में आने से पहले आहार अन्वेषण पर निर्भर करने वाले मानवयूथ कैसे रहते थे, उसके जीवन मूल्य क्या थे, और उस पूरे दौर में कोई सामाजिक परिवर्तन हुए या नहीं हुए, इसका आभास ‘ई’ से नहीं मिलता; पुराणों से मिलता है।

15. खेती की ओर बढ़ने वाले मनुष्य को किन विरोधों का सामना करना पड़ा और कितनी लंबी यातनाओं से निपटना पड़ा इसका आभास तक ‘ई’ से नहीं मिलता; पुराणों से मिलता है।

16. मनुष्य ने कृषि के लिए क्या प्रयोग किए और स्थाई बस्ती किस तरह अस्तित्व में आई इसका परिचय हमें ‘ई’ से नहीं मिलता; पुराणों से मिलता है।
सबसे बड़ी बात यह कि इनकी विश्वसनीयता असंदिग्ध है, जब कि तथाकथित इतिहास का प्रत्येक अध्याय संदेह के दायरे में आता है।