Post – 2018-11-03

#भारतीय_मुसलमान: #माइनारिटी_सिंड्रोम (3)

अल्पसंख्यकता व्याधिचक्र की दूसरी अभिव्यक्ति थी #दहशतगर्दी या उपद्रव। इसके पीछे सोच यह थी कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ शान्ति से नहीं रह सकते। शान्ति से रहने की एक ही शर्त है कि दोनों संख्या में बराबर हों। Now just consider the result of election. In no town are Hindus and Mahomedans equal. Can the Mahomedans suppress the Hindus and become the masters of our “Self-Government”? परंतु जहां इरादा दबा कर रखने का हो, सप्रेस करने का हो, सबके साथ परस्पर सम्मान से रहना रईसी मिजाज से मेल न खाता हो, वहां शांति से रहना न तो उनकी योजना में था, न ही संभव था। जिन रईसों की हैसियत का उनको इतना ध्यान और गुमान था उनका हाल उनके ही शब्दों में यह कि वाइसराय की कौंसिल में पहुंच कर भी मिट्टी के माधो बने रहते थे और जाहिर है सरकार के इशारे पर हाथ उठाने से अधिक कुछ कर नहीं सकते थे, अपने समाज का हित भी नहींः
A seat in the Council of the Viceroy is a position of great honour and prestige. None but a man of good breeding can the Viceroy take as his colleague, treat as his brother, and invite to entertainments at which he may have to dine with Dukes and Earls. Hence no blame can be attached to Government for making those great Raïses members of the Council. It is our great misfortune that our Raïses are such that they are unable to devise laws useful for the country.

समस्या उनकी भी जागरूकता और याेग्यता बढ़ाने की थी, अयोग्य फिर भी ग्रेट रईसों को प्रतिनिधि बनाकर भेजने की जगह हिंदुओं की तरह सुयोग्य और अधिक शिक्षित मुसलमानों को प्रतिनिधि बनाने की मांग करने की थी, जो मुस्लिम समाज के हितों की चिंता कर सकें। परंतु वहां बार बार उनकी रईसी आड़े आजाती थीः Men of good family would never like to trust their lives and property to people of low rank with whose humble origin they are well acquainted.(1887) And let us suppose first of all that we have universal sufferage, as in America, and that everybody, chamars and all, have votes.. (1887).

जहां ज्ञान की जरूरत थी वहां छुरा या तलवार उठाने की जरूरत थी ही नहीं। इस समझ की जरूरत थी कि ब्रिटिश कूटनीति उनके आवेश को उभार कर उनकी चेतना को मंद करके उनके हाथ में उन लोगों के विरुद्ध इस्तेमाल के लिए छुरा और तलवार पकड़ा रही थी जो उनके अनुसार ही किसी कीमत पर मुसलमानों को भी साथ ले कर आगे बढ़ना चाहते थे।
I should point out to my nation that the few who went to Madras, went by pressure, or from some temptation, or in order to help their profession, or to gain notoriety; or were bought. No Raïs from here took part in it.(1888)

कहें कांग्रेस से उनको शिकायत यह भी थी इसमें समाज के सभी तबकों को स्थान क्यों दिया गया था, यह केवल रईसों का आंदोलन क्यों न थाः
I am sorry to say that they never said anything to those people who are powerful and are actually Raïses [nobles] and are counted the leaders of the nation. 1887

शिक्षा को लेकर उनकी चिंता कुछ दूर तक जायज थी – have Mahomedans attained to such a position as regards higher English education, which is necessary for higher appointments, as to put them on a level with Hindus or not? Most certainly not. (1887)

परंतु यह केवल मुसलमानों की समस्या न थी। वह सभी मुसलमानों को साथ लेकर चल भी नहीं रहे थे। वह स्वयं मानते थे कि आगरा और अवध के हिंदुओं का भी वही हाल था। सबसे बड़ी बात यह कि, जैसा हम देख आए हैं और आगे भी देखेंगे, बंगाली मुसलमानों को हिंदुओं के आगे बढ़ने से कोई शिकायत नहीं थी।

