Post – 2018-11-18

मैं कल क्रोध पर नहीं लिखना चाहता था। इन मनोवेगों पर विषय के अधिकारी लोगों द्वारा इतना लिखा गया है कि उसे देखते मेरा कुछ कहने का प्रयत्न अवांछित और बचकाना दोनो लग सकता है। मैं अपने भय पर और अपने को अच्छा हिन्दू सिद्ध करने के लिए ऐसे किसी व्यक्ति, कार्य, विचार या सुझाव पर प्रचंड रूप धारण करके, गर्हित से गर्हित भाषा का प्रयोग करके उसे अपमानित करने की प्रतियोगिता का नमूना देख कर असहिष्णुता की व्याधि से डरा हुआ था कि यदि देश ऐसे लोगों के हाथ में पड़ जाय तो वे इसकी क्या दशा करेंगे। पूरे हिन्दू समाज को ऐसे ही लोगों का जमघट बता कर इस पर लगातार हमला करने वाले सेकुलरिस्टों से मुझे जितना डर लगता है उससे अधिक डर इस जमात से लगा।

प्रसंग निम्न प्रकार है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी ने फैजाबाद शहर का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया, फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या हो गया। इलाहाबाद का नाम प्रयाग कर दिया। पुराने नामों को बदलने का लंबा इतिहास है और इसको यदि अपराध माना जाय तो कोई दल इससे मुक्त नहीं माना जाएगा। उन्होंने अयोध्या को पवित्र नगरी बनाने के लिए इसे मांस मदिरा से भी मुक्त कर दिया। इस पर एक व्यक्ति ने यह सुझाया कि मांस मदिरा का सेवन तो भगवान राम और सीता स्वयं भी करते थे। इसके समर्थन में उसने वाल्मीकीय रामायण से प्रमाण दिये थे। बिना किसी प्रसंग के यदि यही लेख लिखा गया होता तो मुझे स्वयं इस पर आपत्ति होती। परन्तु शासन द्वारा एक नगर को मांस मदिरा से मुक्त नगर घोषित किए जाने पर इस लेख को समय की मांग माना जाना चाहिए। उस लेखक ने पूरे लेख में भगवान राम या सीता के लिए किसी अमर्यादित शब्द का प्रयोग नहीं किया था।और उस पर अपनी प्रचंड प्रतिक्रिया में हिन्दुत्व के इन ठेके दारों ने अभद्रता की पराकाष्ठा पर पहुंचते हुए सभी मर्यादाए तोड़ दी थी। जिसे मैं अब तक सामी मानसिकता, असहिष्णुता कहते हुए निन्दनीय मानता रहा हूं उसका इतना निकृष्ट रूप हिन्दुत्व के रक्षकों में मिलेगा यह सोच कर मैं सहम गया था। विचार स्वातंत्र्य हिन्दुत्व का एकमात्र गुण है जिसके कारण
मैं हिन्दुत्व का समर्थन करता हूं, उसे ही नष्ट करने वाले मदिरा मांस का सेवन भले न करते हों वे पवित्रता के नशे में दिन रात बेहोश रहने वाले लोग तो हैं ही। इसी प्रसंह में मुझे क्रोध की आतमविनाशी भूमिका याद आई थी। यदि कोई विचार गलत लगता है तो उसका प्रतिवाद विचार के माध्यम से ही हो सकता है। गालियों का मतलब है आपके पास विचार है ही नहीं। यह भी स्मरण रहे कि वीर रस का स्थायीभाव धैर्य है, क्रोध नहीं।