Post – 2018-10-26

हर सख्श को अपने से हम दाना मानते हैं
दुनिया को मगर अपनी दुनिया न मानते हैं
कुछ नाज मुझे भी है अपनी खसूसियत पर
जो मुझको जानते हैं दीवाना मानते हैं ।
क्यों कर न टूट जायें पड़ते ही सामने, जो
अपनी समझ को मेरा पैमाना मानते हैं।।
यूं तो बहुत तलाशा कोई न शिफत पाई
माहिर हैं इलम के जो क्या क्या न मानते हैं।।
दुनिया से मिला जो कुछ चाहत से जियादा था
कुछ और जुटाने को मिट जाना मानते हैं।।