Post – 2018-10-10

#सर_सैयद: हिंदू का अहित मुसलमानों के हित से ऊपर

सैयद अहमद को उनके किस काम के लिए इंग्लैंड में इतना सम्मान मिला था? उनकी पदीय हैसियत या अकादमिक उपलब्धि तो ऐसी न थी। माली हालत अवश्य ऐसी थी कि वह वहां जब तक रहे पूरे रुतबे से रहे, परंतु यह इसके लिए पर्याप्त न था कि महारानी से लेकर इंग्लैंड के संभ्रांत जन तक इतना असाधारण सम्मान करते। इसका एक ही कारण था कि अब तक की उनकी रुझान को देख कर उन्हें यह विश्वास हो गया था कि लंबे समय से जिस खैरख्वाह की जरूरत थी वह उन्हें मिल गया है। वे उनके सामने उसी तरह चारा फेंक रहे थे जैसे शिकारी किसी पक्षी या जानवर को फंसाने के लिए चारा डालता है। सैयद अहमद स्वयं चारे की तलाश में थे और उन्हें इससे जो आश्वस्ति मिली थी जिसकी अभिव्यक्ति समर्पित भाव से उनके द्वारा किया गया अंग्रेजों का गुणगान था, जिसमे आत्माभिमान, देशाभिमान और उनके प्रिय कौमी अभिमान सभी का अभाव था।

अंग्रेजों के बारे में हमारा आकलन नीरद चौधरी और उनके पूर्ववर्ती सैयद अहमद से भिन्न है और उनकी वह शान और शालीनता भी जिसने उनको आकर्षित किया होगा, उस लूट की देन थी जिसने पहले बंगाल को और फिर पूरे हिन्दुस्तान को कंगाल, बेकारऔर दयनीय बना दिया था। फ्रांसीसियों की नफरत अंग्रेजों से इस बात को लेकर रही है कि अंग्रेज कायर और व्यापारी कौम है और आर्थिक लाभ के लिए वह गर्हित से गर्हित काम कर सकती है। यूरोप के किसी भी दूसरे राष्ट्र ने उतने घृणित तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जिनका इस्तेमाल अंग्रेज करते रहे। नशे का व्यापार करना, नशे का आदी बनाना, इसकी खपत बढाने के लिए युद्ध तक (चीन के साथ ओपियम वार) करना, हारने पर चोर दरवाजे निकाल कर इसकी आपूर्ति करना, आदमियों का जानवरों की तरह शिकार कर और करा कर गुलाम व्यापार करना, उसे राजकीय कारोबार तक की हैसियत पर पहुंचाना और इंसानों के साथ अकारणअमानवीय और अपमानजनक व्यवहार और लिंजिंग तक करना, इसे मनोरंजन का रूप दे कर तमाशे में बदलना, गरीबों से काम कराकर पैसे न देना (कुली बेगार प्रथा), न्याय की सौदेबादी करना, व्यवस्था (पुलिस) तंत्र का सुनियोजित अव्यवस्था के लिए उपयोग करने के लिए भ्रष्ट बना कर रखना आदि जितने जघन्य अपराध अंग्रेजों के हिस्से में आते हैं उतने नाजियों के हिस्से में भी नहीं आएंगे।

1757 मे प्लासी के युद्ध से पहले बंगाल की दशा क्या थीः
Bengal was the Mughal Empire’s wealthiest province. It generated 50% of the empire’s GDP and 12% of the world’s GDP, globally dominant in industries such as textile manufacturing and shipbuilding, with the capital Dhaka having a population exceeding a million people. It was an exporter of silk and cotton textiles, steel, saltpeter, and agricultural and industrial produce. By the 18th century, Mughal Bengal emerged as a quasi-independent state, under the Nawabs of Bengal,(Wikipedia)

इसके बाद उन्होंने उसकी क्या दशा कर दी या उनके कारण मुसलमानों की क्या दशा हुई इस पर ध्यान देना सैयद को इसलिए जरूरी नहीं लगता था कि अंग्रेजों के व्यवहार की तुलना वह मध्यकाल के मुस्लिम शासको के व्यवहार से तुलना करते हुए इस नतीजे पर पहुंचते थे ऐसा तो सभी करते हैं यद्यपि ऐसा नहीं करते। करते होते को बंगाल की वह दशा न रही होती। वह अपराधियों की कृपा पाने के लिए उनके अपराध के लिए बंगाल के हिंदुओं को अपराधी सिद्ध करते रहे, क्योंकि ऐसा उन्हे लगता था कि ऐसा करके ही वे उनसे कुछ हासिल कर सकते थे। यह हासिल करना आम मुसलमानो के लिए नहीं हो सकता था जिनके रोजगार छिन गए थे केवल बचे हुए नवाबों, जमीदारों और रईसों के हित मे ही हो सकता था।