सर सैयद अहमद का यह सोचना कि दो बादशाह एक ही तख्त पर एक साथ नहीं बैठ सकते, बैठेगा एक ही और केवल उस दशा में जब वह दूसरे को दबा ले, इतना सठिआया हुआ विचार था, जिसे उनकी उम्र से जोड़कर देखना उनके सम्मान की रक्षा के लिए जरूरी हो सकता है। यह विचारशून्यता लीग की थाती बनी और मुस्लिम लीग की चिंताओं से कातर उन्हीं रईस परिवारों के नवशिक्षित कम्युनिस्ट बने युवकों के आग्रह से कम्युनिस्ट पार्टी में घुस कर, आम मुस्लिम समुदाय में प्रवेश कर गया और अंध हिंदूद्रोह में परिणत हो गया।

यह आम मुसलमानों के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण रहा, हिंदुओं के लिए भी स्थाई चिंता का विषय बन गया, कम्युनिस्ट आंदोलन को भी कई तरह के भटकावों का शिकार बनाता गया, और भारतीय राजनीति और सामाजिक पर्यावरण को विकृत करते हुए प्रगति तथा विकास को भी अवरुद्ध करता रहा।

उपद्रव की धमकी सरसैयद ने ही देना आरंभ कर दिया था और यह विश्वास करना तो कठिन है कि पहले खुले गोकुशी कांडों के पीछे उनका हाथ रहा हो सकता है। मानना यह होगा कि उन्होंने इसमें हस्तक्षेप करके इसे रुकवाया होगा, फिर भी यह धमकी कि अवध के हिन्दू यदि उनके कहने के अनुसार नहीं चलेंगे तो फिर खुली गोकुशी और दंगे आरंभ हो सकते हैं, एक ऐसी चेतावनी है जिसे एक रक्तरंजित अध्याय की पीठिका के रूप में ही समझा जा सकता हैः
There Mahomedans and Hindus are in agreement. The Dasehra/1/ and Moharrum/2/ fell together for three years, and no one knows what took place [that is, things remained quiet]. It is worth notice how, when an agitation was started against cow-killing, the sacrifice of cows increased enormously, and religious animosity grew on both sides, as all who live in India well know. They should understand that those things that can be done by friendship and affection, cannot be done by any pressure or force. 1888

इसके साथ ही इन इबारतों के भी निहितारेथ पर ध्यान दिया जाना चाहिएः
At the same time you must remember that although the number of Mahomedans is less than that of the Hindus, and although they contain far fewer people who have received a high English education, yet they must not be thought insignificant or weak. Probably they would be by themselves enough to maintain their own position. But suppose they were not. Then our Mussalman brothers, the Pathans, would come out as a swarm of locusts from their mountain valleys, and make rivers of blood to flow from their frontier in the north to the extreme end of Bengal.1888

इसकी भाषा शाही इमाम बुखारी के कांग्रेसी दौर में बात बात पर खून की नदियां बहाने की पीठिका ही नहीं कलकता की सुहरावर्दी की सीधी कार्रवाई और मुहम्मद अली जिन्ना की सीधी कार्रवाई की धमकियों की शृंखला में ही आती है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पागलपन के इन दौरों में बार बार केवल निरीह इंसानों की हत्या और अपमान हुआ और इनको उकसाने वाले, आर्थिक और नैतिक समर्थन देने वाले रईस और राजनेता और मैदान में उतर कर लूटपाट करने वाले लफंगे एक दंगे के बाद दूसरे दंगे की तैयारियां करते रहे हैं क्योंकि मारे हिन्दू जाएं या मुसलमान उनका कद और लाभ हर हाल में बढ़ता ही रहा है। सभी समस्याओं का निदान है पर अकेली यह है जो उग्र होते हुए कई स्तरों पर फैलती गई है जिसका एक कारण यह भी है कि हम इस पर डर कर सोचते, मुकरने की तैयारी करके बोलते और बोलने के बाद अपने कार्य की इतिश्री मान बैठते हैं।