भारत को उन्होंने न तो कूटनीति से जीता था जिसमें व्यवहार की एक गरिमा होती है और किए गए वादे का सम्मान किया जाता है, न ही बल से जीता था। वे लगातार धोखाधड़ी का इस्तेमाल करते रहे। इसके कारण ही पहले ही यह स्पष्ट करना जरूरी लगा की धोखाधड़ी भेद नीति नहीं है। रिश्वतखोरी विश्वासघात वादे से मुकरना कानून का उल्लंघन अपने स्वजनों तक के साथ धोखाधड़ी दस्यु पायरेसी करना, न्यायालयों तक में रिश्वत को बढ़ावा देना, कानून व्यवस्था स्थापित करने वाले यंत्र को भी भ्रष्ट करके रखना उन्होंने स्थापित किया जिसके एक नहीं असंख्य उदाहरण है। बंगाल के दो सबसे भयंकर अकाल 1777 ऑल 1946 उनके लोभ या अमानवीयता के कारण पड़े जिनके विस्तार में जाना जरूरी होते हुए हम नहीं जा सकते, नीचता का इससे बड़ा नमूना क्या हो सकता है। उनके तो गवर्नर जनरल को भी मानहानि का दंड भुगतना पड़ा और मालामाल होने के बाद कंगाल की जिंदगी बिताते हुए मौत का सामना करना पड़ा।

भारत को उन्होंने कैसे जीता इसके लिए उनसे अधिक हमारे मध्यकाल का व्यवहार, मुगल सल्तनत के गिरावट के समय सम्राट बनने की अनेक लोगों की आकांक्षा के चलते हम उनका सामना नहीं कर सके या पहले ही मौके पर कुचल न सके।

हम यहां के भेदनीति पर बात कर रहे हैं इसलिए यह बताना जरूरी था कि 18 वीं शताब्दी के अंतिम चरण में मनुस्मृति से परिचित होने से पहले दे कौन से तरीके अपनाते रहेः इसे हम अपने शब्दों में रखने की जगह दो अधिकारियेों के शब्दों में रखना अधिक सुविधाजनक मानते हैं।उन्होंने कैसे जीता था इसका बहुत सटीक वर्णन लाला लाजपत राय ने अपनी पुस्तक यंग इंडिया में दिया हैः
British “conquest” of India from 1757 to 1857 A. D. is a continuous record of political charlatanry, political faithlessness, and political immorality. It was a triumph of British “diplomacy.” The British founders of the Indian empire had the true imperial instincts of empire-builders. They cared little for the means which they employed. Moral theorists cannot make empires. Empires can only be built by unscrupulous men of genius, men of daring and dash, making the best of opportunities that come to their hands, caring little for the wrongs which they thereby inflict on others, or the dishonesties or treacheries or breaches of faith involved therein.
परंतु इसके लिए केवल जीतने वाले को दोष देना और अपनी गलतियों को याद न रखना सबसे बड़ी मूर्खता है। भारत के रजवाड़े हर्षवर्धन के बाद आपस में लड़ते रहे और विदेशी आक्रमणकारियों का मिलकर सामना नहीं कर सके। पराजित करने के बाद उनके पलायन करने के बाद उन्हें क्षमा करके निश्चिंत होने के कारण धोखे से हारे और फिर औरंगजेब की कट्टरता और कठोरता के कारण मुगल साम्राज्य के खंडित होने से उत्पन्न हुए खालीपन मे सभी राजे नवाब आपसी झगड़ों के कारण अलग रहे। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध मे किसा ने किसी का साथ नहीं दियाः
Hindus were played against the Mohammedans, and vice versa, states and principalities against states and principalities, Jats against Rajputs, and Rajputs against Jats, Mahrattas against both, Rohillas against Bundelas, and Bundelas against Pathans, and so on. Treaties were made and broken without the least scruple, sides were taken and changed and again changed without the least consideration of honour or faith. Thrones were purchased and sold to the highest bidder. Military support was purchased and given like merchandise. Servants were induced to betray their masters, soldiers to desert flags, without any regard to the morality of the steps taken. Pretences were invented and occasions sought for involving states and principalities in wars and trouble. Laws of all kinds, national and international, moral and religious, were all for the time thrown into the discard. Neither minors nor widows received any consideration; the young and the old were treated alike. The one object in view was to loot, to plunder, and to make an empire. Everything was subordinated to that end. One has only to read Mill and Wilson’s “History of British India,” Burke’s “Impeachment of Warren Hastings,” Torrens’ “Our Empire in Asia,” Wilson’s “Sword and Ledger,” Bell’s “Annexation of the Punjab” to find out that the above is a bare and moderate statement of truth.88-89

1857 के दौरान हिंदू और मुसलमानों में एक काम चलाऊ एकता पैदा हुई थी जो ही भारत के भविष्य के लिए हितकर थी, परन्तु मुझेे ऐसा लगता है कि सरसैयद के मन में या तो हिंदुओं को नीचा दिखाने की इच्छा मुसलमानों के हित से अधिक प्रबल थी, या 1857 के बाद के दमन से वह उबर ही न सके। सच क्या है , यह विचारणीय है।